Tuesday, March 23, 2021

बाघों का घर डुबाने वाली परियोजना पर हुआ समझौता

  •  पन्ना की खुशहाली, विकास और हितों को क्यों किया जा रहा नजरअंदाज 
  •  समझौता होने पर लोग पूछ रहे, जब उजाडऩा ही था तो फिर बसाया क्यों ? 


पन्ना टाईगर रिजर्व के बीच से गुजरने वाली केन नदी जिस पर बांध बनना है। 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। बुंदेलखंड क्षेत्र के सबसे पिछड़े और उपेक्षित पन्ना जिले के हितों तथा यहां के लोगों की खुशहाली को हमेशा क्यों नजरअंदाज किया जाता है ? अंग्रेजों के जमाने में यहां केन नदी पर बने बरियारपुर डैम का पानी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश के बांदा जिले में पहुंचता रहा और पन्ना जिले के किसान सिर्फ सूखे की विभीषिका से जूझने को विवश रहे। अब तो इस जिले की प्राकृतिक संपदा जो यहां के जीवन का आधार है, उसे भी नष्ट करने का जतन किया जा रहा है। विश्व जल दिवस पर सोमवार 22 मार्च को केन-बेतवा लिंक परियोजना के लिए (एमओए) मेमोरेंडम आफ एग्रीमेंट पर केंद्रीय जल शक्ति मंत्री गजेंद्र सिंह शेखावत, मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान तथा उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने हस्ताक्षर कर दिए हैं। इस समझौते के साथ ही पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघों, जीव-जंतुओं के आशियाना को डुबोने तथा लाखों पेड़ पौधों को नष्ट करने का मार्ग प्रशस्त हो गया है। इतनी बड़ी कुर्बानी देने के बाद पन्ना जिले के लोगों को क्या मिलेगा, यह बताने वाला कोई नहीं है।

उल्लेखनीय है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के तहत ढोंढन गाँव के पास केन नदी पर प्रस्तावित बांध का यदि निर्माण कराया गया तो पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का बड़ा हिस्सा डूब जायेगा। डूब में आने वाला घने जंगल से आच्छादित यह वन क्षेत्र राष्ट्रीय पशु बाघ व विलुप्ति की कगार में पहुँच चुके गिद्धों का प्रिय रहवास है। बांध बनने पर इस वन क्षेत्र के तक़रीबन 25 लाख से भी अधिक वृक्षों का सफाया हो जायेगा। इस परियोजना के मूर्त रूप लेने में दो से ढाई दशक लगेंगे जिसमें हजारों करोड़ रू. जहां खर्च होंगे वहीं भारी भरकम मशीनों का जहां उपयोग होगा वहीं हजारों मजदूर भी वन्य प्राणियों के इस रहवास में कार्य करेंगे। इन हालातों में यहां नैसर्गिक  जीवन जीने वाले वन्य प्राणी कैसे रह पायेंगे ? इस बीच पर्यावरण को कितना नुकसान होगा तथा केन नदी का नैसर्गिक  प्रवाह थमने से नीचे के सैकड़ो ग्रामों के लोगों को किस तरह के दुष्परिणाम भोगने पडेंग़े, इस बात का अंदाजा लगा पाना फ़िलहाल मुश्किल है। 


मौजूदा समय पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर व बफर क्षेत्र में 60 से भी अधिक बाघ स्वच्छन्द रूप से विचरण कर रहे हैं।  समूचे बुन्देलखण्ड में एक मात्र बाघों का शोर्स पापुलेशन पन्ना टाईगर रिजर्व में विद्यमान है। वर्ष 2009 में यहां का जंगल बाघ विहीन हो गया था फलस्वरूप बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से बसाने के लिये बाघ पुनर्स्थापना  योजना शुरू की गई। जिसे उल्लेखनीय सफलता मिली और बाघ विहीन यह जंगल फिर से आबाद हो गया। मालुम हो कि बढ़ती आबादी के दबाव में पन्ना जिले का सामान्य वन क्षेत्र तेजी से उजड़ रहा है। सिर्फ पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो 542 वर्ग किमी क्षेत्र में फैला है काफी हद तक सुरक्षित है। लेकिन इसे भी उजाडऩे की तैयारी की जा रही है जो पर्यावरणीय दृष्टि से दुर्भाग्यपूर्ण है। समझौता होने पर लोग पूछ रहे हैं कि पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को अथक मेहनत और करोङों रुपये खर्च कर जब आबाद कर दिया गया और पर्यटन विकास की उम्मीद जागी तब फिर उसे क्यों उजाड़ा जा रहा है। जब उजाडऩा ही था तो फिर बसाया क्यों ? 

नदी जोड़ परियोजना से अनभिज्ञ हैं केन किनारे स्थित ग्रामों के लोग

केन नदी के किनारे स्थित ग्रामों के रहवासी विस्थापन का दंश नहीं अपितु मूलभूत सुविधायें और विकास चाहते हैं। पूरे 33 दिनों में 600 किमी लम्बी दूरी तय करके केन परिक्रमा करने वाले सिद्धार्थ अग्रवाल व भीम सिंह रावत ने बेहद चौंकाने वाले तथ्य उजागर किये हैं। आप लोगों ने बताया कि पन्ना से लेकर बांदा तक केन नदी के किनारे बसे अधिकांश ग्रामों के लोगों को केन-बेतवा लिंक परियोजना के संबंध में कोई भी जानकारी नहीं है। इन ग्रामीणों में नदी पर आश्रित किसान, मल्लाह, मछुआरे व पशुपालक शामिल हैं।

