Monday, July 30, 2018

बच्चों ने दीवार में चित्र बनाकर दिया बाघ संरक्षण का संदेश

  •   प्रकृति के विविध रूपों को ब्रश व पेंट की मदद से किया साकार
  •   छात्र-छात्राओं की सोच और कला का दीवार में हुआ प्रदर्शन
  •   बाघों को संकट से बचाने तथा उनके संरक्षण की दिशा में अनूठी पहल


बाघ संरक्षण का सन्देश देने दीवाल पर प्रकृति के विविध रूपों का चित्रण करते स्कूली बच्चे। फोटो - अरुण सिंह 

अरुण सिंह,पन्ना। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस को म.प्र. के पन्ना शहर में आज रविवार को बड़े ही अनूठे अंदाज में मनाया गया। राष्ट्रीय पशु बाघ को बचाने तथा उनके संरक्षण हेतु आम लोगों में जागरूकता पैदा करने के मकसद से शहर के मध्य में स्थित पॉलीटेक्निक कॉलिज की दीवार में चित्र उकेरकर पेंटिंग बनाने की प्रतियोगिता आयोजित की गई। इस अनूठी प्रतियोगिता में विभिन्न विद्यालयों के छात्र-छात्राओं सहित कलाकारों ने बड़े ही उत्साह के साथ भाग लिया। वन विभाग व म.प्र. टाईगर फाउण्डेशन सोसायटी के संयुक्त तत्वाधान में आयोजित हुई इस पेंटिंग प्रतियोगिता को देखने बड़ी संख्या में लोग पहुँचे। निश्चित ही इस आयोजन से अपने वजूद को बचाने के लिये संघर्ष कर रहे संकट से घिरे बाघों के संरक्षण की महत्ता का संदेश आम जनता तक पहुँचेगा।
उल्लेखनीय है कि अवैध शिकार, तेजी से घटते वन क्षेत्र और विकास परियोजनाओं के कारण बाघों के अस्तित्व पर संकट मंडरा रहा है। उनके विचरण क्षेत्र व प्राकृतिक रहवास नष्ट हो रहे हैं, जिसे देखते हुये पूरी दुनिया का ध्यान जंगल की शान कहे जाने वाले इस शानदार वन्य जीव को बचाने और उसे संरक्षित करने की ओर गया है। म.प्र. के पन्ना टाईगर रिजर्व ने तो बाघों के वजूद को बचाने की दिशा में एक नई राह दिखाई है। बीते एक दशक पूर्व तक पन्ना के जंगल में बाघों की संतोषप्रद मौजूदगी थी, लेकिन अवैध शिकार और कुप्रबंध के चलते पन्ना के जंगलों से बाघों का वर्ष 2009 में पूरी तरह से सफाया हो गया। कभी बाघों के लिये प्रसिद्ध रहा पन्ना टाईगर रिजर्व बाघ विहीन होने के साथ ही एक शोक गीत में तब्दील हो गया।

बाघ पुनर्स्थापना  योजना को मिली कामयाबी





पूरी तरह से बाघ विहीन होने के बाद पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिये बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई। इस योजना के तहत पेंच टाईगर रिजर्व से एक नर बाघ तथा कान्हा व बान्धवगढ़ टाईगर रिजर्व से दो बाघिनों को प्रथम चरण में पन्ना लाया गया। टाईगर मैन के रूप में देश व दुनिया में प्रसिद्ध हो चुके आर. श्रीनिवास मूर्ति को प्रदेश सरकार ने पन्ना के पुनरूत्थान की जवाबदारी सौंपी। उन्होंने अपनी लगन, निष्ठा और ईमानदारी की मिशाल कायम करते हुये वन अधिकारियों व मैदानी कर्मचारियों में वह जज्बा भरा कि देखते ही देखते पन्ना टाईगर रिजर्व नन्हे शावकों की किलकारियों से गुलजार हो उठा। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में जहां 30 से अधिक बाघ हैं, वहीं बफर व दूसरे वन क्षेत्रों में भी यहां के बाघ विचरण कर रहे हैं। पुनस्र्थापना योजना के बाद टाईगर रिजर्व में 70 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हो चुका है।

