- बेहतर सेक्स रेसियो के बावजूद आखिर क्यों हो रहा संघर्ष
- बीते साढे 7 माह में यहां पर हो चुकी है 5 बाघों की मौत
पन्ना टाइगर रिज़र्व का हिनौता प्रवेश द्वार। |
अरुण सिंह,पन्ना। मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व विगत कुछ महीनों से बाघों की आकस्मिक मौतों को लेकर सुर्खियों में बना हुआ है। बाघों की मौत तथा उनके बीच आपसी संघर्ष होने की वजह के संबंध में वन अधिकारियों व विशेषज्ञों का भिन्न-भिन्न मत है। कोई यह तर्क देता है कि चूंकि बाघ अपनी टेरिटरी बनाकर रहने वाला प्राणी है, इसलिए इलाके में आधिपत्य को लेकर इनके बीच आपसी संघर्ष होता है। जब कि कुछ लोग संघर्ष के लिए सेक्स रेसियो में असंतुलन को जिम्मेदार ठहराते हैं। मामला जो भी हो लेकिन यह भी सच है कि बीते साढे सात माह के दौरान पन्ना टाइगर रिजर्व में 5 बाघों की मौत हुई है। इनमें एक रेडियो कॉलर युक्त बाघिन भी शामिल है।
इस वाद विवाद और सुर्खियों के बीच पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक के.एस. भदौरिया ने नर व मादा बाघों की संख्या के संबंध में अधिकृत आंकड़ा जारी करते हुए इस बात को सिरे से नकारा है कि सेक्स रेसियो (बाघिनो की संख्या) कम होने के कारण आपसी संघर्ष हो रहा है। उन्होंने विगत 3 वर्षों के आंकड़े जारी करते हुए वयस्क व अर्द्धवयस्क बाघों की जानकारी मीडिया से साझा की है। आपने बताया कि मॉनिटरिंग के तहत कैमरा ट्रैप से प्राप्त परिणामों के आधार पर वर्ष 2017-18 में 23 बाघ, वर्ष 2018-19 में 30 बाघ तथा 2019-20 में 42 बाघों की उपस्थिति दर्ज हुई है। आपने नर व मादा बाघों के अनुपात का भी खुलासा किया और बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में मौजूदा समय 13 नर व 29 मादा बाघ हैं। इस अनुपात के तहत एक नर बाघ के पीछे दो से अधिक बाघिन हैं। उन्होंने यह भी बताया कि वर्तमान में पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में धारण क्षमता से अधिक बाघ विचरण कर रहे हैं। जाहिर है कि श्री भदौरिया बाघों के बीच आपसी संघर्ष की वजह टेरिटोरियल फाइट मान रहे हैं।
यहां गौरतलब बात यह है कि हर बाघ का अपना एक निश्चित क्षेत्र होता है, नर बाघ की टेरिटरी बड़ी व मादा की नर की तुलना में छोटी होती है। एक नर बाघ की टेरिटरी में दो से तीन बघिनें रह सकती हैं। अगर नर व मादा बाघ के अनुपात की बात करें तो सबसे आदर्श स्थित 1:3 की मानी जाती है। यानि कि एक नर बाघ के पीछे तीन बाघिन होनी चाहिये। इस लिहाज से देखें तो जारी आंकड़ों के मुताबिक पन्ना में सेक्स रेसियो संतोषजनक स्थिति में है। लेकिन फिर वही सवाल कि आखिर बाघों के बीच जानलेवा संघर्ष क्यों नहीं थम पा रहा ? मालूम हो कि पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र 542 वर्ग किलोमीटर है जबकि बफर का इलाका लगभग 1000 वर्ग किलोमीटर है। पार्क प्रबंधन के मुताबिक कोर क्षेत्र में लगभग 39 बाघ व बफर क्षेत्र में 3 बाघों ने अपना इलाका निर्धारित किया हुआ है। अब यहां सवाल उठता है कि कोर क्षेत्र की अधिकतम धारण क्षमता कितनी है तथा यहां पर क्षमता से अधिक कितने बाघ हैं, जिनकी मौजूदगी से खलल पैदा हो रहा है। इस संबंध में गहन छानबीन, अध्ययन के साथ-साथ यह जानना भी जरूरी है कि कोर क्षेत्र में किस बाघ और बाघिन का इलाका (टेरिटरी) कितना है।
