ढोढऩ बांध के निर्माण से डूब जायेगा खूबसूरत घना जंगल
पन्ना टाईगर रिजर्व के 14 लाख से भी अधिक वृक्षों का होगा सफाया
वनाच्छादित पहाड़ी के नीचे खड़े होकर अपने इलाके का जायजा लेते हुए वनराज |
उल्लेखनीय है कि देश की राजधारी दिल्ली में आवासीय योजना के लिये लगभग 17 हजार पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई थी। लेकिन जैसे ही पेड़ काटे जाने की यह खबर दिल्ली वासियों तक पहुँची, तो पेड़ काटे जाने की इस योजना के विरोध में दिल्ली के लोग सड़कों पर उतर आये। पर्यावरण को भारी नुकसान होने का हवाला देते हुये हजारों लोगों ने हाँथों में तख्तियां लेकर पेड़ों को बचाने के लिये प्रदर्शन शुरू कर दिया। दिल्ली की यह घटना राष्ट्रीय मीडिया में भी छायी रही। राजधानी में 17हजार पेड़ काटे जाने की योजना पर इतना बड़ा हंगामा मचा, लेकिन इसी देश के बुन्देलखण्ड अंचल में स्थित विन्ध्यांचल की अति प्राचीन पर्वत श्रेणी के घने जंगल को उजाड़े जाने की योजना पर हंगामा तो दूर कोई हलचल भी नहीं सुनाई दे रही। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने में दो से ढाई दशक लग जायेंगे और हजारों करोड़ रू. खर्च होंगे तब जाकर कथित रूप से खेतों में हरियाली आयेगी, लेकिन इस बीच पर्यावरण को कितना नुकसान होगा तथा केन नदी का नैसर्गिक प्रवाह थमने से नीचे के सैकड़ों ग्रामों के लोगों को किस तरह के दुष्परिणाम भोगने पड़ेगे, इस दिशा में सोचने-विचारने की जरूरत ही नहीं समझी जा रही। दिल्ली में यदि 17 हजार पेड़ कटे तो पर्यावरण को नुकसान और बुन्देलखण्ड क्षेत्र का खूबसूरत वन क्षेत्र जो बाघों सहित दर्जनों प्रजाति के वन्य प्राणियों और पक्षियों का प्राकृतिक आवास है, उसे उजाडऩे पर खुशहाली आयेगी, यह कैसा तर्क है?
पहले बसाया और अब उजाड़ने की तैयारी
सदियों से बाघों का प्रिय रहवास रहा पन्ना का जंगल वैसे भी बढ़ती आबादी के दबाव में तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी है, काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन इसे उजाडऩे की भी तैयारी की जा रही है। मालुम हो कि संपूर्ण विन्ध्यांचल क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी है जो कि पश्चिम दिशा में रणथम्भोर टाईगर रिजर्व एवं पूर्व दिशा में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को छूता है। इन दोनों के बीच में विन्ध्य क्षेत्र के शुष्क बनों के एक मात्र बाघ का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये पुनस्र्थापना योजना शुरू हुई। जिसे चमत्कारिक सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 30 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं, बीते 7-8 वर्षों में यहां पर 70 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हुआ है।
पन्ना मॉडल को अपना रहे दूसरे देश
बाघों को नये सिरे से बसाने के अभिनव प्रयोग को पन्ना में जिस तरह से चमत्कारिक सफलता मिली है, उसकी ख्याति देश की सीमाओं को पार करते हुये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैल गई है। पन्ना की इस अनूठी कामयाबी को देखने, समझने और अध्ययन करने के लिये भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों सहित दूसरे देशों के वन अधिकारी व वन्य प्राणी विशेषज्ञ यहां आने लगे हैं। पन्ना के बाघ पुनस्र्थापना की कामयाबी से कम्बोडिया इस कदर प्रभावित हुआ है कि अब वह अपने यहां पन्ना की ही तर्ज पर बाघों को आबाद करने की दिशा में अग्रसर हुआ है। मालुम हो कि पूर्व में पन्ना सिर्फ बेशकीमती हीरों के लिये जाना जाता था लेकिन अब वह पूरी दुनिया में बाघों के लिये भी जाना जाने लगा है। पन्ना टाईगर रिजर्व जो अतीत में पन्ना के विकास में सबसे बड़ी बाधा था, वह अब यहां के विकास का वाहक बनकर उभरा है। ऐसी स्थिति में दर्जनों बाघों, बल्चरों व विभिन्न प्रजाति के वन्य प्राणियों से गुलजार इस हरे-भरे इलाके को आखिर क्यों उजाड़ा जा रहा है? जबकि बांध बनने से हो रहे नुकसान की तुलना में पन्ना जिले को लाभ न के बराबर मिलना है। ढोढऩ बांध का निर्माण इस अंचल की आरण्यक संस्कृति को तहस-नहस करने वाला साबित होगा।
ढोढन बांध से जुड़े कुछ तथ्य
टाईगर रिजर्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी जिसमें बांध बनना है। |
पहले बसाया और अब उजाड़ने की तैयारी
सदियों से बाघों का प्रिय रहवास रहा पन्ना का जंगल वैसे भी बढ़ती आबादी के दबाव में तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी है, काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन इसे उजाडऩे की भी तैयारी की जा रही है। मालुम हो कि संपूर्ण विन्ध्यांचल क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी है जो कि पश्चिम दिशा में रणथम्भोर टाईगर रिजर्व एवं पूर्व दिशा में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को छूता है। इन दोनों के बीच में विन्ध्य क्षेत्र के शुष्क बनों के एक मात्र बाघ का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये पुनस्र्थापना योजना शुरू हुई। जिसे चमत्कारिक सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 30 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं, बीते 7-8 वर्षों में यहां पर 70 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हुआ है।
प्रस्तावित बांध का विरोध करते स्कूली बच्चे। |
बाघों को नये सिरे से बसाने के अभिनव प्रयोग को पन्ना में जिस तरह से चमत्कारिक सफलता मिली है, उसकी ख्याति देश की सीमाओं को पार करते हुये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैल गई है। पन्ना की इस अनूठी कामयाबी को देखने, समझने और अध्ययन करने के लिये भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों सहित दूसरे देशों के वन अधिकारी व वन्य प्राणी विशेषज्ञ यहां आने लगे हैं। पन्ना के बाघ पुनस्र्थापना की कामयाबी से कम्बोडिया इस कदर प्रभावित हुआ है कि अब वह अपने यहां पन्ना की ही तर्ज पर बाघों को आबाद करने की दिशा में अग्रसर हुआ है। मालुम हो कि पूर्व में पन्ना सिर्फ बेशकीमती हीरों के लिये जाना जाता था लेकिन अब वह पूरी दुनिया में बाघों के लिये भी जाना जाने लगा है। पन्ना टाईगर रिजर्व जो अतीत में पन्ना के विकास में सबसे बड़ी बाधा था, वह अब यहां के विकास का वाहक बनकर उभरा है। ऐसी स्थिति में दर्जनों बाघों, बल्चरों व विभिन्न प्रजाति के वन्य प्राणियों से गुलजार इस हरे-भरे इलाके को आखिर क्यों उजाड़ा जा रहा है? जबकि बांध बनने से हो रहे नुकसान की तुलना में पन्ना जिले को लाभ न के बराबर मिलना है। ढोढऩ बांध का निर्माण इस अंचल की आरण्यक संस्कृति को तहस-नहस करने वाला साबित होगा।
ढोढन बांध से जुड़े कुछ तथ्य
- केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
- जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
- बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
- ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली ङ्क्षलक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
- बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
- 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी. से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।
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