यह है तुरुइया की एक देशी प्रजाति झुमक तरोई। |
जी हां, यह झुमक तरोई है। आपने कई महिलाओं को कान में झुमका पहने देखा होगा। 60-70 के दशक में तो "झुमका गिरा रे बरेली के बजार मा " नामक झुमका पर एक फिल्मी गीत ही काफी पापुलर हो गया था। किन्तु उस झुमका को कान में पहनने लायक बनाने की स्वर्णकार की परिकल्पना का श्रेय जाता है इस झुमक तरोई को, जो 4--5 के गुच्छे में फल देती है।
प्रकृति में जीव-जंतुओं व कीट-पतंगों की तरह बनस्पतियों का भी अनूठा संसार है। हर बनस्पति की अपनी खूबी व महत्व है। किसी में औषधीय गुण है तो किसी के फल पोषण से भरपूर होते हैं। ये बनस्पतियाँ भी भोजन श्रंखला का हिस्सा हैं, जिन पर न जाने कितने शाकाहारी जीव जन्तु पलते हैं। बनस्पतियों के इस संसार में एक बनस्पति झुमक तरोई भी है, जो तुरुइया की एक प्रजाति है। इसकी सब्जी हम सब बड़े चाव से खाते हैं।
लेकिन यहाँ जिस झुमक तरोई की बात हो रही है, उसके फल अमूमन सब्जी बाजार में नजर नहीं आते। क्योंकि ज्यादातर कृषक सब्जी के हाइब्रिड बीज उगाते हैं ताकि अधिक उत्पादन लेकर ज्यादा लाभ कमा सकें। यही वजह है कि देशी अनाजों व सब्जियों की कई अनूठी प्रजातियां गुम हो गई हैं।
यह तो गोल है, पर इसकी लम्बे फलों के गुच्छे वाली एक अन्य किस्म भी होती है। पकने पर इसका फल सूखकर चित्र की तरह सफेद हो जाता है। जिसके अन्दर खुरदरा रेशा निकलता है और उसका उपयोग महिलाए अपने सोने चाँदी के आभूषण चमकाने में करती हैं। इसकी तरकारी क्वार से अगहन तक खाई जाती है। पर अब तमाम सब्जिओं की हाईब्रीड किस्मे आजाने के कारण यह परम्परागत किस्म विलुप्तता के कगार पर है।
@बाबूलाल दाहिया
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