Sunday, March 28, 2021

प्रकृति भी बाघों का बसेरा उजाडऩे के खिलाफ

  •  बीते तीन माह में ही पीटीआर में जन्मे 13 बाघ शावक 
  •  प्रकृति से मिल रहे संकेतों का सरकार को करना चाहिए सम्मान

बाघों के घर पन्ना टाइगर रिज़र्व के बीच से प्रवाहित होने वाली केन नदी।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। विंध्य पर्वत श्रेणी में स्थित मध्य प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व इन दिनों विवादित केन बेतवा लिंक परियोजना को लेकर चर्चा में हैं। परियोजना के अंतर्गत इस रिजर्व के कोर क्षेत्र में 73.40 मीटर ऊंचा और 14 68 मीटर लंबा बांध बनाया जाना है। इस बांध के पानी को 231.45 किलोमीटर लंबी नहर के जरिए बेतवा नदी तक पहुंचाया जायेगा। शासन की इस अति महत्वाकांक्षी परियोजना से लोगों को कितना लाभ होगा, यह तो भविष्य के गर्त में है लेकिन इससे पन्ना टाइगर रिजर्व का वजूद जरूर खत्म हो जायेगा। 

उल्लेखनीय है कि पन्ना टाइगर रिजर्व की भौगोलिक संरचना अनूठी है। यहां के घने खूबसूरत जंगलों में राष्ट्रीय पशु बाघ सहित जंगल का राजकुमार कहा जाने वाला तेंदुआ, भालू ,नीलगाय, चिंकारा, चीतल, चौसिंगा, सांभर व सेही जैसे सैकड़ों प्रजाति के जीव जंतुओं सहित 200 से भी अधिक प्रजाति के पक्षी रहते हैं। यहां विलुप्त प्राय गिद्धों की सात प्रजातियां भी निवास करती हैं तथा पन्ना टाइगर रिजर्व के मध्य से प्रवाहित होने वाली केन नदी जो यहां की जीवन रेखा है उसमें घडय़िाल और मगरमच्छ भी पाये जाते हैं। जैव विविधता से परिपूर्ण ऐसे समृद्ध वन क्षेत्र को डुबाकर उसे नष्ट किए जाने की योजना से प्रकृति भी नाखुश दिखाई देती है। पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों का कुनबा जिस गति से बढ़ा है तथा इसके साथ ही शाकाहारी वन्य जीवों की संख्या में इजाफा हुआ है, उससे स्पष्ट संकेत मिलते हैं कि प्रकृति इस समृद्ध और खूबसूरत वन क्षेत्र को उजाडऩे के पक्ष में नहीं है। बीते 3 माह के दौरान ही यहां पर 13 बाघ शावकों का जन्म हुआ है। प्रकृति से मिल रहे इन संकेतों को हम कैसे अनदेखा कर रहे हैं ? क्या हम इतने संवेदनहीन और स्वार्थी हो चुके हैं कि प्रकृति की इच्छा का सम्मान करना ही भूल गये हैं। यूनेस्को ने जिस वन क्षेत्र को मैन एंड बायोस्फीयर प्रोग्राम के तहत बायोस्फीयर रिजर्व की वैश्विक सूची में शामिल किया है, उस अनमोल धरोहर को नष्ट करने की योजना भला कैसे हितकारी साबित होगी ?


पन्ना की यह बाघिन शायद यही कह रही है कि इन जीवनदायी पेड़ों को मत काटो। 

मालुम हो कि हमारे वन, पर्वत और नदियां इस धरती की अमूल्य निधियां और उपहार हैं, जो हमारे जीवन को प्रेम, उत्साह और शक्ति से भरते हैं। ये बिना किसी अपेक्षा के अनवरत रूप से हमें शुद्ध वायु, जल व स्वास्थ्यवर्धक आबोहवा नि:शुल्क प्रदान करते हैं। फिर भी हम अपने निहित स्वार्थों व तात्कालिक लाभ के लिए प्रकृति प्रदत्त इन अनमोल उपहारों का आदर करने के बजाय उनका विनाश करने पर तुले हुए हैं। आखिर यह कैसी बुद्धिमत्ता और समझदारी है ? जिन प्राकृतिक संरचनाओं को हम सृजित नहीं कर सकते उन्हें नष्ट करने का अधिकार हमें कैसे और कहां से मिल गया ? समझदारी तो इसी में है कि हम प्रकृति के इन उपहारों का आदर करें, इनकी सुरक्षा करें, इनके सानिध्य में रहें ताकि स्वस्थ, तनावमुक्त और खुशहाल जीवन जी सकें।

 पूर्व मंत्री व वरिष्ठ भाजपा नेत्री सुश्री महदेले ने उठाए सवाल 



पर्यावरणविदों ने केन - बेतवा लिंक परियोजना का शुरुआती दौर से ही विरोध किया है तथा इसे प्रकृति और पर्यावरण के लिए घातक बताया है। स्थानीय लोग भी लंबे समय से इस विवादित परियोजना का विरोध करते आ रहे हैं। लेकिन किसी वरिष्ठ भाजपा नेता ने पहली मर्तबे केन-बेतवा लिंक परियोजना पर खुलकर विरोध दर्ज किया है। यह हौसला पन्ना जिले की कद्दावर नेता पूर्व कैबिनेट मंत्री सुश्री कुसुम सिंह महदेले ने दिखाया है। उन्होंने सवाल उठाते हुए इसे पन्ना जिले के लिए घातक बताया है। सुश्री महदेले ने ट्वीट कर कहा है कि केन - बेतवा नदियों को जोडऩे से पन्ना टाइगर रिजर्व पूरी तरह से उजड़ जायेगा तथा बाघों का रहवास खत्म हो जायेगा। पन्ना में पर्यटन व्यवसाय की संभावनाएं भी क्षीण हो जायेंगी। सुश्री महदेले के इस हौसले और साहसिक पहल की आम जनमानस के बीच जहां सराहना हो रही है, वहीं राजनीतिक हलकों में भी इस परियोजना को लेकर नये सिरे से विचार मंथन शुरू हो गया है।

00000



No comments:

Post a Comment