Monday, July 1, 2019

बुन्देलखण्ड के पन्ना जिले में अनूठी है रथयात्रा की परम्परा


  •   जगन्नाथपुरी के बाद देश की सबसे पुरानी रथयात्राओं में शामिल
  •   इस धार्मिक समारोह में मिलती है  राजशी ठाट-बाट व वैभव की झलक


पन्ना में निकलने वाली रथयात्रा का नजारा। - (फाइल फोटो)


अरुण सिंह,पन्ना। बुन्देलखण्ड क्षेत्र के पन्ना शहर में हर साल आयोजित होने वाली रथयात्रा की परम्परा अनूठी है । देश की तीन सबसे पुरानी व बड़ी रथयात्राओं में पन्ना की रथयात्रा भी शामिल है।  ओडि़शा के जगन्नाथपुरी की तर्ज पर यहां  आयोजित होने वाले इस भव्य धार्मिक समारोह  में राजशी ठाट-बाट और वैभव की झलक देखने को मिलती है । रथयात्रा के दौरान भगवान जगन्नाथ स्वामी की एक झलक पाने समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र से हजारों की संख्या में श्रद्धालु यहां  पहुँचते हैं । पन्ना जिले के इस सबसे बड़े धार्मिक समारोह  के दरम्यान यहां  की अद्भुत और निराली छटा देखते ही  बनती है । पन्ना की यह  ऐतिहासिक रथयात्रा 166 वर्ष पूर्व तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह  द्वारा शुरू कराई गई थी, जो परम्परानुसार अनवरत् जारी है । इस वर्ष रथयात्रा 4 जुलाई को शाम 6:30 बजे पूरे विधि विधान के साथ जगन्नाथ स्वामी मन्दिर से निकलेगी।
उल्लेखनीय है  कि पन्ना जिले की प्राचीन व ऐतिहासिक रथयात्रा महोत्सव को भव्यता व गरिमा प्रदान करने के लिये इस वर्ष विशेष तैयारियां की जा रही हैं । जिले के प्रशासनिक मुखिया कर्मवीर शर्मा सहित नगर के गणमान्य जन इसमें विशेष रूचि ले रहे  हैं । जानकारों का कहना है कि पन्ना नरेश महाराजा किशोर सिंह  ने जब यहां  रथयात्रा महोत्सव की शुरुआत की थी, उस समय वे पुरी से भगवान जगन्नाथ स्वामी जी की मूर्ति लेकर आये थे और पन्ना में भव्य मन्दिर का निर्माण कराया था। पुरी में चूंकि समुद्र है  इसलिये पन्ना के जगन्नाथ स्वामी मन्दिर के सामने सुन्दर सरोवर का निर्माण कराया गया था। तभी से यहां  पुरी की ही  तर्ज पर रथयात्रा समारोह का आयोजन होता है  जिसमें लाखों लोग पूरे भक्ति भाव और श्रद्धा के साथ शामिल होते हैं । ऐसी किवदंती है  कि जिस वर्ष यहां  मन्दिर का निर्माण हुआ तो यहाँ  अटका चढ़ाया गया। महाराजा किशोर सिंह  को स्वप्न आया कि पन्ना में अटका न चढ़ाया जाये अन्यथा पुरी का महत्व कम हो  जायेगा। इसलिये यहां  भगवान जगन्नाथ स्वामी को अंकुरित मूँग का प्रसाद चढ़ाया जाता है । आज भी यहां  पर अंकुरित मूँग व मिश्री का प्रसाद चढ़ता है ।
शहर के पुराने बुजुर्ग बताते हैं  कि राजाशाही  जमाने में पन्ना की रथयात्रा बड़े ही  शान-शौकत व वैभव के साथ निकलती थी। इस रथयात्रा में सैकड़ों हांथी, घुड़सवार, सेना के जवान, राजे-महाराजे व जागीरदार सब शामिल होते थे। रूस्तम गज हांथी की कहानी भी यहां  काफी प्रचलित है । बताते हैं  कि तत्कालीन महाराज का यह प्रिय हांथी रथयात्रा में अपनी सूड़ से चाँदी का चँवर हिलाते हुये चलता था। हिन्दू पंचांग के अनुसार आषाढ़ शुक्ल माह की द्वितीय तिथि को यहां  पुरी के जगन्नाथ मन्दिर की तरह हर साल रथयात्रा निकलती है । रथयात्रा के दौरान यहां  भी भगवान जगन्नाथ अपनी बहन सुभद्रा और भाई बलराम के साथ मन्दिर से बाहर सैर के लिये निकलते हैं । यह अनूठी रथयात्रा पन्ना से शुरू होकर तीसरे दिन जनकपुर पहुँचती है । तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा जनकपुर में भी भव्य मन्दिर का निर्माण कराया गया है । रथयात्रा के जनकपुर पहुँचने पर यहां  के मन्दिर को बड़े ही  आकर्षक ढ़ंग से सजाया जाता है  तथा यहां  पर मेला भी लगता है ।

धार्मिक पर्यटन को मिल सकता है  बढ़ावा

यहाँ यह उल्लेखनीय है कि  पन्ना की इस प्राचीन और ऐतिहासिक रथयात्रा को राष्ट्रीय स्तर पर जो पहचान मिलनी चाहिये थी, वह नहीं  मिल सकी। इस दिशा में यदि शासन स्तर पर ठोस व प्रभावी पहल की जाये तो पन्ना में ईको टूरिज्म के साथ-साथ धार्मिक पर्यटन को भी बढ़ावा मिल सकता है । रियासत काल में इस समारोह का महत्व इतना ज्यादा था कि तत्कालीन नरेशों ने जगन्नाथ स्वामी मन्दिर से लेकर अजयगढ़ चौराहा  तक डेढ़ किमी. रथयात्रा मार्ग के दोनों तरफ बरामदा का निर्माण कराया था, जहां  पर रथयात्रा में शामिल होने के लिये आने वाले श्रद्धालु ठहरते थे। लेकिन प्रशासनिक उदासीनता के चलते वह प्राचीन व्यवस्था अतिक्रमण के चलते ध्वस्त हो  गई फलस्वरूप रथयात्रा वाला मार्ग संकीर्ण हो  गया। प्रदेश के पूर्व मुख्यमंत्री दिग्विजय सिंह  ने पन्ना के ऐतिहासिक रथयात्रा को उसका पुराना वैभव वापस दिलाने की दिशा में रूचि ली थी और वे 2003 में पन्ना आकर समारोह में शामिल हुये थे। लेकिन इसके बाद फिर किसी मुख्यमंत्री ने पन्ना की प्राचीन रथयात्रा को वह महत्व नहीं  दिया, जिसकी पन्ना नगर के लोग अपेक्षा करते हैं । पन्ना नगरवासियों का यह मानना है कि समूचे बुन्देलखण्ड क्षेत्र के लोगों की आस्था व धार्मिक महत्ता को देखते हुये पन्ना की     ऐतिहासिक व प्राचीन रथयात्रा समारोह को राज्य उत्सव का दर्जा मिलना चाहिये।
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