पन्ना ने दिखाई बाघ संरक्षण की राह




बाघ पुनस्र्थापना योजना को मिली शानदार सफलता से बाघ विहीन पन्ना टाईगर रिजर्व जहां फिर से आबाद हुआ, वहीं पन्ना ने पूरी दुनिया को बाघ संरक्षण की नई राह भी दिखाई। पन्ना की इस कामयाबी से कई देश सबक सीखकर अपने यहां भी पन्ना की ही तर्ज पर बाघों की वंशवृद्धि के लिये प्रयास कर रहे हैं। लेकिन दुनिया को सीख देने और नई राह दिखाने वाले पन्ना के जंगलों में ही अब वन्य प्राणियों के शिकार की घटनायें फिर से होने लगी हैं। बीते दो माह के दौरान ही दो तेंदुआ व एक भालू का शिकार हो चुका है, जो चिन्ता की बात है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ संरक्षण दिवस पर स्कूली बच्चों ने अपनी सोच और कला का प्रदर्शन करते हुये जो संदेश दिया है, उसका आम जनमानस में असर होगा, यह उम्मीद की जा रही है।

ईको सिस्टम का पैमाना होता है बाघ




जिस इलाके के जंगल में बाघ की मौजूदगी होती है, वह इस बात का द्योतक है कि वहां का जंगल समृद्ध और स्वस्थ है। बाघ ईको सिस्टम का पैमाना होता है। मालुम हो कि खुले जंगल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करने वाले बाघ और चिडिय़ाघर के बाघ में काफी अन्तर होता है। अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस पर चिडिय़ाघर या बाड़ों में कैद बाघों की नहीं अपितु खुले जंगल में बिंदास विचरण करने वाले बाघों की घटती संख्या व मंडराते संकट पर चर्चा होती है। क्योंकि पर्यावरण संरक्षण के लिये खुले जंगल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करने वाले बाघों का संरक्षण जरूरी है।

मड़ला में बच्चों ने निकाली जागरूकता रैली


अंतर्राष्ट्रीय बाघ दिवस के मौके पर 29 जुलाई को मड़ला स्थित पन्ना टाईगर रिजर्व के प्रवेश द्वार से कर्णावती व्याख्यान केन्द्र तक जागरूकता रैली निकाली गई। इस रैली में विभिन्न स्कूलों के छात्र-छात्राओं ने उत्साह के साथ भाग लिया। जागरूकता रैली के उपरान्त कर्णावती व्याख्यान केन्द्र में क्विज प्रतियोगिता का आयोजन हुआ, जिसमें बच्चों से पर्यावरण व बाघ संरक्षण से संबंधित सवाल पूछे गये। जिन बच्चों ने सवालों का सही जवाब दिया उन्हें मंचासीन अतिथियों द्वारा सम्मानित किया गया। कार्यक्रम में पन्ना टाईगर रिजर्व के फील्ड डायरेक्टर आर.के. मिश्रा, डिप्टी डायरेक्टर बासु कनौजिया सहित वन अधिकारी, कर्मचारी व पत्रकार मौजूद रहे।

वन अधिकारियों ने बच्चों का बढ़ाया उत्साह




दीवार पर प्रकृति के विविध मनमोहक रूपों का चित्र उकेरकर संरक्षण का संदेश देने के लिये आयोजित इस अनूठी प्रतियोगिता में भागीदारी निभाने वाले स्कूली बच्चों का वन अधिकारियों ने मौके पर उपस्थित रहकर उत्साह वर्धन किया। बच्चों ने भी बड़े ही उत्साह के साथ इस प्रतियोगिता में अपनी भागीदारी निभाते हुये चित्र बनाये। कार्यक्रम में वन मण्डलाधिकारी उत्तर नरेश ङ्क्षसह यादव, दक्षिण श्रीमति मीना मिश्रा, जिला पंचायत सीईओ गिरीश मिश्रा, जिला पंचायत पन्ना के अध्यक्ष रविराज सिंह यादव, विश्रामगंज एसडीओ नरेन्द्र सिंह परिहार, पन्ना एसडीओ जाहिल गर्ग तथा हेमन्त यादव इस चित्रकला प्रतियोगिता के दौरान पूरे समय मौजूद रहे।
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Saturday, July 28, 2018

