- देशी व विदेशी पर्यटक कर सकेंगे जंगल की निराली दुनिया का दीदार
- टाइगर रिजर्व के मंडला प्रवेश द्वार में होगा पर्यटकों का स्वागत
पन्ना टाइगर रिजर्व का मंडला प्रवेश द्वार जो 1 अक्टूबर से पर्यटकों के भ्रमण हेतु खुलेगा। |
पन्ना। बारिश में तीन माह तक पर्यटन गतिविधियों के लिए बंद रहने के उपरांत 1 अक्टूबर से मध्य प्रदेश के सभी टाइगर रिजर्व (पन्ना, बांधवगढ़, कान्हा, सतपुड़ा, पेंच व संजय डुबरी) पर्यटकों के भ्रमण हेतु खुल रहे हैं। वन विभाग द्वारा इसके लिए जहां व्यापक तैयारियां की जा रही हैं, वहीं पर्यटन व्यवसाय से जुड़े लोग भी पर्यटकों को जंगल की निराली दुनिया का दीदार कराने व उनकी आवभगत की तैयारियों में जुटे हुए हैं।पर्यटक गाइड मनोज दुबे बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला प्रवेश द्वार को जहां सजाया और संवारा जा रहा है, वहीं होटल व रिसॉर्ट संचालकों में भी पर्यटन सीजन शुरू होने को लेकर भारी उत्साह है। कोरोना संक्रमण के चलते पर्यटन व्यवसाय लंबे अरसे से ठप्प पड़ा था, जिसके अब पटरी पर आने की उम्मीद जताई जा रही है।
मालूम हो कि देश में कुल 52 टाइगर रिजर्व हैं, वर्ष 2019 में आई बाघों की गणना रिपोर्ट के मुताबिक भारत में 2967 बाघ हैं। सबसे अधिक 526 बाघ मध्यप्रदेश में पाए गए थे। जबकि दूसरा स्थान 524 बाघों के साथ कर्नाटक का है। प्रदेश का पन्ना टाइगर रिजर्व जो कोर व बफर क्षेत्र को मिलाकर 1598 वर्ग किलोमीटर में फैला हुआ है, वहां 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण करते हैं। यहां की खास पहचान विलुप्त प्राय दुर्लभ गिद्ध भी हैं, जिनकी 9 में से 7 प्रजातियां पन्ना टाइगर रिजर्व में पाई जाती हैं। अभी हाल ही में यहां दुर्लभ फिशिंग कैट भी पाई गई है, जो पर्यटकों के आकर्षण का केंद्र रहेगी।
पन्ना टाइगर रिजर्व की महिला गाइड मानसी शिवहरे बेहद खुश हैं। देशी व विदेशी पर्यटकों को टाइगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में भ्रमण कराने के रोमांचक सफर की शुरुआत होने को लेकर वे बेहद उत्साहित हैं। मानसी ने बताया कि उन्हें दो बार गाइड की ट्रेनिंग दी गई है। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने भी सभी महिला गाइडों को प्रशिक्षण दिया है। पूरे आत्मविश्वास के साथ वे बताती हैं कि उन्होंने वन्य प्राणियों के साथ-साथ पक्षियों व पेड़ पौधों के बारे में भी बहुत कुछ सीखा है। भ्रमण के दौरान वे पर्यटकों को बड़े ही रोचक ढंग से इन सब के बारे में बताएंगे। आपने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व में 5 महिला गाइड हैं। उनके अलावा साक्षी सिंह, पुष्पा सिंह गोंड, नीलम सिंह गोंड़ व आरती रैकवार हैं, जिन्होंने प्रशिक्षण प्राप्त किया है। हम पांचों महिला गाइड 1 अक्टूबर को पर्यटन गेट मंडला में पर्यटकों को भ्रमण में ले जाने से पहले उनका स्वागत करेंगी।
पन्ना को पर्यटन व रोजगार से जोड़ा जाएगा : मुख्यमंत्री
