Saturday, November 17, 2018

चुनाव प्रचार में आखिर क्यों गायब हैं असल मुद्दे?

  •  जनता से जुड़े मुद्दों पर हावी है पैसा और जातीय समीकरण  
  • मंहगाई, शिक्षा, स्वास्थ्य, बेरोजगारी और भ्रष्टाचार अहम मुद्दे
  •   जनता की समस्याओं से प्रत्याशियों को नहीं है कोई सरोकार



अरुण सिंह, पन्ना। बेशकीमती हीरों की खान और बुन्देल-   केशरी महाराज छत्रसाल की वीर गाथाओं के लिये प्रसिद्ध मध्य प्रदेश के पन्ना जिले की तीनों विधानसभा सीटों में चुनाव प्रचार अब जोर पकडऩे लगा है। चुनाव के लिये जिले की तीनों विधानसभाओं में कुल 891 मतदान केन्द्र बनाये गये हैं, जहां जिले के 6 लाख 98 हजार 551 मतदाता अपने मताधिकार का प्रयोग कर सकेंगे। चुनाव चिह्न आवंटन के साथ ही चुनाव के मैदान में उतरे महारथियों व उनके बीच होने वाले मुकाबले की तस्वीर स्पष्ट हो गई है। जिले के पन्ना विधानसभा क्षेत्र में सर्वाधिक 19 प्रत्याशी चुनाव के मैदान में हैं, जबकि सबसे कम गुनौर विधानसभा क्षेत्र में महज 4 प्रत्याशी अपना भाग्य आजमा रहे हैं। हमेशा सुॢखयों में रहने वाली जिले की पवई विधानसभा सीट से 14 प्रत्याशी चुनाव अखाड़े में उतरकर ताल ठोंक रहे हैं।

विधानसभा के इस चुनाव में प्रत्याशियों की तस्वीर साफ हो जाने तथा प्रमुख राजनीतिक दलों के चुनाव प्रचार अभियान पर यदि नजर डाली जाये तो साफ दिखाई देता है कि हर प्रत्याशी की लालसा येन केन प्रकारेण चुनाव जीतना है, इसके लिये उसे चाहे जो हथकण्डे अपनाना  पड़े, इससे उसे कोई गुरेज नहीं है। चुनाव प्रचार के प्रारंभिक दौर में आम जनता की समस्याओं व विकास से जुड़े मुद्दे गायब हैं। जनता से जुड़े यहां के असल मुद्दों पर पैसे की खनक और जातीय समीकरण हावी हैं। चुनाव में पैसे के प्रभाव व असर का यह आलम है कि कल तक क्षेत्र के मतदाता जिसे जानते व पहचानते तक नहीं थे, अचानक सैकड़ों किमी. दूर दूसरे जिला ही नहीं अपितु दूसरे प्रान्त के प्रत्याशी ने एक राजनीतिक दल का टिकिट हासिल करके पन्ना विधानसभा क्षेत्र के चुनावी अखाड़े में हलचल पैदा कर दी है। इस धना ढ्य बाहुबली प्रत्याशी के आने से जातिवाद की हवा जहां तेज होने लगी है, वहीं सामाजिक समरसता और भाईचारे का माहौल भी दूषित हो रहा है। ऐसा प्रतीत होता है कि जिले के अहम व असल मुद्दों तथा आम जनता की समस्याओं और तकलीफों से प्रत्याशियों को दूर-दूर तक कहीं कोई सरोकार नहीं है। उनका एक मात्र लक्ष्य चुनाव में फतह हासिल करना है, इसके लिये उन्हें चाहे जैसा जोड़-तोड़ करना पड़े उसके लिये वे तत्पर नजर आ रहे हैं।

मालुम हो कि बुन्देलखण्ड क्षेत्र का यह जिला प्राकृतिक व खनिज सम्पदा से समृद्ध है, बावजूद इसके यहां का अपेक्षित विकास नहीं हुआ। जिले में शिक्षा और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति जहां बदहाल है, वहीं गरीबी, बेरोजगारी  और भ्रष्टाचार से आम जन त्रस्त हैं। जिले के शिक्षित युवा मतदाताओं की सबसे बड़ी चिन्ता जहां रोजगार को लेकर है वहीं गृहणियां व बुजुर्ग महिलायें चाहती हैं कि सुरसा की तरह मुँह फैलाकर बढऩे वाली मंहगाई पर लगाम लगे। लेकिन विचारणीय और चिन्ता की बात यह है कि किसी भी प्रत्याशी के पास युवा मतदाताओं व गृहणियों का समर्थन हासिल करने के लिये कोई स्पष्ट नीति व विजन नहीं है। जिससे जिले का मतदाता भ्रमित और ऊहा पोह की स्थिति में है। चुनाव में यदि जनता से जुड़े अहम मुद्दों को राजनीतिक दलों व प्रत्याशियों द्वारा अनदेखा किया गया तो हमेशा की तरह इस बार भी जाति और विचारधारा के आधार पर वोट पड़ सकते हैं। नतीजतन इस साँचे में फिट बैठने वाला कोई भी प्रत्याशी योग्यता और काबलियत को दरकिनार करते हुये चुनाव जीत सकता है। जाहिर है कि इन हालातों में विकास और बदलाव के सपने साकार नहीं होंगे।
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