बारिश की बूंदों से निखरा जंगल का अप्रतिम सौंदर्य

  •  जीवंत हो उठे झरनों को देख मंत्र मुग्ध हो रहे पर्यटक
  •  पन्ना के जंगलों में झरनों व जल प्रपातों की है भरमार





अरुण सिंह,पन्ना। बारिश की बूंदों का संपर्क होने से पन्ना के हरे-भरे जंगल का सौंदर्य निखर उठा है। बीते कई दिनों से हो रही झमाझम बारिश के चलते पन्ना टाईगर रिज़र्व सहित आसपास की पहाडिय़ों से गिरने वाले झरने जीवंत हो उठे हैं। जंगल, पहाड़ व मैदान हर तरफ हरियाली ही हरियाली नजर आ रही है। प्रकृति का यह अप्रतिम सौन्दर्य हर किसी को मोहित कर रहा है। मन्दिरों के शहर पन्ना के आसपास हरी-भरी पहाडिय़ों से गिरने वाले झरने ऐसा सौन्दर्य बिखेर रहे हैं, जिसे देख लोग मंत्रमुग्ध हो जाते हैं। प्रकृति के अल्हड़पन, खूबसूरती व सौन्दर्य का ऐसा नजारा बारिश के मौसम में ही नजर आता है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना में घने जंगलों के बीच से प्रवाहित होने वाली केन नदी का अप्रतिम सौन्दर्य इन दिनों देखने जैसा है। अपने जेहन में अनगिनत खूबियों को समेटे यह अनूठी नदी डग-डग पर सौन्दर्य की सृष्टि करती तथा पग-पग पर प्राकृतिक सुषमा को बिखेरती हुई प्रवाहित होती है। लेकिन किसी नदी का ऐसा अद्भुत सौन्दर्य शायद ही कहीं देखने को मिले जो रनेह फाल में नजर आता है। पन्ना टाइगर रिजर्व में आने वाला यह अनूठा स्थल खूबियों और विशेषताओं से भरा है। लाल रंग के ग्रेनाइट व काले पत्थरों के बीच से केन नदी की दर्जनों धारायें विविध मार्गों से प्रवाहित होकर जब नीचे गिरती हैं तो प्रकृति प्रेमी पर्यटक अपनी सुध-बुध खो देते हैं। बारिश के मौसम में जब केन नदी उफान पर होती है उस समय रनेह फाल के सौन्दर्य को निहारना कितना आनन्ददायी है, इसकी अनुभूति यहां पहुँचकर ही की जा सकती है। लगभग 30 मीटर की ऊंचाई से जल की धारा को नीचे गहराई पर गिरते हुए देख पर्यटक विष्मय विमुग्ध हो जाते हैं। विशेष गौरतलब बात यह है कि रनेह फाल को केन घडिय़ाल सेन्चुरी के रूप में विकसित किया गया है। यहां केन नदी के अथाह जल में दर्जनों की संख्या में घडिय़ाल अठखेलियां करते हैं। खूबसूरत नदी, रंग बिरंगी चट्टाने व घडिय़ालों का एक ही जगह पर समागम दुर्लभ और बेजोड़ है। इसीलिए हीरों की धरती के बारे में कहा जाता है कि इस धरा को प्रकृति ने अनुपम उपहारों से समृद्ध किया है। अकेले पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र में ही ऐसे अनेकों झरने व जल प्रपात हैं जो किसी को भी सम्मोहित करने की क्षमता रखते हैं। पन्ना से लगभग 12 किमी दूर राष्ट्रीय राजमार्ग  के किनारे स्थित पाण्डव जल प्रपात व उसके पास ही भैरव घाटी से कैमासन फाल का अनुपम सौन्दर्य देखते ही बनता है। पन्ना टाइगर रिजर्व का पाण्डव जल प्रपात प्रकृति का एक ऐसा तोहफा है जिसे देखने व यहां की प्राकृतिक सुषमा के बीच कुछ क्षण बिताने के लिए लोग खिंचे चले आते हैं। इस जल प्रपात में भी लगभग 30 मीटर की ऊंचाई से पानी गिरता है। नीचे पानी का विशाल कुण्ड तथा आस-पास बनी प्राचीन गुफायें प्रपात की खूबसूरती में चार चांद लगा देती हैं। स्थानीय लोगों की ऐसी मान्यता है कि अज्ञातवास के समय पाण्डवों ने इस प्रपात के किनारे बनी गुफाओं में कुछ समय व्यतीत किया था। इसी मान्यता के चलते इस प्रपात का नाम पाण्डव प्रपात पड़ा है। पन्ना जिले में मौजूद दर्जनों खूबसूरत प्रपातों के कारण ही इस जिले को हीरों, मन्दिरों व झरनों की भूमि कहा जाता है।