इस बात का भी यहां उल्लेख करना जरूरी है जंगल में उसी का वजूद कायम रह पाता है जो शक्तिशाली और मजबूत होता है। यह तथ्य बाघों पर भी लागू होता है। जाहिर है कि कमजोर बाघ टेरिटरी बनाने के लिए संघर्ष में मारे जाते हैं जिसे प्राकृतिक घटना मान लिया जाता है। आम तौर पर कम उम्र के अथवा कमजोर बाघ आपसी संघर्ष से बचने के लिए कोर क्षेत्र से बाहर के इलाकों में चले जाते हैं। लेकिन बफर क्षेत्र का प्रबंधन और मॉनिटरिंग व्यवस्था कोर के स्तर की नहीं होती, ऐसी स्थिति में यहां विचरण करने वाले बाघों की सुरक्षा हर समय खतरे में रहती है। चूंकि पन्ना में बाघों की संख्या में निरंतर इजाफा हो रहा है इसलिए बफर क्षेत्र के बिगड़े हुए इलाकों को बाघों के अनुरूप विकसित और संरक्षित किया जाना जरुरी है। ताकि पन्ना के बाघों की बढ़ने वाली संख्या बफर क्षेत्र में अपने इलाके का निर्धारण कर सुरक्षित माहौल में रह सकें।
मैटिंग के दौरान हुआ था पी-431 व पी-123 के बीच संघर्ष
वन परीक्षेत्र गहरी घाट अंतर्गत सकरा नामक स्थान में केन नदी के किनारे मैटिंग के दौरान ही नर बाघ पी-431 व पी -123 के बीच भीषण युद्ध हुआ था, जिसमें पी-123 की मौत हुई। इस बाघ का सिर विहीन शव 9 अगस्त की शाम पठाई कैंप के पास केन नदी में उतराता हुआ मिला था। जिसका पोस्टमार्टम व दाह संस्कार दूसरे दिन 10 अगस्त को हुआ। इस बाघ की मौत के संबंध में पन्ना टाइगर रिज़र्व कार्यालय द्वारा जारी प्रेस नोट में लेख किया गया है कि बीट झालर में सकरा के पास नदी किनारे जब बाघिन टी-6 एवं नर बाघ पी-431 मैटिंग में थे उसी समय वहां पर नर बाघ पी-123 पहुंच गया तदुपरांत दोनों बाघों में लड़ाई हुई। अब यह लड़ाई किस बात को लेकर और क्यों हुई इसका अनुमान लगाना कठिन नहीं है। बाघिन टी-6 के लिए दोनों बाघों में खतरनाक द्वंद हुआ, जिसमें पी-123 की मौत हुई है।
अब तक कई बाघों को मार चुका है पी-431
आठ वर्ष के वयस्क नर बाघ पी-123 को बहुत ही आक्रामक तरीके से मौत के मुंह में ढकेलने वाला बाघ पी-431 अब खतरनाक हो चुका है। इसने अब तक कई बाघों को मौत के घाट उतारा है। टाइगर रिज़र्व के अधिकारी भी दबी जुबान से यह स्वीकार कर रहे हैं कि बाघ पी-123 के अलावा कम से कम दो और बाघों को इसी ने मारा है। किलर के रूप में बदनाम हो चुके इस बाघ के खौफ का यह आलम है कि कमजोर बाघ इसके आसपास फटकने से भी कतराने लगे हैं। मैदानी वन कर्मियों ने इस आक्रामक और खतरनाक हो चुके बाघ की तस्वीर ली है जिससे उसके शरीर में आपसी संघर्ष के निशान साफ दिखते हैं। इस तरह के हालात क्यों बने हैं इस पर पार्क प्रबंधन को गौर करना चाहिये।
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