प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने गत 24 सितंबर को पन्ना दौरे में इस बात का ऐलान किया है कि पर्यटन विकास की विपुल संभावनाओं वाले जिले पन्ना को पर्यटन व रोजगार से जोड़ा जाएगा। उन्होंने कहा कि पन्ना टाइगर रिजर्व में रोजगार के अवसर कैसे बढ़े, इस दिशा में अभिनव पहल की जा रही है। आपने बताया कि पर्यटन को बढ़ावा देने के लिए पन्ना टाइगर रिजर्व के समीप 66 हेक्टेयर जमीन चिन्हित की गई है। यहां एडवेंचर गतिविधियों का विराट केंपस स्थापित किया जाएगा। उन्होंने कहा कि पन्ना में मंदिरों के गौरवशाली इतिहास को देखते हुए यहां "टेंपल वॉक" बनेगा ताकि जो पर्यटक खजुराहो आयें वे पन्ना भी आकर मंदिरों के दर्शन कर सकें। मुख्यमंत्री ने कहा कि पन्ना की पुरानी सकरिया हवाई पट्टी को फिर से शुरू किया जाएगा ताकि यहां पर विमान उतर सकें। इससे पर्यटन को बढ़ावा मिलने के साथ रोजगार के नए अवसर भी सृजित होंगे।
पन्ना के जंगलों में मौजूद है मानव सभ्यता का इतिहास
जरधोवा के जंगल में पहाड़ के शेल्टर में अंकित शैल चित्र। |
पन्ना टाइगर रिज़र्व का जंगल सिर्फ बाघों का ही घर नहीं है अपितु यहाँ पर मानव सभ्यता का इतिहास भी पहाड़ियों की विशालकाय चट्टानों व गुफाओं में अंकित है। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 18 किमी. दूर ग्राम जरधोवा के निकट पन्ना नेशनल पार्क के बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व ऊँचे पहाड़ों की चट्टानों पर प्राचीन भित्त चित्र हैं। हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों द्वारा पहाड़ों व गुफाओं में ये चित्र बनाये गये हैं, जो आज भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। पन्ना के जंगलों में दुर्गम पहाड़ों और गुफाओं में नजर आने वाली यह रॉक पेंटिंग कितनी प्राचीन है, इसका पता लगाने के लिए जानकारों व विषय विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए ताकि यहाँ के प्राचीन भित्त चित्रों का संरक्षण हो सके।
उल्लेखनीय है कि पन्ना नेशनल पार्क के घने जंगलों में दर्जनों की संख्या में ऐसी गुफायें मौजूद हैं जहाँ हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव निवास करते रहे हैं। उस समय चूंकि खेती शुरू नहीं हुई थी, इसलिए आदिमानव पूरी तरह से जंगल व वन्यजीवों पर ही आश्रित रहते थे। वन्यजीवों का शिकार करके वे अपनी भूख मिटाते थे। यहाँ की गुफाओं व पहाड़ों की शेल्टर वाली चट्टानों पर उस समय के आदिमानवों की जीवनचर्या का बहुत ही सजीव चित्रण किया गया है। भित्त चित्रों में वन्यजीवों के साथ-साथ शिकार करने के दृश्य भी दिखाये गये हैं। वन्य जीवों का शिकार करने के लिए आदिमानवों द्वारा तीर कमान का उपयोग किया गया है। चित्रों से यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता कि तीर की नोक लोहा की है या फिर नुकीले पत्थर अथवा हड्डी से उसे तैयार किया गया है। यदि तीर की नोक लोहा से निर्मित नहीं है तो भित्त चित्र पाषाण काल के हो सकते हैं। पन्ना नेशनल पार्क के अलावा भी जिले के अन्य वन क्षेत्रों में भी इस तरह के भित्त चित्र पाये गए हैं। अकोला बफर क्षेत्र में बराछ की पहाड़ी, बृहस्पति कुण्ड की गुफाओं व सारंग की पहाड़ी में भी कई स्थानों पर आदिमानवों द्वारा बनाई गई रॉक पेंटिंग मौजूद हैं।
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