Friday, April 20, 2018

विस्थापन का दंश नहीं विकास चाहते हैं ग्रामीण

  •   पदयात्रा से केन-बेतवा लिंक परियोजना की उजागर हुई हकीकत
  •   नदी जोड़ परियोजना से अनभिज्ञ हैं केन किनारे स्थित ग्रामों के लोग


पदयात्रा के दौरान तटवर्ती ग्रामीणों से चर्चा का दृश्य।

 अरुण सिंह,पन्ना। केन नदी के किनारे स्थित ग्रामों के रहवासी विस्थापन का दंश नहीं अपितु मूलभूत सुविधायें और विकास चाहते हैं। नदी जोड़ परियोजना के प्रस्तावित बांध स्थल के पास दोधन, पलकोहा, खरयारी समेत लगभग 10 गाँव पन्ना टाईगर रिजर्व के अन्दर हैं। इन ग्रामों में रहने वाले लोगों की मुसीबत यह है कि उन्हें विगत कई सालों से बांध विस्थापित बताया जा रहा है। जिसके कारण ग्रामवासियों को पेयजल, शिक्षा, स्वास्थ्य, संचार व आवागमन जैसे मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा गया है। पूरे 33 दिनों में 600 किमी लम्बी दूरी तय करके केन परिक्रमा करने वाले सिद्धार्थ अग्रवाल व भीम ङ्क्षसह रावत ने बेहद चौंकाने वाले तथ्य उजागर किये हैं। आप लोगों ने बताया कि पन्ना से लेकर बांदा तक केन नदी के किनारे बसे अधिकांश ग्रामों के लोगों को केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है। इन ग्रामीणों में नदी पर आश्रित किसान, मल्लाह, मछुआरे व पशुपालक शामिल हैं।
केन्द्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के बारे में तटवर्ती ग्रामों के लोग यह सोचते हैं कि केन का पानी बेतवा में और बेतवा का पानी केन में डाला जायेगा, जिससे बाढ़ नहीं आयेगी। बाढ़ की विभीषिका अनेकों बार झेल चुके लोग इस भ्रान्ति के चलते निङ्क्षश्चत थे कि नदी जोड़ योजना से उनके जीवन में कोई खलल नहीं पड़ेगा, अपितु बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिल जायेगी। जबकि वास्तव में इस योजना से केवल केन नदी का पानी बेतवा में डाला जायेगा, बेतवा का पानी केन में नहीं आयेगा। पदयात्रियों ने ग्रामीणों को जब इस तथ्य से अवगत कराया तो वे हैरान रह गये। हकीकत जान ग्रामीण अपने को अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और कहते हैं कि यदि ऐसा है तो नदी जोड़ परियोजना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि केन हमारी जिन्दगी है। पदयात्रा के दौरान यह भी पता चला कि योजना को अमल में लाने के लिये बरियारपुर बैराज के नीचे नया बैराज बनाया जायेगा। जिससे योजना के डूब क्षेत्र में आने वाले वन क्षेत्र और गाँवों की संख्या बढ़ जायेगी। किन्तु इस बात का योजना की पर्यावरण प्रभाव मूल्यांकन, जनसुनवाई और पर्यावरण आंकलन रिपोर्ट में उल्लेख नहीं किया गया है। योजना के लिये पन्ना राष्ट्रीय उद्यान में 23 लाख से भी अधिक पेड़ों को काटा जायेगा, यह सुनकर भी ग्रामीण भौंचक्के रह गये। क्योंकि इन तथ्यों और जानकारियों से वे पूरी तरह अनजान हैं। अपने उद्गम स्थल से ही मानवीय हस्तक्षेप झेल रही केन नदी की हालत दयनीय और चिन्ताजनक हो गई है। केन किनारे के सुप्रसिद्ध कवि केदारनाथ अग्रवाल यदि आज होते तो केन की यह दशा देख कितने व्यथित होते। श्री अग्रवाल अपनी एक कविता में लिखते हैं, मैं घूमूंगा केन किनारे, यों ही जैसे आज घूमता, लहर-लहर के साथ झूमता, संध के प्रिय अधर चूमता, दुनिया के दु:ख-द्वंद विसारे, मैं घूमूँगा  केन किनारे। लेकिन अब केन किनारे ऐसा कुछ भी नहीं बचा जहां घूमा जा सके, हर तरफ विनाशकारी उत्खनन और पानी के अविरल नैसर्गिक  प्रवाह को रोकने का काम हो रहा है।

नष्ट हो जायेगा बाघों का बसेरा


केन नदी के किनारे गजराज और वनराज साथ-साथ।
केन-बेतवा लिंक परियोजना पन्ना जिले के रहवासियों के लिये जहां विनाशकारी साबित होगी, वहीं पन्ना टाईगर रिजर्व के बाघों और विलुप्त होने की कगार पर पहुँच चुके गिद्धों के जीवन में भी संकट पैदा करेगी। नदी जोड़ परियोजना में पन्ना टाईगर रिजर्व का जो हिस्सा डूब में आ रहा है वह बाघों व बल्चरों का प्रिय रहवास है। मौजूदा समय भी इस क्षेत्र में शावकों सहित एक बाघिन अपना बसेरा बनाये हुय है, वहीं नर बाघों का भी विचरण होता रहता है। पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र बाघों की बढ़ रही संख्या को देखते हुये छोटा पड़ रहा है, ऐसी स्थिति में बाघों के सर्वश्रेष्ठ रहवास के डूब में आ जाने से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का पूरा ताना बाना ही बिगड़ जायेगा, जिसकी भरपाई हो पाना संभव नहीं है।

नहीं दिखेगा रनेहफाल का अनुपम सौन्दर्य


केन नदी के रनेहफाल का अद्भुत नजारा।

केन नदी का अविरल प्रवाह थम जाने पर रनेहफाल का अलौकिक और अनुपम सौन्दर्य देखने को नहीं मिलेगा। रंग-बिरंगी ग्रेनाइट की चट्टानों के बीच से जब केन की धार प्रवाहित होती है तो यह नजारा देख लोग मुत्रमुग्ध हो जाते हैं। यह बेहद खूबसूरत फाल संकटग्रस्त घडिय़ाल प्रजाति का आश्रय स्थल भी है। जिसे केन घडिय़ाल राष्ट्रीय प्राणी उद्यान के नाम से जाना जाता है। रनेहफाल और इस अभ्यारण्य के सुरक्षित भविष्य के लिये यह आवश्यक है कि केन नदी में बरियारपुर बांध से निरन्तर पानी छोड़ा जाये।
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