- बारिश के मौसम में जब देश के सभी टाइगर रिजर्व पर्यटकों के लिए बंद हो जाते हैं। उस समय घने जंगल, दुर्गम पहाड़ों, गहरे सेहों और नदी नालों के बीच वन कर्मी पैदल गस्त करते हैं। इस दौरान उन्हें हर पल खतरों और चुनौतियों से जूझना पड़ता है। इन विषम परिस्थितियों में भी वे वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए मुस्तैद रहते हैं।
टाइगर रिजर्व के बफर क्षेत्र में पैदल गस्त करते रेंजर व साथ में वन कर्मी। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना । मानसून सीजन में जब जंगल हरा- भरा और घना होता है, उस समय नदी नालों में पानी आ जाने व वन मार्गों पर कीचड़ हो जाने से वाहनों की आवाजाही बंद हो जाती है। इस मौसम में जंगल व वन्य प्राणियों विशेषकर बाघों की सुरक्षा सुनिश्चित करना एक बड़ी चुनौती होती है। ऐसा जंगल जहाँ तक़रीबन 65 बाघ अपने लिए शिकार की खोज में निरंतर विचरण करते हों, वहाँ बारिश के मौसम में पैदल गस्त करना आसान नहीं है। लेकिन सुरक्षा में तैनात रहने वाले वन कर्मियों को इन कठिन चुनौतियों का सामना करते हुए ज्यादातर पैदल ही गस्त करना पड़ता है। बारिश के 3 माह वन योद्धाओं के लिए परीक्षा की घड़ी होती है। क्योंकि इस सीजन में जंगल माफियाओं के साथ-साथ शिकारियों की भी सक्रियता बढ़ जाती है।
टाइगर स्टेट मध्य प्रदेश में जहां बाघों की संख्या देश में सबसे ज्यादा है, वहां बारिश शुरू होते ही सभी बाघ अभ्यारण्यों में मानसून अलर्ट रहता है। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि मानसून सीजन में पैदल चलने पर जोर दिया जाता है। इसकी वजह का खुलासा करते हुए आपने बताया कि बारिश के मौसम में जंगल हरा-भरा और घना हो जाता है, जिससे जंगल की विजिबिलिटी ( जंगल में दूर तक दिखना ) बहुत पुअर हो जाती है। ऐसी स्थिति में पैदल चल कर ही जंगल का जायजा लिया जा सकता है।
पन्ना टाइगर रिजर्व के संवेदनशील इलाकों में पैदल गस्त के संबंध में मैदानी वन कर्मियों को दिशा निर्देश देते हुए क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा। |
बारिश के मौसम में पानी की उपलब्धता हर जगह होती है, इसलिए वन्य प्राणी पूरे इलाके में विचरण करते हैं। जिसके चलते उनकी मॉनिटरिंग कठिन हो जाती है। जबकि गर्मियों में जब जल स्रोत सीमित होते हैं, उस समय उनकी सुरक्षा सुनिश्चित करना आसान होता है। क्षेत्र संचालक आगे बताते हैं कि मानसून गस्ती में वन कर्मी लाठी-डंडा लेकर समूह में निकलते हैं। क्योंकि इस समय सबसे ज्यादा खतरा भालू और जहरीले सांपों से रहता है। पन्ना टाइगर रिजर्व में चूंकि भालुओं की संख्या काफी है, इसलिए गस्ती के दौरान सतर्कता बेहद जरूरी रहती है।
हाथी करते हैं बाघों की निगरानी
बारिश के मौसम में दुर्गम इलाकों पर हाथी इस तरह गस्त कर जंगल की निगरानी करते हैं। |
मानसून सीजन में बाघों की निगरानी व जंगल की सुरक्षा का दायित्व हाथी बखूबी निभाते हैं। टाइगर रिजर्व के पहुंच विहीन क्षेत्रों में जहां नदी नालों के कारण मैदानी वन अमला नहीं पहुंच पाता, ऐसे इलाकों में टाइगर रिजर्व के प्रशिक्षित हाथी मुस्तैदी के साथ गस्त करते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव कुमार गुप्ता ने बताया कि मानसून गस्ती में सबसे महत्वपूर्ण भूमिका हाथियों की होती है। जहां पर वन अमला पैदल नहीं पहुंच सकता, वहां हाथी पहुंचते हैं। हाथियों की मदद से टाइगर रिजर्व के बेहद संवेदनशील इलाकों में भी गस्त संभव हो जाती है।
पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों का भरा-पूरा कुनबा है, जिसमें 15 सदस्य हैं। लेकिन मानसून गस्त में नर हाथी रामबहादुर सहित मोहनकली, अनारकली, रूपकली, अनंती, प्रहलाद, वन्या व केनकली का उपयोग किया जा रहा है। महावत बुद्धराम यादव ने बताया कि बारिश में जब रास्तों पर वाहन नहीं चल पाते, तो दुर्गम इलाकों में हाथियों से गस्त की जाती है। टाइगर रिजर्व के प्रशिक्षित हाथी पहाडियों, नालों व ऊंची घास वाले इलाकों में सघन गस्त कर जंगल की कटाई, अवैध प्रवेश व शिकारियों पर जहां प्रभावी रोक लगाते हैं, वहीं बाघ की लोकेशन भी पता करते हैं।
महावत सुर्रे आदिवासी ने बताया कि वन क्षेत्र में शिकारियों व लकड़ी चोरों की आहट मिलने पर हथनी अनारकली व रूपकली उस दिशा में पत्थर बरसाने लगती हैं। जब दोनों हथिनी अपनी सूंड से पत्थर मारती हैं तो शिकारी जान बचाकर भागने को मजबूर हो जाते हैं। पन्ना टाइगर रिजर्व में हाथियों के इस अनूठे संसार में सबसे बुजुर्ग हथनी वत्सला है, जो 100 वर्ष की आयु पार कर चुकी है। हाथियों के इस परिवार में सबसे छोटी सदस्य मादा शिशु है, जिसे बीते साल 18 सितंबर 20 को हथिनी रूप कली ने जन्म दिया है।
कैम्पों में तैनात रहते हैं वन कर्मी
पन्ना टाइगर रिजर्व के 542 वर्ग किलोमीटर में फैले कोर क्षेत्र तथा 1021 वर्ग किलोमीटर बफर क्षेत्र के चप्पे-चप्पे पर नजर रखने के लिए 142 पेट्रोलिंग कैंप, 47 निगरानी कैम्प तथा 83 स्थाई कैंप हैं, जहां वन कर्मी तैनात रहते हैं। सबसे ज्यादा कठिनाई अस्थाई कैंपों में तैनात कर्मचारियों को होती है, ये कैंप लकड़ी व घास-फूस से बनाए गए हैं। वन कर्मी बताते हैं कि बारिश के मौसम में बड़े-बड़े जंगली चूहे कैंप में घुसकर खाने की सामग्री चट कर देते हैं। बारिश के कारण लकड़ी गीली रहती है, फलस्वरूप खाना बनाने में भी काफी कठिनाई होती है। इसके अलावा रात के समय हर वक्त जहरीले सांपों का भी खतरा बना रहता है। सूर्यास्त होते ही जंगल में खतरे की घंटी बज जाती है।
बफर क्षेत्र के जंगल में प्रशिक्षित डॉग की मदद से शिकारियों की खोजबीन करते वन कर्मी व सुरक्षा श्रमिक। |
खतरों के बीच इन कैंपों में तैनात रहकर व पैदल गस्त कर वन्य प्राणियों की सुरक्षा करने वाले एक वन कर्मी ने नाम न प्रकाशित करने की शर्त पर बताया कि बफर क्षेत्र के जंगल में पशुपालक मवेशी चराने घुस आते हैं। जिन पर चौकस नजर रखनी पड़ती है। पशुपालक रात के अंधेरे में भी अपने मवेशियों को ढूंढने जंगल में चले जाते हैं, जिससे वन्य प्राणियों विशेषकर भालू के हमले का खतरा बना रहता है।
बीते माह हमले में चरवाहे की हो चुकी है मौत
बंदिशों के बावजूद वन क्षेत्र से लगे ग्रामों के पशुपालक अपने मवेशी चरने के लिए जंगल में छोड़ देते हैं। रात्रि के समय जब वे मवेशियों को ढूंढने जंगल में जाते हैं, तो उनकी जान को भी खतरा रहता है। बीते माह 20 जुलाई को बगौंहा बीट के जंगल में 55 वर्षीय चरवाहे हरदास अहिरवार के ऊपर भालू ने उस समय हमला कर दिया था, जब वह अपनी भैंसों को ढूंढने जंगल में गया था। इस हमले में चरवाहे की मौके पर ही मौत हो गई थी।
वन्य प्राणियों द्वारा हमला करने की ऐसी घटनाओं से मानव व वन्य प्राणियों के बीच टकराव की भी स्थिति बनती है, जिसे रोकना वन कर्मियों के लिए किसी चुनौती से कम नहीं है। मानसून सीजन में जंगल की पहाडय़िों से अनेकों जलप्रपात निर्मित होते हैं। इसके अलावा जंगल में कई जगह धार्मिक महत्व के स्थल भी हैं, जहां पिकनिक मनाने भी लोग पहुंचते हैं। ऐसे लोगों पर भी वन कर्मियों को चौकस नजर रखनी पड़ती है।
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