                        बृहस्पति कुण्ड का सौन्दर्य है बेमिशाल


पन्ना से लगभग 30 किमी दूर स्थित बृहस्पति कुण्ड का सौन्दर्य आज भी बेमिशाल है। इस कुण्ड में रत्नगर्भा बाघिन नदी ऊंचाई से गिरती है,फलस्वरूप इस नदी के प्रवाह क्षेत्र में बेशकीमती हीरे मिलते हैं। हीरों की खोज में सैकड़ों लोग यहां पर खदान लगाते हैं जिससे यहां की प्राकृतिक खूबी तिरोहित हो रही है। वन औषधियों व जड़ी-बूटियों से समृद्ध इस खूबसूरत स्थल का यदि सुनियोजित विकास करके यहां के प्राकृतिक सौन्दर्य का संरक्षण किया जाय तो यह स्थल भी पाण्डव जल प्रपात की तरह देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है। लेकिन पर्यटन विकास की अनगिनत खूबियों के बावजूद यह मनोरम स्थल उपेक्षित है और अवैध खदानों के कारण यहां का सौन्दर्य उजड़ रहा है।
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Friday, July 13, 2018

जंगल के राजा को तब ढूंढना पड़ेगा नया बसेरा...

ढोढऩ बांध के निर्माण से डूब जायेगा खूबसूरत घना जंगल
पन्ना टाईगर रिजर्व के 14 लाख से भी अधिक वृक्षों का होगा सफाया


वनाच्छादित पहाड़ी के नीचे खड़े होकर अपने इलाके का जायजा लेते हुए वनराज

पन्ना 13 जुलाई 18 । म.प्र. के बुन्देलखण्ड क्षेत्र में स्थित पन्ना टाईगर रिजर्व का वजूद संकट में है। केन-बेतवा लिक परियोजना के तहत ढोढऩ गाँव के पास केन नदी पर यदि प्रस्तावित बांध का निर्माण कराया गया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का खूबसूरत घने जंगल से आच्छादित एक बड़ा हिस्सा डूब जायेगा। डूब में आने वाला यह वन क्षेत्र राष्ट्रीय पशु बाघ व विलुप्ति की कगार में पहुँच चुके गिद्धों का प्रिय रहवास है। बांध बनने पर इस वन क्षेत्र के 14 लाख से भी अधिक वृक्षों का सफाया हो जायेगा, इन हालातों में अपने ही घर से बेदखल हो जाने पर जंगल के राजा को अपना वजूद बचाने के लिये नया बसेरा ढूँढऩा पड़ेगा।

उल्लेखनीय है कि देश की राजधारी दिल्ली में आवासीय योजना के लिये लगभग 17 हजार पेड़ों को काटने की योजना बनाई गई थी। लेकिन जैसे ही पेड़ काटे जाने की यह खबर दिल्ली वासियों तक पहुँची, तो पेड़ काटे जाने की इस योजना के विरोध में दिल्ली के लोग सड़कों पर उतर आये। पर्यावरण को भारी नुकसान होने का हवाला देते हुये हजारों लोगों ने हाँथों में तख्तियां लेकर पेड़ों को बचाने के लिये प्रदर्शन शुरू कर दिया। दिल्ली की यह घटना राष्ट्रीय मीडिया में भी छायी रही। राजधानी में 17हजार पेड़ काटे जाने की योजना पर इतना बड़ा हंगामा मचा, लेकिन इसी देश के बुन्देलखण्ड अंचल में स्थित विन्ध्यांचल की अति प्राचीन पर्वत श्रेणी के घने जंगल को उजाड़े जाने की योजना पर हंगामा तो दूर कोई हलचल भी नहीं सुनाई दे रही। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने में दो से ढाई दशक लग जायेंगे और हजारों करोड़ रू. खर्च होंगे तब जाकर कथित रूप से खेतों में हरियाली आयेगी, लेकिन इस बीच पर्यावरण को कितना नुकसान होगा तथा केन नदी का नैसर्गिक प्रवाह थमने से नीचे के सैकड़ों ग्रामों के लोगों को किस तरह के दुष्परिणाम भोगने पड़ेगे, इस दिशा में सोचने-विचारने की जरूरत ही नहीं समझी जा रही। दिल्ली में यदि 17 हजार पेड़ कटे तो पर्यावरण को नुकसान और बुन्देलखण्ड क्षेत्र का खूबसूरत वन क्षेत्र जो बाघों सहित दर्जनों प्रजाति के वन्य प्राणियों और पक्षियों का प्राकृतिक आवास है, उसे उजाडऩे पर खुशहाली आयेगी, यह कैसा तर्क है?

