Tuesday, May 25, 2021

मध्यप्रदेश की धरती में फिर सुनाई देगी चीते की दहाड़

  •  कूनो राष्ट्रीय उद्यान में नजर आयेगा जंगल का यह राजकुमार 
  •  दक्षिण अफ्रीका से 10 चीतों को भारत लाने का रास्ता हुआ साफ 
  •  वर्ष 1952 में भारत से विलुप्त हो गया था यह सबसे तेज धावक 

धरती का सबसे तेज धावक चीता।    (फोटो इंटरनेट से साभार) 

।। अरुण सिंह ।।  

धरती पर सबसे तेज दौडऩे वाले स्तनधारी चीतों की दहाड़ अब मध्यप्रदेश की धरती में फिर से सुनाई देगी। वर्ष 1952 में चीते को भारत में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। विलुप्त प्रजाति के इस बेहद खूबसूरत वन्य प्राणी को फिर से हिंदुस्तान में बसाने की तैयारी चल रही है। इसके लिए मध्यप्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान को चुना गया है। यहां पर दक्षिण अफ्रीका से चीतों को लाया जाना है। जंगल के इन राजकुमारों का नया ठिकाना मध्यप्रदेश का कूनो राष्ट्रीय उद्यान होगा। इस तरह से तक़रीबन 74 साल बाद देश में विलुप्त हुए चीते की दहाड़ फिर से सुनाई देगी।  

उल्लेखनीय है कि देश में अंतिम धब्बेदार चीता वर्ष 1947 में अविभाजित मध्य प्रदेश के कोरिया इलाके में देखा गया था, जो अब छत्तीसगढ़ में आता है। बाद में वर्ष 1952 में इस वन्य प्राणी को देश में विलुप्त घोषित कर दिया गया था। मध्यप्रदेश के वन मंत्री विजय शाह ने बीते रोज इस आशय की जानकारी देते हुए बताया कि कूनो नेशनल पार्क में इन अफ्रीकी जानवरों को बसाया जायेगा। शाह ने बताया कि दक्षिण अफ्रीका से 10 चीतों को मध्य प्रदेश के कूनो राष्ट्रीय उद्यान में लाया जाएगा। इनमें पांच नर एवं पांच मादा होंगी। हमने इनके लिए कूनो राष्ट्रीय उद्यान में बाड़ा बनाने का काम इस महीने से शुरू कर दिया है जो अगस्त में बनकर तैयार हो जाएगा।

प्रदेश के चंबल संभाग में आने वाला कूनो राष्ट्रीय उद्यान करीब 750 वर्ग किलोमीटर के दायरे में फैला हुआ है। यह वन क्षेत्र चीते को फिर से बसाने के लिए देश के सबसे बेहतर पर्यावास में से एक है। इसमें चीतों के लिए अच्छा शिकार भी मौजूद है, क्योंकि यहां पर चौसिंगा हिरण, चिंकारा, नीलगाय, सांभर एवं चीतल बड़ी तादाद में पाए जाते हैं। वन मंत्री श्री शाह ने बताया कि केंद्रीय पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय ने हमें चीतों को फिर से बसाने के लिए इस सप्ताह एक संभावित कार्यक्रम भेजा है। इसके अनुसार इस साल मई से अगस्त के बीच मध्य प्रदेश वन विभाग को कूनो राष्ट्रीय उद्यान में इनके लिए बाड़ा तैयार करना है। इनको बसाने के लिए इस वित्तीय वर्ष 2021-22 के लिए 14 करोड़ रुपये का अनुमानित बजट मिलेगा। 

