Monday, September 27, 2021

धरती का कार्बन-चक्र और कार्बन सिंक्स

  • आज मनुष्यता उस सीमा रेखा पर आ खड़ी हुई है जहां उसे अपनी सारी भूलों को या तो सुधारना होगा या स्वयं के लिए जागतिक आत्मघात को गले लगाना होगा। चुनाव हमारा है और उससे जन्म लेने वाला भविष्य भी हमारा है।


धरती पर जीवन के लिए कार्बन एक अनिवार्य तत्व है। यह हमारे डीएनए में है, हमारे भोजन में हैं और उस हवा में है जिसमें हम सांस लेते हैं। इस धरती पर कार्बन की मात्रा कभी नहीं बदलती लेकिन इस तथ्य से अंतर पड़ता है कि वह कार्बन कहां है। कार्बन का अपना एक चक्र है जिसमें यह प्राणियों और वातावरण में घूमता रहता है। वह सब जो कार्बन छोड़ते हैं कार्बन के स्रोत कहलाते हैं - जैसे खनिज द का जलना और ज्वालामुखी का फटना। और वह सब जो छोडऩे से अधिक कार्बन को अपने में समाहित रखते हैं कार्बन सिंक कहलाते हैं।

ज्वालामुखी तो धरती पर लाखों वर्षों से समय-समय पर फ़टकर कार्बन छोड़ते आए हैं लेकिन धरती के कार्बन सिंक उसे रोककर कार्बन की मात्रा को संतुलन में रखते हैं। लेकिन अब हमारे क्रियाकलापों से कार्बन का यह चक्र भयावह रूप से असंतुलित हो चला है।

अब हम धरती पर सोखने की जगह अधिक से अधिक कार्बन अपने वातावरण में फेंकने लगे हैं। धरती के नैसर्गिक कार्बन सिंक इसे रोकने में असमर्थ होने लगे हैं। इस ग्रह पर तीन प्रमुख कार्बन सिंक हैं -  महासागर, धरती की मिट्टी और हमारे वन।

 महासागर

हमारे महासागर धरती के वातावरण में फेंकी जाने वाली कार्बन को सोखने में प्रमुख भूमिका निभाते हैं। वायुमंडल में प्रवेश करने वाली कार्बन का एक तिहाई भाग इन समंदरों द्वारा सोख लिया जाता है। यह महासागर सदा से कार्बन सिंक नहीं थे लेकिन आधुनिक सभ्यता द्वारा उत्पन्न हुए प्रदूषण के साथ-साथ यह कार्बन सिंक में परिवर्तित हो गए। 

सबसे पहले कार्बन सागर की सतह पर समाती है और फिर लहरों के उठने-गिरने के साथ यह उसकी गहराई में जाने लगती है और परिवर्तित होती चली जाती है।कार्बन को परिवर्तित करने में सागरों में पनपने वाली वनस्पति, फाईटो-प्लैंकटन की महत्वपूर्ण भूमिका होती है। यह समुद्री पौधे कार्बन को अपने में सोख लेते हैं और प्रकाश संश्लेषण की प्रक्रिया से इसे ऊर्जा और ऑक्सीजन में परिवर्तित कर देते हैं। इस प्रक्रिया में पैदा हुई ऊर्जा उन्हें जीवन देती है और उत्पन्न हुई ऑक्सीजन हमें जीवन देती है। पिछले कुछ दशकों में समुद्री तटों पर हुए निर्माण ने तटीय वनस्पति को भयानक नुकसान पहुंचाया है। समुद्रों में फेंका गया प्लास्टिक उनके फाइटो-प्लैंकटन को समाप्त कर रहा है। कार्बन को सोखने वाले यह नैसर्गिक जल भंडार प्लास्टिक के तैरते हुए पहाड़ों से पटे जा रहे हैं। कार्बन का नैसर्गिक चक्र तेजी से बिगड़ रहा है। समुद्री फाईटो-प्लैंकटन अति सूक्ष्म जीव हैं, इनका आकार इतना छोटा है कि एक बूंद पानी में लाखों समा जाएं, लेकिन यह लगातार अनगिनत टन ऑक्सीजन हमारे वायुमंडल में छोड़ते रहते हैं। इनके स्वास्थ्य पर ही समुद्र के अन्य प्राणियों का स्वास्थ्य टिका है और इन्हीं के स्वास्थ्य पर हमारा जीवन टिका है। लेकिन मनुष्य स्वयं इनका वजूद ही मिटाने पर टिका है। प्रत्येक मनुष्य प्रतिवर्ष लगभग 9.5 टन हवा का उपयोग करता है जो कार्बन डाइऑक्साइड में बदलकर निकलती है। यह फाइटो-प्लैंकटन प्रतिवर्ष कार्बन को सोख कर लगभग 330 अरब टन हवा पैदा करते हैं।

