Thursday, November 14, 2019

वृक्ष जिसने बना ली है अपनी विशिष्ट पहचान

  •   जिला पंचायत पन्ना कार्यालय के सामने लगा है खिन्नी का यह अदभुत पेड़
  •   सबको भाती है इस वृक्ष की शीतल छाया, पक्षी भी करते हैं बसेरा


जिला पंचायत पन्ना के कार्यालय परिसर में लगा खिन्नी का वृक्ष 

। अरुण सिंह 

पन्ना। मनुष्यों की तरह वृक्षों का भी अपना गुणधर्म और विशिष्ट पहचान होती है। अपने आकार प्रकार व उपयोगी होने के कारण कुछ वृक्ष बेहद प्रिय हो जाते हैं, उनके निकट जाने से खुशी और प्रसन्नता तो मिलती ही है अपनापन का भी अहसास होता है। जिला पंचायत पन्ना कार्यालय के ठीक सामने लगा खिन्नी का दशकों पुराना वृक्ष भी बेहद अनूठा और खास है जो यहां आने वाले लोगों को सहज ही अपनी ओर आकृष्ट कर लेता है। 

इस विशाल परिसर में अनेकों वृक्ष हैं लेकिन खिन्नी के इस वृक्ष की बात ही कुछ और है। छतरी जैसा प्रतीत होने वाला यह वृक्ष प्रतिदिन न जाने कितने थके हारे और तनाव से ग्रसित लोगों को शीतल छाया देकर राहत प्रदान करता है। ऐसे अनेकों लोग हैं जो खिन्नी के इस वृक्ष के चबूतरे में घंटों गुजारते हैं और सुख - शान्ति व सुकून का अनुभव करते हैं।

खिन्नी के इस सुन्दर वृक्ष की उम्र कितनी है, इसकी सही जानकारी तो नहीं मिली लेकिन इतना तय है कि यह 100 वर्ष से भी अधिक पुराना है। पिछले कई दशकों से यह जिला पंचायत कार्यालय में पदस्थ रहने वाले अधिकारियों व कर्मचारियों का चहेता बना हुआ है। गर्मी के मौसम में तो इस वृक्ष की अहमियत और भी बढ़ जाती है। कर्मचारियों के अलावा ग्रामीण अंचलों से आने वाले लोग भी इस वृक्ष के चबूतरे में बैठकर विश्राम करते हैं। 
जिला पंचायत कार्यालय के ठीक सामने खिन्नी के इस अद्भुत वृक्ष को किसने लगाया, यह भी नहीं पता लेकिन जिसने भी इसे लगाया है उसके प्रति लोग अनुग्रह से भर जाते हैं। हर कोई उस अजनबी को सलाम करता है जिसने लगभग 100 वर्ष पूर्व इस पौधे को रोपा था। अब वह पौधा खूबसूरत वृक्ष बन चुका है जिसकी छांव में बैठकर लोग सुकून पाते हैं।

खिन्नी के पेड़ में निंबोली के आकार वाले लगते हैं मीठे फल



खिन्नी के पेड़ में निंबोली के आकार वाले  मीठे फल लगते हैं। इसके फ लों और पत्तों को तोडऩे पर  दूध निकलता है। गुणों के आधार पर इसे फलों का राजा माना गया है। प्राचीन काल में इसका सेवन राजाओं द्वारा किया जाता था, इसलिये आयुर्वेद में इसे राजदान, राजफल एवं फ लाध्यक्ष आदि नामों से भी जाना जाता है। सपोटेसी कुल के इस वृक्ष का वानस्पतिक नाम मनिलकरा हेक्सान्द्रा है। 
खिरनी के पेड़ 3-12 मीटर लंबे होते हैं और मुख्यत: जंगलों में पाये जाते हैं। हालांकि इसके फ ल स्वादिष्ट होने के कारण इसे ऊष्णकटिबंधीय क्षेत्रों में उगाया जाने लगा है । खिरनी का पेड़ भारत में उत्तर प्रदेश, मध्यप्रदेश, बिहार, छत्तीसगढ़, महाराष्ट्र, तमिलनाडु आदि जगहों पर पाया जाता है। खिरनी के पेड़ भारत के अलावा चीन, श्रीलंका, बांग्लादेश, म्यांमार, थाईलैंड, कंबोडिया और वियतनाम में भी पाये जाते हैं।

सितंबर से दिसंबर के महीनों में लगते हैं फूल


खिन्नी अथवा खिरनी के पेड़ों पर सितंबर से दिसंबर के महीनों में फू ल लगते हैं और अप्रैल से जून के महीने में फल पकते हैं। बारिश आने पर इसके फलों में कीड़े लगने लगते हैं। खिरनी के पेड़ की लकड़ी बहुत मजबूत और चिकनी होती है। यदि किसी तरह से नुकसान नहीं पहुंचाया जाये, तो खिरनी के पेड़ एक हजार साल तक जीवित रहते हैं। इसके विशाल पेड़ों को मध्य प्रदेश के मांडू क्षेत्रों में बहुतायत में देखा जा सकता है। 
खिरनी का फल मीठा होता है और बड़े शहरों में यह ऊंचे दामों पर बिकता है। इसके पत्तों का इस्तेमाल मवेशियों के लिये चारे के रूप में किया जाता है। खिरनी के पेड़ की छाल से निकालने वाले गोंद का इस्तेमाल चमड़े की सफाई के लिये किया जाता है। इसके छाल का इस्तेमाल शराब बनाने के लिये किया जाता है और छाल का काढ़ा ज्वर नाशक होता है। इसके पके फलों को सुखाने पर वे ड्राईफ्रूट का अच्छा विकल्प हो सकते हैं।

औषधीय गुणों से भरपूर होता है खिन्नी का वृक्ष


मध्य प्रदेश के झाबुआ जिले के भील, भिलाला और पटाया आदिवासी समुदाय खिरनी के पेड़ का औषधीय इस्तेमाल पारंपरिक रूप से करते आये हैं।  ये आदिवासी समुदाय शरीर के दर्द का इलाज करने के लिये खिरनी की छाल को उबालकर उस पानी से नहाते हैं। खिरनी के औषधीय गुणों की पुष्टि वैज्ञानिक अनुसंधानों से भी होती है। वर्ष 2000 में मेडिसिनल प्लांट्स नामक जर्नल में प्रकाशित एक शोध के अनुसार खिरनी एक औषधि के तौर पर पीलिया, बुखार, जलन, मसूढ़ों में सूजन, अपच आदि रोगों के उपचार में कारगर है। 
वर्ष 1985 में एनसायक्लोपीडिया ऑफ  इण्डियन मेडिसिन में प्रकाशित एक अध्ययन बताता है कि खिरनी खून को साफ  करता है और सूजन, पेट दर्द और खाद्य विषाक्तता को दूर करता है। इंडियन मेडिसिनल प्लांट्स नामक जर्नल में वर्ष 2007 में प्रकाशित शोध के अनुसार खिरनी में अनेक प्रकार के ऐसे तत्व होते हैं जो शरीर की अंदरूनी कई जैविक क्रियाओं को नियंत्रित करने में सक्षम हैं।

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1 comment:

  1. बहुत बढ़िया पोस्ट।मौलश्री और खिन्नी में असमंजस था। अब इस लेख से दूर हुआ। मौलश्री का फल यहां खूब मिलता है पर खिन्नी नहीं जो कि मैंने मांडू में खाई थी।

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