अपर प्रधान मुख्य वन संरक्षक (वन्यप्राणी) जे.एस. चौहान ने बताया कि चीते को फिर से बसाने के लिए देश के सबसे बेहतर पर्यावास का पता लगाने के लिए भारतीय वन्यजीव संस्थान देहरादून के विशेषज्ञों के एक दल ने पिछले साल मध्य प्रदेश के चार स्थानों का दौरा किया था। इनमें श्योपुर जिले के कूनो राष्ट्रीय उद्यान के अलावा सागर जिले स्थित नौरादेही वन्यजीव अभयारण्य और नीमच एवं मंदसौर जिले की उत्तरी सीमा पर स्थित गांधी सागर अभयारण्य और शिवपुरी जिले के माधव राष्ट्रीय उद्यान शामिल थे। श्री चौहान ने कहा कि मध्य प्रदेश में पहले भी चीते रहते थे। राज्य में लंबे समय तक इनके संरक्षण का इतिहास रहा है। हमारे पास इनको बसाने के लिए बेहतर जगह है। उन्होंने कहा कि हम मध्य प्रदेश के पन्ना बाघ अभयारण्य में वर्ष 2009 में बाघों को फिर से बसाने में सफल हुए हैं। 

... वो आने वाला है: कबीर संजय 

प्रकृति, पर्यावरण और वन्य जीवों पर निरंतर लिखने वाले पर्यावरणविद व लेखक कबीर संजय ने एक बहुत ही उम्दा किताब "चीता: भारतीय जंगलों का गुम शहजादा" लिखी है। यह किताब पठनीय तो है ही संग्रहणीय भी है। जंगल के गुम हो चुके इस शहजादे को भारत में फिर से बसाने की अभिनव पहल का किताब के लेखक कबीर संजय ने स्वागत किया है। अपनी फेसबुक वॉल में कबीर संजय ने लिखा है -


उसके रास्ते की सारी बाधाएं दूर हो गई हैं। वो आने वाला है। बस इंतजार अब कुछ महीनों का है। पूरी उम्मीद है कि सितंबर महीने तक अफ्रीका से भारत में आठ चीते आएंगे। इन्हें मध्य प्रदेश के कूनो नेशनल पार्क में बसाया जाएगा। दस-बारह सालों की लंबी प्रक्रिया के बाद अब ये वक्त करीब आ गया है। 

दुनिया में सबसे तेज दौड़ चीते की है। फर्राटा भरने में उसके जैसा कोई उस्ताद नहीं। एक जमाना था जब भारत भूमि पर चीते बड़ी संख्या में वास करते थे। उन्हें पालतू बनाने और उनके जरिए शिकार का शगल राजाओं और नवाबों को था। अंग्रेजों को उनका शिकार करने का शगल था। इसके चलते लगभग सत्तर साल पहले वे विलुप्त हो गए। एशियाई चीतों की पूरी प्रजाति ही अपने अंतिम दौर में है। गिनती के एशियाई चीते ईरान में बचे हैं। 

अब अफ्रीकी चीते को भारत में बसाने की तैयारी है। इंडेजर्ड वाइल्ड लाइफ ट्रस्ट की एक टीम ने हाल ही में कूनो नेशनल पार्क का दौरा किया। उसने यहां के पर्यावास को चीते के लिए उपयुक्त पाया है। कुछ छोटे-मोटे सुधार करने को भी कहा है। इसके साथ ही चीतों के यहां आने का रास्ता पूरी तरह साफ हो गया है। पहली बार में आठ नर और तीन मादा चीते लाए जाने की संभावना है। 

पूरी दुनिया की निगाह इस ट्रांसलोकेशन पर होगी। भारत में भी यह पहली बार होगा जब किसी बड़ी बिल्ली को किसी अन्य देश से लाकर यहां पर बसाया जा रहा हो। हालांकि, कुछ छोटे-मोटे प्रयास हुए हैं। पूरी दुनिया इससे सबक लेगी और अगर चीतों के इस ट्रांसलोकेशन को सफलता मिलती है तो उनकी प्रजाति के बचे रहने का रास्ता कुछ हद तक साफ होगा। 

चीते कैसे भारतीय जन-जीवन में समाए हुए थे, कैसे वे विलुप्त हो गए, बिडालों के परिवार में और कौन-कौन सदस्य हैं, किन-किन पर और खतरा है, इस सबके बारे में जानने के लिए आप मेरी किताब चीता: भारतीय जंगलों का गुम शहजादा पढ़ सकते हैं। 

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