- प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के इस अनूठे उपहार से वन्यजीव प्रेमी खुश हैं। अभ्यारण्य बनने से उत्तर सागर वन मंडल के तकरीबन 258 वर्ग किलोमीटर क्षेत्र में वन्य प्राणी स्वच्छंद रूप से विचरण कर सकेंगे। बाहरी इलाकों में भटक रहे पन्ना के बाघों को भी यहां ठिकाना मिल सकेगा।
जंगल में हरी-भरी झाडय़िों व वृक्षों के बीच विचरण करता एक सांभर। ( फोटो - अरुण सिंह ) |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। बुंदेलखंड अंचल के सागर जिले की पहचान यहां स्थित केंद्रीय विश्वविद्यालय व विशालकाय तालाब से है। लेकिन अब यह "डॉ. भीमराव अंबेडकर वाइल्ड लाइफ सेंचुरी" के लिए भी जाना जाएगा। मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान की अध्यक्षता में पिछले दिनों हुई राज्य वन्य प्राणी बोर्ड की बैठक में इस आशय के प्रस्ताव को सैद्धांतिक स्वीकृति दी गई है। वन्य जीव संरक्षण के प्रयासों को विस्तार देने तथा बाघ प्रदेश के सम्मान को बरकरार रखने के लिए वन विभाग ने यह अभिनव पहल की है। इस नये अभ्यारण्य के लिए उत्तर सागर वन मंडल का 25 हजार 864 हेक्टेयर (258.64 वर्ग किमी.) क्षेत्र चुना गया है।
उल्लेखनीय है कि डॉ. भीमराव अंबेडकर वन्यजीव अभ्यारण्य के लिए उत्तर सागर वन मंडल के जिस वन क्षेत्र को शामिल किया गया है, उसे धसान सहित कई नदियां कवर करती हैं। पानी की उपलब्धता व समृद्ध जंगल होने से यहां शाकाहारी व मांसाहारी वन्यजीव बड़ी संख्या में मौजूद हैं। जंगल का राजकुमार कहे जाने वाले तेंदुओं का यह जंगल जहां प्रिय रहवास है, वहीं बाघों का भी मूवमेंट होता है। पन्ना टाइगर रिजर्व के बाघ इस वन क्षेत्र में पहुंचते रहे हैं, जिसके प्रमाण भी मौजूद हैं। वर्ष 2012 में पन्ना टाइगर रिजर्व का नर बाघ पी-211 स्वच्छंद रूप से विचरण करते हुए सागर वन मंडल पहुंचा था। जिससे पता चलता है कि पन्ना और सागर के बीच जीवंत कॉरिडोर (गलियारा) है, जिसका उपयोग बाघ करते हैं। पन्ना के इस नर बाघ को पीटीआर की रेस्क्यू टीम ने 10 फरवरी 2013 को ट्रेंक्युलाइज (बेहोश) कर सुरक्षा की दृष्टि से उसे सतपुड़ा ले जा कर छोड़ा था।
प्रदेश के वन मंत्री डॉ. कुंवर विजय शाह के मुताबिक प्रस्तावित अभयारण्य के 5 किलोमीटर की परिधि में 88 ग्राम हैं, जिनकी निस्तार व्यवस्था वनों पर आश्रित है। अभयारण्य क्षेत्र में 98.202 घन मीटर इमारती एवं 236 घन मीटर जलाऊ काष्ठ की अनुमानित राशि वार्षिक क्रमश: 42 लाख एवं 4.96 लाख रुपए प्रभावित होना आंकी गई है। अभ्यारण्य के लिए 42 अधिकारी-कर्मचारियों की तैनाती होगी। इनमें एक उप वन मंडल अधिकारी के अलावा वन क्षेत्रपाल, वनपाल और वनरक्षक के 41 पद प्रस्तावित किए गए हैं। अमले पर वार्षिक अनुमानित व्यय एक करोड़ 48 लाख रुपए आएगा।
सेंचुरी बनने से वन्य जीवों का बढ़ेगा घनत्व
उत्तर सागर वन मंडल का 25 हजार हेक्टेयर से भी अधिक वन क्षेत्र के सेंचुरी घोषित होने से यहां क्या फर्क आएगा ? इस सवाल के जवाब में पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने गांव कनेक्शन को बताया कि आम जनता की सोच में बदलाव आयेगा। सेंचुरी बनने से लोगों को विश्वास हो जाता है कि यह वाइल्डलाइफ का क्षेत्र है। इससे जंगल की तो सुरक्षा होती ही है साथ ही वन्यजीवों का घनत्व भी बढ़ता है। जिससे मांसाहारी वन्यजीव बाघ व तेंदुआ भी यहां रहकर सरवाइब कर सकते हैं।
