नदी से - पानी नहीं , रेत चाहिए,
पहाड़ से - औषधि नहीं , पत्थर चाहिए,
पेड़ से - छाया नहीं , लकड़ी चाहिए,
खेत से - अन्न नहीं , नकद फसल चाहिए,
उलीच ली रेत,
खोद लिए पत्थर,
काट लिए पेड़,
तोड़ दी मेड़
रेत से पक्की सड़क
पत्थर से मकान बनाकर
लकड़ी के नक्काशीदार
दरवाजे सजाकर,
अब भटक रहे हैं.!!
मृत कुओं में झाँकते,
रीती नदियाँ ताकते,
झाडय़िां खोजते
लू के थपेड़ों में,
बिना छाया के ही
हो जाती सुबह से शाम!!
फिर भी सब बर्तन खाली
सोने के अंडे के लालच में
मुर्गी मार डाली !!!,
विचार कीजिए।
(प्रवीन गोस्वामी की फेसबुक वॉल से साभार)
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