Tuesday, July 2, 2019

खेतिहर मजदूर के बेटे ने संभाला जिला पंचायत सीईओ का पदभार

  •   31 वर्षीय आईएएस अधिकारी बालागुरू की प्रेरणाप्रद है संघर्ष की कहानी
  •   कठिन चुनौतियों और बाधाओं को भी सीढ़ी बनाकर कर लेते हैं लक्ष्य हासिल
  •   पन्ना जिला वासियों को इस होनहार युवा अधिकारी से हैं ढेरों अपेक्षायें
  •   भ्रष्टाचार के  आरोपों से घिरे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में सुधार की उम्मीद



पन्ना के जिला पंचायत सीईओ बालागुरू पदभार गृहण करते हुये।

अरुण सिंह,पन्ना। लक्ष्य हासिल करने के लिये यदि किसी में जुनून, जज्बा और इच्छाशक्ति है तो बड़ी से बड़ी चुनौतियां व बाधायें भी उसकी सफलता के मार्ग को नहीं रोक सकतीं। जिला पंचायत पन्ना के नये सीईओ 31 वर्षीय बालागुरू इसके जीते-जागते उदाहरण हैं। मूलरूप से तमिलनाडु अरावकुरिची के गाँव थेरापडी के निवासी इस युवा आईएएस अधिकारी की संघर्षपूर्ण जीवन गाथा बेहद दिलचस्प, रोमांचकारी और प्रेरणादायी है। सोमवार 1 जुलाई को इनके पदभार गृहण करने के साथ ही जिला पंचायत कार्यालय पन्ना की कार्य प्रणाली में बदलाव नजर आने लगा है। गुणवत्ताविहीन कार्यों, जन कल्याण की योजनाओं के क्रियान्वयन में लापरवाही तथा भ्रष्टाचार के आरोपों से घिरे पंचायत एवं ग्रामीण विकास विभाग में अब बदलाव दिखेगा, ऐसी पन्ना जिलावासियों को उम्मीद है।
उल्लेखनीय है कि अनूपपुर जिले के पुष्पराजगढ़ में एसडीएम के पद पर कार्य कर चुके आईएएस अधिकारी बालागुरू का स्थानान्तरण राज्य सरकार द्वारा हाल ही में जिला पंचायत सीईओ पन्ना के पद पर किया गया था, फलस्वरूप उन्होंने यहां आकर अपना कार्यभार संभाल लिया है। कार्यभार संभालते ही उन्होंने जिला पंचायत के अधिकारियों और कर्मचारियों को अपनी कार्यशैली व प्राथमिकताओं से अवगत कराते हुये उसी के अनुरूप पूरी जिम्मेदारी के साथ कार्य करने के निर्देश दिये हैं, जिसका असर पदभार गृहण करने के दूसरे ही दिन से दिखने लगा है। भीषण गरीबी और अनगिनत चुनौतियों के बीच पले-बढ़े बालागुरू में संवेदनायें कूट-कूट कर भरी हैं, जाहिर है कि गरीबों, वंचितों और समाज के अन्तिम छोर पर खड़े व्यक्ति को शासन की योजनाओं का लाभ दिलाने के लिये वे हरसंभव प्रयास करेंगे। वर्ष 2014 में भारतीय समाज में सबसे प्रतिष्ठित कही जाने वाली यूपीएससी परीक्षा उत्तीर्ण कर आईएएस अधिकारी बनने वाले बालागुरू का बाल्यकाल कैसे बीता तथा उन्होंने किन परिस्थितियों और चुनौतियों के बीच शिक्षा हासिल कर यह उच्च मुकाम हासिल किया, आज की युवा पीढ़ी के लिये किसी प्रेरणा से कम नहीं है।

  • बचपन से ही कलेक्टर बनने का था सपना 

 पन्ना के नवागत जिला पंचायत सीईओ बालागुरू बताते हैं कि उन्होंने बचपन में ही यह मन बना लिया था कि उनको कलेक्टर बनना है। लेकिन इसके साथ ही उन्हें इस बात का भी पूरा अहसास था कि आर्थिक  तंगी और गरीबी के चलते इस सपने को पूरा करना सहज नहीं होगा। बालागुरू के पिता कुमारसामी खेतिहर मजदूर थे तथा माँ मवेशी पालकर किसी तरह घर चलाती थीं। इन परिस्थितियों में बालागुरू ने अपनी स्कूली शिक्षा सरकारी स्कूल में हासिल की। 12वीं से आगे की पढ़ाई को जारी रखना माता-पिता की माली हालत को देखते हुये मुश्किल था। इन हालातों में भी होनहार युवा बालागुरू ने अपना हौसला बनाये रखा और यह तय किया कि कुछ काम करते हुये वह अपनी आगे की पढ़ाई को जारी रखेगा ताकि परिजनों पर मेरी पढ़ाई बोझ न बने।


       अस्पताल में की सुरक्षागार्ड की नौकरी  


अपने सपने को साकार करने तथा आगे की पढ़ाई जारी रखने के लिये बालागुरू ने बिलरोथ हास्पिटल में सुरक्षागार्ड की नौकरी महज 4 हजार रू. महीने के वेतन में की। रात्रि शिफ्ट में सुरक्षागार्ड की नौकरी करते हुये इन्होंने पत्राचार कोर्स से स्नातक की डिग्री हासिल की और इस दौरान न सिर्फ माँ व पिता को आर्थिक मदद भी करते रहे अपितु अपनी बहन जानकी का विवाह भी कराया। यूपीएससी की परीक्षा पास करने के उपरान्त बालागुरू ने इस बात का जिक्र मीडिया के साथ करते हुये बताया था कि अपने सपने को पूरा करने के लिये मैं आगे बढूँ, इसके पूर्व बहन की शादी कर उसे सेटल करना चाहता था। इस दायित्व का निर्वहन करने के बाद मैं निश्चिन्त होकर अपने लक्ष्य पर पूरा ध्यान केन्द्रित कर सका।

      नाई की दुकान व लाइब्रेरी में पढ़ते थे न्यूजपेपर


संघर्ष के दिनों को याद करते हुये बालागुरू बताते हैं कि आर्थिक  तंगी के चलते परीक्षा की तैयारी करने के लिये न्यूज पेपर पढऩे वे नाई की दुकान में जाते थे। फिर उन्होंने चेन्नई की पब्लिक लाइब्रेरी में भी जाना शुरू किया जहां प्रतियोगी परीक्षाओं की तैयारी करने वाले कई युवकों से परिचय हुआ। इन युवाओं से प्रेरित होकर बालागुरू परीक्षा की तैयारी में जुटे रहे और वर्ष 2011 में पहली बार यूपीएससी की परीक्षा में सम्मिलित हुये, लेकिन उन्हें कामयाबी नहीं मिली। इस तरह लगातार तीन बार उन्हें असफलता मिली फिर भी उन्होंने अपने सपने को मरने नहीं दिया। चौथी बार बालागुरू कामयाब हुये और वह लक्ष्य हासिल कर लिया, जिसे पाने का सपना उन्होंने बचपन से ही अपने जेहन में संजोकर रखा था। अपनी इस कामयाबी का श्रेय वे अपनी माँ को देते हैं और गर्व से बताते हैं कि मेरी माँ ने पशु पालकर स्कूली शिक्षा दिलाई और आगे बढऩे के लिये प्रोत्साहित किया। शासकीय सेवा में आने के बाद से बालागुरू अपने पिता व माँ को हमेशा अपने पास ही रखते हैं।
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