टाईगर रिजर्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी जिसमें बांध बनना है।

पहले बसाया और अब उजाड़ने की तैयारी

सदियों से बाघों का प्रिय रहवास रहा पन्ना का जंगल वैसे भी बढ़ती आबादी के दबाव में तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी है, काफी हद तक सुरक्षित है, लेकिन इसे उजाडऩे की भी तैयारी की जा रही है। मालुम हो कि संपूर्ण विन्ध्यांचल क्षेत्र का क्षेत्रफल लगभग 1.5 लाख वर्ग किमी है जो कि पश्चिम दिशा में रणथम्भोर टाईगर रिजर्व एवं पूर्व दिशा में बांधवगढ़ टाईगर रिजर्व को छूता है। इन दोनों के बीच में विन्ध्य क्षेत्र के शुष्क बनों के एक मात्र बाघ का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था, फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये पुनस्र्थापना योजना शुरू हुई। जिसे चमत्कारिक सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में 30 से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं, बीते 7-8 वर्षों में यहां पर 70 से भी अधिक बाघ शावकों का जन्म हुआ है।

प्रस्तावित बांध का विरोध करते स्कूली बच्चे।
पन्ना मॉडल को अपना रहे दूसरे देश

बाघों को नये सिरे से बसाने के अभिनव प्रयोग को पन्ना में जिस तरह से चमत्कारिक सफलता मिली है, उसकी ख्याति देश की सीमाओं को पार करते हुये अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर फैल गई है। पन्ना की इस अनूठी कामयाबी को देखने, समझने और अध्ययन करने के लिये भारतीय वन सेवा के प्रशिक्षु अधिकारियों सहित दूसरे देशों के वन अधिकारी व वन्य प्राणी विशेषज्ञ यहां आने लगे हैं। पन्ना के बाघ पुनस्र्थापना की कामयाबी से कम्बोडिया इस कदर प्रभावित हुआ है कि अब वह अपने यहां पन्ना की ही तर्ज पर बाघों को आबाद करने की दिशा में अग्रसर हुआ है। मालुम हो कि पूर्व में पन्ना सिर्फ बेशकीमती हीरों के लिये जाना जाता था लेकिन अब वह पूरी दुनिया में बाघों के लिये भी जाना जाने लगा है। पन्ना टाईगर रिजर्व जो अतीत में पन्ना के विकास में सबसे बड़ी बाधा था, वह अब यहां के विकास का वाहक बनकर उभरा है। ऐसी स्थिति में दर्जनों बाघों, बल्चरों व विभिन्न प्रजाति के वन्य प्राणियों से गुलजार इस हरे-भरे इलाके को आखिर क्यों उजाड़ा जा रहा है? जबकि बांध बनने से हो रहे नुकसान की तुलना में पन्ना जिले को लाभ न के बराबर मिलना है। ढोढऩ बांध का निर्माण इस अंचल की आरण्यक संस्कृति को तहस-नहस करने वाला साबित होगा।

ढोढन बांध से जुड़े कुछ तथ्य
  • केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
  • जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
  • बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
  • ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली ङ्क्षलक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
  • बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
  • 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी. से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।
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दैनिक जागरण में छपि रिपोर्ट