Tuesday, January 26, 2021

जिन्होंने देखा राजाशाही का वैभव, वे चिर निद्रा में लीन

  •  पूर्व सांसद व पन्ना राज परिवार के वरिष्ठ सदस्य लोकेंद्र सिंह नहीं रहे
  •  प्रकृति प्रेमी रहे राजा को सादगी पूर्ण ढंग से दी गई अंतिम विदाई 

पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह अपने प्रिय कुत्तों को दुलारते हुए। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। जिनका बचपन राजाशाही वैभव में गुजरा, जिनकी जिंदादिली, मिलनसारिता और ईमानदारी के किस्से सुनाए जाते रहे हैं, वे ठीक गणतंत्र दिवस के दिन जब हर तरफ उत्सवी माहौल और फिजा में देशभक्ति के तराने गूंज रहे थे, चिर निद्रा में लीन हो गये। जी हां पन्ना राजघराने के वरिष्ठ सदस्य पूर्व सांसद व विधायक लोकेंद्र सिंह अब नहीं रहे। उन्होंने 75 वर्ष की आयु पूरी कर आज अंतिम सांस ली। श्री सिंह का अंतिम संस्कार सायं 4:00 बजे पन्ना शहर में स्थित राज परिवार के मुक्तिधाम छत्रसाल पार्क में किया गया। उनकी बेटी कामाख्या (लकी राजा) ने अपने पिता को नम आंखों से मुखाग्नि दी। पूर्व सांसद की अंतिम विदाई में राज परिवार के सदस्यों सहित गणमान्य नागरिक, जनप्रतिनिधि व बड़ी संख्या में आमजन शामिल हुए। 

उल्लेखनीय है कि जीवन पर्यंत प्रकृति, पर्यावरण और वन्यजीवों के संरक्षण हेतु समर्पित रहे पूर्व सांसद लोकेंद्र सिंह ने पन्ना टाइगर रिजर्व की स्थापना में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। पन्ना के लिए उनकी यह सौगात इतनी अविस्मरणीय है कि वे इसके लिए सदैव याद किए जाते रहेंगे। राज परिवार से होते हुए भी आम लोगों के बीच जाकर उनसे मेल मुलाकात करना आपके स्वभाव में रहा है। यही वजह है कि लोगों ने इन्हें अपना सांसद और विधायक भी चुना। आप दो बार विधायक व एक बार सांसद रहे, लेकिन राजनैतिक महत्वाकांक्षा इनके भीतर कभी नहीं रही। 

प्रकृति और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए आपने विरोध का भी सामना किया तथा सच्चाई और ईमानदारी का साथ कभी नहीं छोड़ा। अपनी इन खूबियों के कारण उन्हें राजनीतिक नुकसान भी उठाना पड़ा, लेकिन वे अडिग रहे। हवा के विपरीत चलने के कारण क्षमता और काबिलियत के बावजूद उन्हें मंत्री पद हासिल नहीं हो सका। जबकि राजनीति के जानकार आज भी यह कहते हैं कि राजा यदि समय के हिसाब से अपने में बदलाव लाते तो प्रदेश ही नहीं अपितु केंद्र में मंत्री बनने तक का सफर तय कर लेते।

 


पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह के विदा हो जाने का मतलब पन्ना राज परिवार के एक महत्वपूर्ण अध्याय का भी खत्म हो जाना है। उनकी गैरमौजूदगी से जो रिक्तता पैदा होगी, उसकी भरपाई शायद संभव नहीं है। क्योंकि राजपरिवार के मौजूदा समय में वे इकलौते ऐसे सदस्य थे, जिन्हें प्रकृति, पर्यावरण, समाज, राजनीति और पन्ना के गौरवपूर्ण इतिहास की गहरी समझ थी। जिंदगी जीने का भी उनका अपना निराला अंदाज था। उनके जैसी बेबाकी और निर्भीकता अब शायद ही देखने को मिले। 

ऐसे जिंदादिल इंसान को आज सैकड़ों लोगों ने बेहद सादगी पूर्ण माहौल में अंतिम विदाई दी। इस मौके पर उनके भतीजे महाराज राघवेंद्र सिंह जूदेव, नागौद राजपरिवार के अनेकों लोग, खनिज मंत्री बृजेंद्र प्रताप सिंह, भास्कर देव बुंदेला, डॉ विजय परमार, केशव प्रताप सिंह, प्रदीप सिंह राठौड़, लोकेंद्र प्रताप सिंह इटौरी, पुष्पेंद्र सिंह परमार, शिवजीत सिंह सहित बड़ी संख्या में क्षत्रिय समाज के लोग शामिल हुए तथा उन्हें श्रद्धांजलि अर्पित करते हुए अंतिम विदाई दी।

नौ वर्ष की उम्र में किया था वनराज का शिकार


हाँथ में बंदूक लिए शिकार किये बाघों के साथ बालक लोकेन्द्र सिंह। (फाइल फोटो) 

पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह जब महज नौ वर्ष के थे, तब उन्होंने एक बाघ को मार गिराया था। पांच साल बाद जब लोकेन्द्र सिंह 15 वर्ष के हुए तो उन्होंने सन् 1960 में पटोरी नामक स्थान पर तीन बाघों को एक साथ मौत की नींद सुला दिया। इस बाघ परिवार का सफाया करने के बाद 15 वर्ष के इस राजकुमार ने बड़े ही गर्व के साथ शिकार किये गये बाघों के पास बैठकर हांथ में बन्दूक लिए फोटो भी खिंचाई. लेकिन शिकार की इस घटना ने बालक लोकेन्द्र सिंह को विचलित कर दिया और उनकी जिन्दगी के नये अध्याय  का श्रीगणेश हो गया।

शिकार के शौकीन रहे लोकेन्द्र सिंह का हृदय परिवर्तन होने पर उन्होंने यह कसम खा ली कि अब कभी बाघ का शिकार नहीं करूंगा। उन्होंने वन व पर्यावरण की सुरक्षा तथा बाघों के संरक्षण को ही अपने जीवन का उद्देश्य बना लिया। इसी सोच के चलते लोकेन्द्र सिंह की पहल से पन्ना में सर्वप्रथम गंगऊ सेंचुरी बनी, बाद में 1981 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान का निर्माण हुआ। 

वर्ष 1994 में पन्ना राष्ट्रीय उद्यान को टाइगर रिजर्व बनाया गया. लेकिन टाइगर रिजर्व बनने के बाद भी यहां बाघों की दुनिया आबाद होने के बजाय सिमटती चली गई। हालत यहां तक जा पहुंची कि वर्ष 2009 में बाघों की यह धरती बाघ विहीन हो गई। पूरे देश व दुनिया में किरकिरी होने पर यहां बाघ पुर्नस्थापना योजना शुरू हुई, जिसके चमत्कारिक परिणाम देखने को मिले। अब पन्ना का यह जंगल बाघों से आबाद है,  यहां के कोर व बफर क्षेत्र में 60 से भी अधिक नर व मादा बाघ विचरण कर रहे हैं।

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