Friday, February 8, 2019

राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे वनराज का बसेरा

  •   मार्ग से गुजरने वाले राहगीरों को आये दिन हो रहे दर्शन
  •   मड़ला के निकट स्थित संभुआ नाला बना आकर्षण का केन्द्र


राष्ट्रीय राजमार्ग के किनारे स्थित जंगल में अपना बसेरा बनाने वाला बाघ। 

अरुण सिंह,पन्ना। जंगल में स्वच्छन्द रूप से विचरण करते या फिर शाही अंदाज में आराम फरमाते हुये वनराज को देखना किसी के लिये भी रोमांचक अनुभव होता है। इस रोमांच की अनुभूति के लिये लोग हजारों रू. खर्च कर सैकड़ों किमी दूर से बाघ अभ्यारण्यों की सैर करते हैं ताकि उन्हें वनराज की झलक मिल जाये। इतनी मशक्कत करने के बादभी यह जरूरी नहीं है कि अभ्यारण्यों के खुले जंगल में हर किसी को बाघ के दर्शन हो ही जायें। ज्यादातर लोगों को तो निराशा ही हाँथ लगती है और उन्हें दूसरे वन्यजीवों का दीदार करके ही संतोष करना पड़ता है। लेकिन पन्नावासियों के लिये बाघ दर्शन अब सहज और स्वाभाविक हो चुका है। यहां सड़क मार्ग से गुजरते हुये कब और कहां से वनराज प्रकट हो जायें कुछ कहा नहीं जा सकता। पन्ना टाईगर रिजर्व से होकर गुजरने वाले राष्ट्रीय राजमार्ग क्रमांक 39 के किनारे जंगल में तो एक नर बाघ ने अपना बसेरा ही बना लिया है। ऐसी स्थिति में इस बाघ के सड़क मार्ग से ही आये दिन दर्शन हो रहे हैं।
उल्लेखनीय है कि पन्ना टाईगर रिजर्व के मड़ला प्रवेश द्वार से कुछ ही दूरी पर स्थित संभुआ नाला इन दिनों राहगीरों सहित पर्यटकों के भी आकर्षण का केन्द्र बन चुका है। इसी नाले के आस-पास जंगल में यह बाघ पिछले कुछ दिनों से डेरा डाले हुये है। सड़क मार्ग के दोनों तरफ जंगल है, इसलिये जब भी मौज होती है वनराज  चहल कदमी करते हुये सड़क पार कर इस तरफ से उस तरफ आते-जाते रहते हैं। यह अद्भुत और रोमांचकारी नजारा स्थानीय लोग तो आये दिन देखते ही हैं, यहां से गुजरने वाले यात्रियों को भी बाघ दर्शन के अवसर प्राप्त हो रहे हैं। यह स्थिति सिर्फ पन्ना-छतरपुर नेशनल हाईवे भर में नहीं है, अपितु पन्ना-अमानगंज स्टेट हाईवे में भी यदा-कदा बाघ सड़क मार्ग पर ही चहल कदमी करते दिख जाते हैं। इस मार्ग में तो कभी-कभी पूरा बाघ परिवार ही निकल पड़ता है, फलस्वरूप सड़क मार्ग के दोनों तरफ आवागमन थम जाता है और लोग वाहनों के भीतर से ही बाघों का दीदार कर रोमांच का अनुभव करते हैं।
मड़ला के ग्रामीणों तथा पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोगों ने अचानक से प्रकट हुये इस अजनबी बाघ का नामकरण तक कर दिया है। इस वयस्क नर बाघ की एक आँख में सफेद धब्बा सा दिखाई देता है, इसीलिये इसे लोग किसी फिल्मी किरदार का नाम देते हुये विट्ठल  कार्णया कहकर पुकारते हैं। इस वयस्क बाघ ने बीते डेढ़-दो सप्ताह के दौरान एक बैल सहित वन्यजीवों का शिकार भी किया है और इसी इलाके में रमा हुआ है। यह बाघ टाईगर रिजर्व के बेहद सुरक्षित और सुकून वाले कोर क्षेत्र के भीतरी हिस्से से इतर सड़क मार्ग से लगे वन क्षेत्र को अपना बसेरा क्यों बनाया, यह अध्ययन का विषय है। लेकिन यह बाघ जनमानस व पर्यटकों के बीच चर्चा का विषय जरूर बन गया है।

बाघिन पी-213 की संतान है यह बाघ

ग्रामवासियों और पर्यटकों द्वारा जिस बाघ को अजनबी बताकर उसका नामकरण कर दिया गया है, दरअसल वह अजनबी नहीं अपितु पन्ना टाईगर रिजर्व में ही जन्मा बाघ है। यह बाघिन पी-213 के तीसरे लिटर की पहली संतान है। क्षेत्र संचालक पन्ना टाईगर रिजर्व कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक विगत 1 वर्ष पूर्व यह नर बाघ कोर क्षेत्र से बाहर निकल गया था। पूरे 1 साल बाद यह फिर वापस लौटा है और मड़ला के आस-पास विशेषकर संभुआ नाला से लगे जंगल को अपना नया बसेरा बना लिया है। इस बाघ की माँ पी-213 भी पन्ना में ही जन्मी है जो संस्थापक बाघिन टी-2 की संतान है। पन्ना टाईगर रिजर्व में बाघों का कुनबा बसाने में बाघिन टी-2 तथा इसकी बेटी पी-213 का अहम योगदान है।

अब तक 77 शावकों का हो चुका है जन्म

वर्ष 2009 में पन्ना टाईगर रिजर्व के बाघ विहीन घोषित होने पर इसी वर्ष यहां पर बाघ पुनस्र्थापना योजना शुरू की गई। पन्ना में बाघों की नई दुनिया बसाने के लिये बांधवगढ़ व कान्हा से बाघिन तथा पेंच टाईगर रिजर्व से नर बाघ लाया गया था। उस समय आर. श्रीनिवास मूॢत व उनकी टीम ने पन्ना में बाघों का संसार बसाने के लिये अथक श्रम किया, फलस्वरूप बाघ पुनस्र्थापना योजना का शानदार और चमत्कारिक सफलता मिली। बीते 9 वर्षों में यहां संस्थापक बाघिनों व उनकी संतानों द्वारा 77 शावकों को जन्म दिया जा चुका है। पन्ना में जन्मे बाघ केन से लेकर सोन तक विचरण कर रहे हैं। मिली जानकारी के अनुसार मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व में कुल 47 बाघ हैं जिनमें 27 वयस्क व 20 अवयस्क बाघ हैं। इन बाघों में 15 नर व 14 मादा बाघ हैं जबकि 18 बाघ शावकों के लिंग की पहचान अभी नहीं हो सकी है।
इस बाघ की दैनिक जागरण में प्रकाशित खबर 

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