Thursday, January 7, 2021

पन्ना में सुरक्षित नहीं है जंगल का शहजादा

  •   उत्तर वन मंडल के विश्रामगंज व धर्मपुर रेंज की हालत चिंताजनक
  •  अवैध उत्खनन सहित कटाई व शिकार पर नहीं लग पा रहा अंकुश 

जंगल का शहजादा तेंदुआ पेड़ के ऊपर विश्राम करते हुए।  

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। जंगल का शहजादा कहा जाने वाला तेंदुआ मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में सुरक्षित नहीं है। यहां स्थित पन्ना टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र को यदि अलग कर दें तो बफर क्षेत्र व उत्तर तथा दक्षिण वन मंडल का जंगल तेंदुओं के लिए अनुकूल और सुरक्षित नहीं बचा है। तकरीबन 50 से 60 किलोमीटर प्रति घंटे की रफ्तार से दौडऩे की क्षमता रखने वाला यह खूबसूरत वन्य जीव शातिर शिकारियों के निशाने पर रहता है। बीते एक वर्ष के दौरान अकेले विश्रामगंज व धर्मपुर वन परिक्षेत्र में शातिर शिकारियों ने पांच तेंदुओं को अपना निशाना बनाया है। यह तो ज्ञात संख्या है, इनके अलावा तेंदुओं  के मारे जाने की अज्ञात संख्या कितनी होगी, यह अनुमान लगा पाना कठिन है। पन्ना शहर से लगे उत्तर वन मंडल के विश्रामगंज वन परिक्षेत्र में जिस तरह से बड़े पैमाने पर अवैध उत्खनन और जंगल की कटाई हो रही है, उससे इस रेंज में वन्यजीवों के रहने लायक स्थान का तेजी से क्षरण हुआ है।

 उल्लेखनीय है कि अभी हाल ही में 25 दिसंबर 2020 को विश्रामगंज रेंज के बंगला बीट में मादा तेंदुआ का कई दिन पुराना शव मिला था। पोस्टमार्टम से यह ज्ञात हुआ कि तकरीबन 8 वर्षीय इस मादा तेंदुआ की मौत विद्युत करंट से हुई है। इसके पूर्व भी तेंदुए की मौत के जितने भी मामले प्रकाश में आए हैं, उनमें अधिकांश मामलों में विद्युत करंट फैलाकर तेंदुओं को मारा गया है। चिंताजनक बात यह है कि नियमित गश्त व सुरक्षा के माकूल इंतजाम न होने से शिकार की घटनाओं का पता ही नहीं चल पाता। ग्रामीणों द्वारा सूचना देने पर ही वन महकमे को जानकारी मिलती है, फल स्वरुप कागजी खानापूर्ति करके मामले पर लीपापोती कर दी जाती है। मालुम हो कि एनटीसीए बाघ के साथ-साथ तेंदुए की मौत को भी गंभीरता से लेता है। लेकिन पन्ना जिले में ऐसा कुछ नजर नहीं आता। यहां की जमीनी हकीकत कुछ और ही कहानी बयां करती है। तेंदुओं की मौत होने व शिकार की घटनाओं पर एनटीसीए के प्रोटोकॉल का भी पालन नहीं किया जाता। जिससे तेंदुओं के मौत की असल वजह व आंकड़ों की जानकारी प्रकाश में नहीं आ पाती। आश्चर्य की बात तो यह है कि जिम्मेदार अधिकारियों से आवश्यक जानकारी हासिल करने के लिए यदि संपर्क करने का प्रयास किया जाए तो रिंग जाने पर भी वे मोबाइल उठाना जरूरी नहीं समझते। यही वजह है कि हालात सुधरने के बजाय दिनों दिन बिगड़ रहे हैं।

 गौरतलब है कि अभी हाल ही में मध्यप्रदेश को टाइगर स्टेट के साथ-साथ तेंदुआ स्टेट का दर्जा मिला है। भारत सरकार द्वारा जारी की गई रिपोर्ट में उनकी संख्या का अनुमान लगाया गया है। जिसके तहत मध्य प्रदेश में सर्वाधिक 3421 तेंदुओं की मौजूदगी बताई गई है। जानकारों का कहना है कि तेंदुओं की बढी तादाद अतिरिक्त संरक्षण व उनके लिए अनुकूल रहवास के विकास की वजह से नहीं, अपितु असल वजह यह है कि जब हम बाघ का संरक्षण करते हैं तो उनसे मिलती जुलती दूसरी प्रजातियों का संरक्षण स्वमेव हो जाता है। चूंकि टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र से बाहर का जंगल मानवीय गतिविधियों से मुक्त नहीं है तथा यहां अवैध कटाई व उत्खनन भी होता है जिससे वन्य प्राणियों का रहवास नष्ट हो रहा है। ऐसी स्थिति में शिकार की तलाश में तेंदुए व अन्य मांसाहारी जीव मानव आबादी के आस पास आने लगे हैं। इसका परिणाम वन्य जीवों विशेषकर तेंदुओं और इंसानों के बीच टकराव बढऩे के रूप में सामने आ रहा है। करंट लगाकर शिकार करने की बढ़ती घटनाएं इसका जीता जागता प्रमाण है।

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