पिछले दो दशकों में जागतिक ऊष्मा में अभूतपूर्व वृद्धि हुई है और इसके साथ ही इन समुद्री प्लैंकटन की मात्रा भी पहले से 57 प्रतिशत बढ़ गई है। जिसके कारण हमारे महासागर पहले से कहीं अधिक कार्बन सोख रहे हैं। लेकिन हमारी प्रदूषण फैलाने की रफ्तार उनसे कहीं बहुत अधिक है। इसके साथ ही इतनी मात्रा में कार्बन सोखने के कारण सागरों का जल एसिड से भरने लगा है। यह बढ़ते हुए प्लैंकटन प्रकृति की चेतावनी है कि भविष्य में धरती पर बड़े परिवर्तन आने वाले हैं जो इसके जीवन के लिए अशुभ संकेत हैं। 

वर्षा - वन

इस धरती के सबसे बड़े कार्बन सिंक हैं हमारे वर्षा - वन। यह जितना कार्बन छोड़ते हैं उससे दोगुना अपने में सोख लेते हैं। प्रतिवर्ष इस धरती पर पैदा हुई 7.6 खरब मैट्रिक टन कार्बन डाइऑक्साइड इन वनों में समा जाती है। लेकिन ऐसा वह वन ही कर पाते हैं जिनमें लहलहाते वृक्ष खड़े हों या उग रहे हों। जिन वनों को काट दिया जाता है उनसे कार्बन डाइऑक्साइड निकलने लगती है, जैसा कि आज धरती के लगभग सारे वनों के साथ हो रहा है। अमेजन के वर्षावन जो कभी पृथ्वी के सबसे बड़े कार्बन सिंक हुआ करते थे आज भी कार्बन सोखते हैं लेकिन अब वह कार्बन फेंकने वाले वनों में परिवर्तित होने की दहलीज पर खड़े है। कॉगों के वर्षा-वन आज एक मात्र सबसे बड़े कार्बन सिंक हैं जो आज भी अपना कार्य कर रहे हैं। 

यदि हमने अपने वनों की रक्षा नहीं की और नए वृक्ष नहीं उगाए तो हम एक अंधकार मय भविष्य में प्रवेश कर जाएंगे।

धरती की मिट्टी

जहां हमारे वायुमंडल में 800 अरब टन और प्राणियों में 560 अरब टन कार्बन है, वहीं इस धरती की मिट्टी में 2500 अरब टन कार्बन समाई है। लेकिन कृषि के आधुनिक तरीकों और अंधाधुंद रासायनिक खादों के उपयोग से अब मिट्टी की परत कार्बन विहीन होती जा रही है और सारी कार्बन वातावरण में शामिल हो रही है।

आज मनुष्यता उस सीमा रेखा पर आ खड़ी हुई है जहां उसे अपनी सारी भूलों को या तो सुधारना होगा या स्वयं के लिए जागतिक आत्मघात को गले लगाना होगा। चुनाव हमारा है और उससे जन्म लेने वाला भविष्य भी हमारा है।

@अनिल सरस्वती (यैस ओशो पत्रिका से साभार)

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