- आस्था के चलते किलकिला नदी को कहा जाता है प्रणामी सम्प्रदाय की गंगा
- पन्ना शहर के गन्दे नालों का पानी मिलने से विषाक्त हो चुकी यह प्यारी नदी
गंदे नाले में तब्दील हो चुकी किलकिला नदी से मलबा निकालती पोकलेन मशीन। |
पन्ना। किलकिला नदी को पुनर्जीवित करने के लिये पन्ना शहर के उत्साही युवकों की टीम ने भागीरथ बनकर जो बीड़ा उठाया है उसकी हर कोई सराहना कर रहा है। युवकों के उत्साह और रचनात्मक पहल को देखते हुये बड़ी संख्या में लोग अब मदद के लिये भी स्वप्रेरणा से आगे आने लगे हैं। आम जनता के सहयोग से इस नदी को पुनर्जीवित कर उसके प्राचीन स्वरूप में वापस लाने का कार्य तेजी से चल रहा है।
पन्ना शहर के निकट से प्रवाहित होने वाली इस नदी को धार्मिक आस्था के चलते प्रणामी सम्प्रदाय की गंगा कहा जाता है। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता व अनदेखी के कारण पन्ना शहर के गन्दे नालों व गटर का पानी मिलने से यह नदी बुरी तरह से जहां दूषित और विषाक्त हो चुकी है, वहीं नदी के प्रवाह क्षेत्र में बड़े पैमाने पर अतिक्रमण होने से किलकिला नदी का वजूद ही संकट में पड़ गया है। ऐसी स्थिति में भागीरथ बनकर पन्ना परिवर्तन मंच से जुड़े युवाओं की टीम ने किलकिला नदी को साफ-स्वच्छ बनाने तथा उसे अतिक्रमण से मुक्त करने का बीड़ा उठाया है। युवकों की इस अभिनव पहल को नगरवासियों की ओर से समर्थन व सहयोग भी मिल रहा है, जिससे नदी के पुनर्जीवन का कार्य जोर-शोर व उत्साह के साथ चल रहा है।
उल्लेखनीय है कि मन्दिरों के शहर पन्ना में राजाशाही जमाने से ही जल व पर्यावरण संरक्षण की परम्परा रही है। लेकिन समय गुजरने के साथ हमने अपने पुरखों की इस अनूठी परम्परा को भुला दिया। नतीजतन जंगलों के विनाश का सिलसिला जहां शुरू हो गया वहीं नदियों और प्राचीन तालाबों का वजूद भी मिटने लगा। अब शहर के शिक्षित और समाजसेवी युवकों में जागृति आई है और वे अपनी प्राचीन विरासत व धरोहरों के संरक्षण में रूचि ले रहे हैं, जिससे उम्मीद जागी है। दो वर्ष पूर्व पन्ना जीवन का आधार प्राचीन धरमसागर तालाब के जीर्णोद्धार का कार्य जन सहयोग से सफलतापूर्वक पूरा किया गया है। अब उन्हीं युवकों द्वारा किलकिला नदी को पुनर्जीवित करने का बीड़ा उठाया गया है, उनके जुनून, जज्बे और उत्साह को देखकर नगरवासी आशान्वित हैं, कि किलकिला नदी एक बार फिर अपने पुराने स्वरूप में दिखाई देगी।
किलकिला नदी का उद्गम बहेरा गाँव के निकट छापर टेक की पहाड़ी है। यहां से निकलकर किलकिला नदी तकरीबन 45 किमी लम्बा सफर तय करते हुये सलैया भापतपुर के मध्य केन नदी में विलीन हो जाती है। पन्ना शहर के निकट से गुजरते हुये किलकिला नदी घने जंगलों से होते हुये सैकड़ो फिट गहरे कौआ सेहा में गिरती है और वहां से आगे बढ़ते हुये केन में मिल जाती है। इस अनूठी नदी को लेकर अनेकों कहानियां और किवदंतियां भी प्रचलित हैं, जिन्हें लोग बड़े रूचि से सुनाते हैं। कहा जाता है कि पूर्व में किलकिला का पानी इतना जहरीला और विषाक्त था कि घोड़ा इस नदी का पानी पी लेता था तो घोड़े के साथ घुड़सवार की भी मौत हो जाती थी। ऐसी मान्यता है कि किलकिला नदी के विषैले जल को प्रणामी सम्प्रदाय के प्रणेता महामति श्री प्राणनाथ जी ने स्पर्श करके अमृत तुल्य कर दिया था। वह स्थान आज भी अमराई घाट के नाम से जाना जाता है, जो प्रणामी धर्मावलंबियों का पवित्र स्थल बन गया है।
वन्य प्राणियों की भी बुझती है प्यास
किलकिला अभियान का दूसरा चरण पूर्णता की ओर
अभियान को सफल बनाने इनका रहा योगदान
चल रहे सफाई अभियान का जायजा लेने नदी किनारे बैठी युवकों की टीम। |
इस अनूठे रचनात्मक अभियान को सफलता की ओर अग्रसर करने में प्रमुख रूप से पूर्व नपा अध्यक्ष बृजेन्द्र सिंह बुन्देला, राजमाता दिलहर कुमारी, नीलमराज शर्मा, अंकित शर्मा, लोकेन्द्र प्रताप सिंह इटौरी, नृपेन्द्र सिंह , रेहान मोहम्मद, मनु सिंह व एस.के. समेले प्रमुख हैं। इनके अलावा जिन लोगों ने किलकिला अभियान हेतु आर्थिक सहयोग प्रदान किया है उनमें रविराज ङ्क्षसह यादव, मनीष अग्रवाल, राबिदा खातून, कमल किशोर, लक्ष्मीकान्त शर्मा, कुक्की सरकारजी, अरविन्द भदौरिया, ऋतभ खरे, आशा गुप्ता, के.पी. सिंह , बबलू यादव, अरविन्द जोशी, धीरज तिवारी, हनुमंत सिंह रजऊ राजा, मनीष शर्मा छतरपुर, मोहित त्रिपाठी, अरविन्द खरे, गोपाल मिश्रा, चीटू दादा, हितेश तिवारी, बबलू चौहान, गोपाल लालवानी, सतेन्द्र जडिय़ा, पिन्कीराजा बमरी व अरविन्द सिंह हैं।
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