Tuesday, September 21, 2021

बारिश का यह फल मलेरिया बुखार की अनोखी दवा

 अनोखी औषधि पचगुड्डू, जिसका उपयोग मलेरिया बुखार में किया जाता था। 

 ।। अरुण सिंह ।।      

पन्ना। प्रकृति में कोई भी बनस्पति अनुपयोगी व बेकार नहीं है। हर बनस्पति व जीव - जन्तु का महत्व और उसकी उपयोगिता है, भले ही हम उससे अनजान हों। आज यदि किसी को साधारण सर्दी-जुखाम भी हुआ तो वह सीधे किसी डॉक्टर के पास पहुचता है। लेकिन प्राचीन समय में लोग गांव के आस-पास पाई जाने वाली अनेक जड़ी बूटियों से ही अपना उपचार कर लेते थे। जिस तरह गांव में किसानों के सहयोगी अन्य उद्द्यमी गांव में ही बसकर अपनी आजीविका चला लेते थे, उसी तरह एकाध चुटुक वैदिया में रूचि रखने वाले बैद्य भी होते थे। जिनका चिकित्सीय ज्ञान गुरु शिष्य परम्परा में चलता रहता था। 

लेकिन यह पारम्परिक ज्ञान अब धीरे-धीरे विलुप्त होता जा रहा है। हमारे आस-पास औषधियों का खजाना है लेकिन हम उससे अनभिज्ञ हैं। ऐसी ही एक बनस्पति है जो बारिश के मौसम में अपने आप जहाँ-तहाँ दिखने लगती है। इसकी लतर में बेर के आकार वाले फल प्रचुर संख्या में लगते हैं, यह पचगुड्डू है जिसका उपयोग पुराने ज़माने में मलेरिया बुखार से निजात पाने के लिए औषधि के रूप में किया जाता रहा है। 

जैव विविधता व जैविक खेती को बढ़ावा देने के महती कार्य में दशकों से संलग्न पद्मश्री बाबूलाल दाहिया बताते हैं कि पचगुड्डू अनोखी औषधि है। इसके 5 हरे कोमल फल एक साथ खाने का प्रावधान था। इसे आयुर्वेद में शिवलिंगी कहा जाता है।जब तक  गाँव मे चिकित्सा की आज जैसी सुविधाएं नहीं थीं, तब तक यह मलेरिया बुखार की मुफीत दवा मानी जाती थी। मुझे याद है तब इसके पाँच फलों में नमक की छोटी - छोटी डली डाल आग में भून कर खा लेने से मलेरिया बुखार समाप्त हो जाता था।


पचगुड्डू की बेल जो बारिश के मौसम में हर जगह फ़ैल जाती है। 

एक दवा इसके कच्चे पके फलों सहित बेल को सुखा और कूट कर चूर्ण के रूप में भी बनती थी, जिससे तिजारी चौथिया बना मलेरिया भी ठीक हो जाता था। क्यो कि इसका सर्वांग कड़बा होता है। प्रकृति का समन्वय देखिए कि मलेरिया अमूमन भादों क्वार के महीने में होता था और मलेरिया बुखार की यह मुफीत दबा पचगुड्डू भी उसी समय अपने आप बाड़ में जम कर फल जाती थी।

क्योंकि शुरू-शुरू में बारिश तेज होती है तब गर्म धरती और बहते पानी में मलेरिया उत्पन्न करने वाले मच्छर अपने अंडे नहीं देते ? वह तब अंडे देते हैं जब बातावरण में नमी और गड्ढो में पानी भर जाता है। पर आज यह बेल पूरी तरह उपेक्षित है। क्योंकि इसका उपयोग अब पूरी तरह समाप्त है। बेचारी नई पीढ़ी भला क्या जाने कि इसके हमारे पुरखो के ऊपर क्या उपकार रहे हैं ?

श्री दाहिया बताते हैं कि यह भर नहीं हर जीव के कुछ सहयोगी हैं तो कुछ नियन्त्रक भी । इसलिए स्वच्छ और स्वस्थ धरती के लिए हर प्रकार की जैव विविधता का संरक्षण आवश्यक है। क्योंकि सभी जीव धारी और वनस्पतियां जाने अनजाने एक दूसरे से जुड़े हुए हैं।

गाँव का बिलुप्त होता चिकित्सकीय ज्ञान

 पुराने ज़माने में हर गांव में वैद्य होते थे जिनका चिकित्सकीय ज्ञान पीढ़ी दर पीढ़ी सतत चलता रहता था। लेकिन अब यह ज्ञान विलुप्त होता जा रहा है। गांव के बैद्य साधारण ज्वर बुखार से लेकर साँप बिच्छू और पागल कुत्ते के काटने तक का उपचार करते थे। उनके उपयोग में आने वाली यह दवाई पचगुड्डू, शिवलिंगी, नारी दमदमी ,सतावर, मूसली, अकोड़ा, घमिरा आदि साधारण जड़ी-बूटी तो आम पहचान की थी, पर साँप और कुत्ते के काटने से सम्बंधित जड़ी बूटियों को अति गोपनीय रखा जाता था।

 उन औषधियों को बैद्य इतना गोपनीय रखता कि मरने के कुछ पहले ही किसी परिवार के व्यक्ति या जिज्ञाशु शिष्य को बताता था। किन्तु  कुछ साधरण औषधीय ज्ञान गांव की कहावतों में भी सूत्र बद्ध  हो चुका था, जो लोककंठ में बस कर लोगो के लिए उपयोगी था। उन दिनों गाँव में लोगों को बिच्छू का काटना आम घटना हुआ करती थी। इसलिए बिच्छू काटने की चिकित्सा पर कहावत  होना स्वाभाविक था।

 लहसुन दूध मदार का दूनव साथ मिलाय ।

 बिच्छू काटे मा धरे बिख तुरन्त उड़जाय ।।  

लोगों का मानना था कि अगर त्रिफला यानी हर्र, बहेरा, आंवला  तीनों के फल को पानी में भिगोकर उससे सर धोया जाय, तो बाल सफेद नहीं होते। यथा-

बाल सफेद न ओकर होय।

त्रिफला से आपन सिर धोय ।। 

किन्तु इनमे  कुछ कहावते  अतिशयोक्ति पूर्ण भी रच दी गई  है । पर इतना तो सत्य है  ही कि सेवन करने वाला ब्यक्ति  ताकतवर अवश्य बनेगा । यथा-

हर्र, बहेरा,आंवला, घी शक्कर संघ खाय ।

हाथी बगल दबाय के पाँच कदम उड़ जाय।।

एक कहावत में हर्र और नीम के गुणों की तुलना की गई है यथा-

हर्र गुण तीस, नीम गुण छत्तीश । 

इस तरह गाँव के आस पास उगने वाले अनेक पेड़-पौधे, बनस्पतियों एवं जड़ी-बूटियों का बहुत बड़ा ज्ञान बैद्यो के पास तो था ही कुछ ज्ञान लोक कहावतों में भी वर्णित पाया जाता है।

( नोट - वर्णित औषधियों का उपयोग जानकर वैद्यों से परामर्श के उपरान्त ही करें। )

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