क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि पन्ना सहित मध्य प्रदेश के अधिकांश टाइगर रिजर्व में बाघों की संख्या क्षेत्रफल के हिसाब से भर चुकी है। इस तरह से अब नये बाघ जो पैदा हो रहे हैं, वे लैंडस्केप में डिस्पर्स होने के लिए मजबूर हैं। इन परिस्थितियों में सेंचुरी बनने से बाहर भटक रहे बाघों को यहां स्थाई ठिकाना मिल जाएगा। जिससे बाघों की संख्या में अभूतपूर्व वृद्धि होने की संभावना रहेगी।
पन्ना से जुड़े कॉरिडोर का उपयोग करते हैं बाघ
पन्ना की बाघिन जिसने चित्रकूट के जंगल को अपना आशियाना बनाकर यहां के जंगल को आबाद किया। |
पन्ना टाइगर रिजर्व से जुड़े चार मुख्य कॉरिडोर हैं, जिनका उपयोग आवाजाही के लिए बाघ करते रहे हैं। पन्ना से जुड़े आसपास के जंगलों में बाघों के प्राकृतिक रहवास व कॉरिडोर (गलियारा) के आकलन हेतु वर्ष 2015 में विश्व प्रकृति निधि (डब्ल्यू डब्ल्यू एफ़) ने अध्ययन कर रिपोर्ट तैयार की थी। इस रिपोर्ट "कनेक्टिंग हैबिटेट कॉरिडोर्स फॉर टाइगर्स इन पन्ना लैंडस्केप" से भी पता चलता है कि पन्ना के बाघों के लिए सागर वन मंडल का जंगल कितना महत्वपूर्ण है।
अध्ययन रिपोर्ट के मुताबिक पन्ना टाइगर रिजर्व से जुड़ा दक्षिण-पश्चिम कॉरिडोर पांच जिलों पन्ना, छतरपुर, दमोह, सागर व कटनी के जंगल को जोड़ता है। वर्ष 2009 और 2014 के बीच इस प्राकृतिक गलियारे (कॉरिडोर) का उपयोग चार बाघों द्वारा किया गया, जिसमें नर बाघ पी-211 भी शामिल है। इस बाघ को फरवरी 2013 में सागर के जंगल में ट्रेंक्युलाइज कर सतपुड़ा टाइगर रिजर्व में छोड़ा गया था। पन्ना का कॉरिडोर सागर तक है, यदि घोषित वाइल्ड लाइफ सेंचुरी मूर्तरूप लेती है तो यह नौरादेही व सागर वन्यजीव अभयारण्य से जुड़ जाएगा।
सशक्त जीन पूल के लिए जीवंत गलियारा जरूरी
राज्य वन्य प्राणी बोर्ड के पूर्व सदस्य हनुमंत सिंह ने गांव कनेक्शन को बताया कि बाघों के सशक्त जीन पूल के लिए जीवित कॉरिडोर बहुत अहमियत रखता है। कॉरीडोर रहने से जीन पूलों की अदला-बदली होती है, जिससे इनब्रीडिंग (अंत: प्रजनन) की संभावना कम रहती है। आपने कहा कि इनब्रीडिंग किसी भी प्रजाति की सेहत व सर्वाइबल के लिए ठीक नहीं मानी जाती। हनुमंत सिंह बताते हैं कि पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना के समय इसी बात को दृष्टिगत रखते हुए अलग-अलग क्षेत्रों से बाघ व बाघिनों को लाया गया था ताकि जीन पूल सशक्त रहे।
उन्होंने कहा कि मध्यप्रदेश के सतना वन मंडल में स्थित चित्रकूट के जंगल को भी वाइल्ड लाइफ सेंचुरी बनाना जरूरी है। आपने बताया कि पन्ना और चित्रकूट के बीच का गलियारा बाघ हमेशा से उपयोग करते रहे हैं। वर्ष 2015 में पन्ना टाइगर रिजर्व की बाघिन पी-213(22) इस गलियारे में विचरण करते हुए चित्रकूट पहुंची थी। इस बाघिन ने चित्रकूट के जंगल को ही अपना ठिकाना बनाया। बाघिन के वहां बसने पर पन्ना टाइगर रिजर्व का एक नर बाघ भी चित्रकूट जा पहुंचा, फल स्वरुप यहां का जंगल बाघों से आबाद होने लगा। मौजूदा समय चित्रकूट के जंगल में 10 से 12 बाघ और बाघिन विचरण कर रहे हैं। इसके पूर्व यह वन क्षेत्र बाघ विहीन रहा है।
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