दुर्लभ प्रजाति वाला रेड क्राऊंड टर्टल (लाल तिलकधारी) कछुआ। |
मध्यप्रदेश के सागर जिले की अदालत ने रेड क्राऊंड टर्टल (लाल तिलकधारी कछुओं) और पेंगोलिन की तस्करी करने वाले अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह के 13 सदस्यों को सात वर्ष कैद की सजा सुनाई है। मुख्य आरोपी चेन्नई के वनी मन्नन पर सजा के साथ पांच लाख रु का जुर्माना भी लगाया है।
लाल तिलकधारी कछुए की प्रजाति चंबल नदी में पाई जाती है और वन विभाग के आंकड़ों के मुताबिक इस प्रजाति के लगभग नौ सौ कछुए ही जीवित बचे हैं। मप्र के फारेस्ट विभाग ने इन कछुओं की संख्या बढ़ाने के लिए दो प्रजनन केंद्र खोले हैं। कोलकाता व चेन्नई के तस्कर मुरैना के पास देवरी ईको सेंटर स्थित ब्रीडिंग सेंटर के कर्मचारियों की साठगांठ से नेटवर्क बना कर यहां से दुर्लभ कछुओं की तस्करी करा रहे थे। तस्कर गिरोह इन सरकारी केद्रों से 50 हजार प्रति नग की दर से कछुए हासिल करता था और साढ़े तीन लाख रु प्रति कछुए की दर से अंतर्राष्ट्रीय बाजार में बेचता था। इनको कोलकाता और मद्रास के एयरपोर्ट से विदेशी बाजारों में भेजा जाता था। पेंगोलिन के शल्कों को भी ये तस्कर एमपी और यूपी के इलाकों से खरीद कर अंतरराष्ट्रीय बाजार में बेच रहे थे।
प्रथम श्रेणी न्यायाधीश विवेक पाठक की अदालत में साढ़े तीन साल चले इस मुकदमे के बाद आरोपी मन्नीवन्नन मुरूगेशन निवासी चेन्नई को धारा 51(1)क वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में 7 वर्ष का सश्रम कारावास एवं 5 लाख के अर्थदण्ड से, आरोपी थमीम अंसारी निवासी चेन्नई, तपस बसाक, सुशीलदास उर्फ खोखा, मो. इरफान, मो. इकरार निवासी कोलकाता, रामसिंह उर्फ भोला, अजय सिंह निवासी आगरा, को धारा 51(1)क वन्य जीव संरक्षण अधिनियम 1972 में दोषी पाते हुए सभी अरोपियों को सात वर्ष के सश्रम कारावास एवं पचास हजार रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया गया। आरोपीगण आजाद, संपतिया बाथम, कमल बाथम, विजय गौड़, कैलाशी उर्फ चच्चा निवासी मैनपुरी उ.प्र. को सात वर्ष सश्रम कारावास तथा बीस रूपये के अर्थदण्ड से दंडित किया गया।
मुकदमे की खासियत यह रही कि इसमें गिरफ्तार हुए किसी भी आरोपी को जमानत तक नहीं मिल सकी। आरोपियों की अपीलें सात बार हाईकोर्ट और एक बार सुप्रीम कोर्ट से निरस्त हुई। इससे भारतीय न्यायपालिका और भारत के वन एवं पर्यावरण विभागों की दुर्लभ वन्यजीवों के संरक्षण के लिए कड़ी प्रतिबद्धता का अनुमान लगाया जा सकता है। एमपी के राज्यस्तरीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स भोपाल द्वारा क्षेत्रीय टाइगर स्ट्राइक फोर्स सागर के साथ मिलकर एक जांच दल कर गठन किया गया था। 05.05.2017 को ग्राम मौगियापुरा वन परिक्षेत्र सबलगढ़ में इस टीम ने प्रकरण के मृत आरोपी नन्दलाल के घर पर दविश देकर पैंगोलिन के शल्क बरामद किए थे।
एमपी की टीम द्वारा यूपी एसटीएफ से मदद मांगे जाने पर इस मामले की विवेचना लखनऊ, आगरा और फैजाबाद तक चली और अंतरराष्ट्रीय तस्कर गिरोह के जाल की कलई खुलती चली गई। एएसपी डा अरविंद चतुर्वेदी ने तस्करों के नेटवर्क को तोड़ने के लिए कोलकाता और चेन्नई पुलिस की भी मदद ली।
पेंगोलिन |
यूपी एसटीएफ ने मध्य प्रदेश वन विभाग के अफसरों की मदद से दुर्लभ प्रजाति के तिलकधारी कछुओं के अंतर्राष्ट्रीय तस्कर इरफान को लखनऊ से गिरफ्तार किया था। इरफान सागर में दर्ज मुकदमे में वांछित था और फैजाबाद में एक शादी में शामिल होने के बाद वह लखनऊ आया था जहां एसटीएफ ने उसे गिरफ्तार कर लिया। मार्च 2017 में अजयसिंह नामक तस्कर की गिरफ्तारी हुई थी। एमपी एसटीएफ को अजयसिंह ने पूछताछ में इरफान के बारे में बताया। तब से एमपी एसटीएफ (फॉरेस्ट) उसे तलाश रही थी। इस बीच उसके लखनऊ के विभूतिखंड में होने की सूचना मिली। एमपी एसटीएफ और यूपी एसटीएफ ने छापेमारी कर इमरान को रंजीश होटल के पास से गिरफ्तार कर लिया। इरफान मूलरूप से कोलकाता के इकबालपुर का रहने वाला है। चेन्नई निवासी विनोद ने इरफान को फुफेरे भाई शम्भू, मनीवारन और मनीवन्नन से मिलवाया था।
आरोपियों को सजा दिलाने में सागर के फारेस्ट डिपार्टमेंट की अभियोजन अधिकारी डा सुधा भदौरिया के परिश्रम और ईमानदारी की तारीफ की जाना चाहिए। यह पूरा मामला हाईप्रोफाइल था। धन और रसूख के असर में आए बगैर आरोपियों को विवेचकों और अभियोजन पक्ष ने उनके अंजाम तक पहुंचाया। फारेस्ट विभाग ने इस संवेदनशील मामले में लिप्त अपने किन अधिकारियों व कर्मचारियों को आरोपी बनाया या बर्खास्त किया इसका खुलासा भी विभाग को करना चाहिए।
(रजनीश जैन की फेसबुक वॉल से साभार)
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