 केन्द्र सरकार की इस महत्वाकांक्षी योजना के बारे में तटवर्ती ग्रामों के लोग यह सोचते हैं कि केन का पानी बेतवा में और बेतवा का पानी केन में डाला जायेगा, जिससे बाढ़ नहीं आयेगी। बाढ़ की विभीषिका अनेकों बार झेल चुके लोग इस भ्रान्ति के चलते निश्चिंत थे कि नदी जोड़ योजना से उनके जीवन में कोई खलल नहीं पड़ेगा, अपितु बाढ़ की विभीषिका से मुक्ति मिल जायेगी। जबकि वास्तव में इस योजना से केवल केन नदी का पानी बेतवा में डाला जायेगा, बेतवा का पानी केन में नहीं आयेगा। पदयात्रियों ने ग्रामीणों को जब इस तथ्य से अवगत कराया तो वे हैरान रह गये। हकीकत जान ग्रामीण अपने को अब ठगा हुआ महसूस कर रहे हैं और कहते हैं कि यदि ऐसा है तो नदी जोड़ परियोजना किसी भी कीमत पर स्वीकार नहीं की जा सकती, क्योंकि केन हमारी जिन्दगी है। 

केन-बेतवा समझौते से बर्बाद होगा पन्ना टाइगर रिजर्व : जयराम रमेश

 


केन व बेतवा नदियों को जोडऩे वाली परियोजना के सम्बंध में समझौता ज्ञापन पर हस्ताक्षर होने से पहले ही कांग्रेस के वरिष्ठ नेता जयराम रमेश ने सरकार की मंशा पर सवाल उठाया है। उन्होंने कहा है कि पुनरुद्धार और विकास की इस कहानी को लिखे जाने के दौरान मध्यप्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व पूरी तरह बर्बाद हो जाएगा। कांग्रेस नेता जयराम रमेश ने सोमवार को ट्वीट कर कहा कि केन और बेतवा नदी को लेकर उत्तर प्रदेश और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्रियों के बीच होने वाला समझौता हस्ताक्षर भले ही विकास की गाथा नहीं लिखे लेकिन इससे पन्ना टाइगर रिजर्व ध्वस्त हो जाएगा। उन्होंने यह भी कहा कि रिलोकेशन और पुनरुद्धार की इस योजना के विकल्प के तौर पर दस साल पहले भी उन्होंने उपाय सुझाये थे, जिसे नजरअंदाज कर दिया गया है। 

शिवराज सरकार ने दबाव में प्रदेश के हितो के साथ समझौता किया : कमलनाथ 

वर्षों से लंबित केन-बेतवा लिंक परियोजना का एमओयू हस्ताक्षर होना स्वागत योग्य , इस परियोजना से बुंदेलखंड क्षेत्र का विकास होगा लेकिन केन्द्र की मोदी सरकार के दबाव में शिवराज सरकार ने अनुबंध की शर्तों के विपरीत कई मुद्दों पर झुककर प्रदेश के हितो के साथ समझौता किया है। इस योजना की शुरुआत वर्ष 2005 से हुई थी , 2008 में इसका खाका तैयार हुआ था , वर्षों से यह परियोजना लंबित थी , वर्ष 2012 में सुप्रीम कोर्ट ने भी इस परियोजना के अमल को लेकर केंद्र सरकार को निर्देश दिए थे।

इस परियोजना में तय अनुबंध  की शर्तों के विपरीत मध्य प्रदेश और उत्तर प्रदेश में पानी के बंटवारे लेकर मुख्य विवाद था। मध्यप्रदेश रबी सीजन के लिए  700 एमसीएम पानी उत्तप्रदेश को देने पर सहमत था लेकिन उत्तरप्रदेश सरकार द्वारा अधिक मात्रा में  पानी देने का दबाव बनाया जा रहा था ,जबकि इस परियोजना से हमारे प्रदेश के कई गाँव , जंगल डूब रहे है , डूबत क्षेत्र के कई गाँवो का विस्थापन हमें करना पड़ेगा ,पन्ना टाइगर रिजर्व क्षेत्र की 5500 हेक्टेयर जमीन सहित करीब 9 हज़ार हेक्टेयर जमीन डूब में आ रही है , हमारा बड़ा क्षेत्र डूब रहा है ,कुछ पर्यावरण आपत्तियाँ भी थी , इस परियोजना से उत्तरप्रदेश को मध्यप्रदेश के मुक़ाबले अधिक लाभ होना है , इसलिये वर्षों से कई मुद्दों पर हमारी आपत्ति थी, लेकिन शिवराज सरकार ने मोदी सरकार के दबाव में कई मुद्दों पर झुककर प्रदेश के हितो के साथ समझौता किया है , प्रदेश हित के मुद्दों की अनदेखी की है। शिवराज सरकार को इस परियोजना को लेकर प्रारंभ में तय अनुबंधों की शर्तों , विवाद के प्रमुख बिंदुओ , इस परियोजना में मध्यप्रदेश के हितो की अनदेखी , नुक़सान पर ली गयी आपत्तियों व वर्तमान एमओयू में तय शर्तों की जानकारी सार्वजनिक कर प्रदेश की जनता को वास्तविकता बताना चाहिये।

लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य

0  बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।

0  जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।

0  बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर

व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।

0  ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।

0  बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।

0  105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।

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1 comment:

  1. बहुत ही चिंतनीय हालात हैं, पानी पर गहरे होकर सोचे जाने की आवश्यकता है लेकिन बहुत उथला सोचा जा रहा है।

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