Sunday, December 26, 2021

पन्ना के जंगल में चार अनाथ बाघ शावकों ने कैसे जीती जिंदगी की जंग ?

  • महज 7 माह की उम्र में बाघिन मां की मौत होने पर अनाथ हुए चार शावकों का खुले जंगल में चुनौतियों और खतरों के बीच जीवित बच पाना किसी चमत्कार से कम नहीं है। यह चमत्कार मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व में घटित हुआ है। अनाथ शावक अब 15 माह के हो चुके हैं और शिकार के साथ अपनी सुरक्षा करने में भी सक्षम हो गए हैं।

चार अनाथ शावक जिन्होंने बिना मां के जंगल में खतरों के बीच रहना सीखा। 

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना (मध्यप्रदेश)। जंगल की निराली दुनिया में घटित होने वाली कुछ घटनाएं अचंभित करने वाली होती हैं, जो सहज ही लोगों का ध्यान अपनी ओर आकृष्ट कर लेती हैं। ऐसी ही एक घटना 6 वर्ष की बाघिन पी-213 (32) की हुई आकस्मिक मौत व उसके चार अनाथ हो चुके शावकों से संबंधित है, जिसने प्रकृति प्रेमियों और वन्यजीव विशेषज्ञों को भी हैरत में डाल दिया है। पन्ना टाइगर रिजर्व के इन चार अनाथ शावकों की कहानी रोचक तो है ही रहस्य और रोमांच से भी परिपूर्ण है। पन्ना टाइगर रिजर्व के क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा बताते हैं कि 15 मई 2021 को 6 वर्ष की बाघिन पी- 213(32) की अज्ञात बीमारी के चलते मौत हो गई थी। इस बाघिन के चार नन्हें शावक जो उस समय तकरीबन 7 माह के थे, मां की अचानक इस तरह मौत होने से अनाथ और बेसहारा हो गए थे। मां बाघिन के बगैर जंगल में खतरों के बीच ये नन्हें शावक कैसे बच पाएंगे इस बात को लेकर वन्यजीव प्रेमियों से लेकर वन अधिकारी सभी चिंतित थे। उस समय अनेकों लोगों ने यह सुझाव दिया कि शावकों को बचाने के लिए उन्हें किसी चिडय़िाघर में रखा जाए ताकि उनके जीवन की रक्षा हो सके। यह सोच विचार चल ही रहा था कि अचानक बेहद अविश्वसनीय नजारा पीटीआर के जंगल में देखने को मिला। शावकों का पिता नर बाघ पी-243 वहां न सिर्फ देखा गया बल्कि उसका व्यवहार भी शावकों के प्रति सौहार्दपूर्ण था। नर बाघ का ऐसा बर्ताव देखकर पार्क प्रबंधन ने चारों शावकों को जंगल में ही प्राकृतिक माहौल में रखने का निर्णय लिया। 

चारों अनाथ शावक अब 15 माह के हो चुके हैं और खुले जंगल में चुनौती और खतरों के बीच न सिर्फ जीना सीख लिया है अपितु शिकार करने के कौशल में भी पारंगत हो गए हैं। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि 15 माह के हो चुके इन शावकों का आकार वयस्क बाघों की तरह हो गया है। शावकों में तीन नर व एक मादा है, जिनका औसत वजन 120 किलोग्राम के आसपास है। इनमें एक नर शावक आकार में सबसे बड़ा व बलिष्ठ दिखता है, जबकि मादा शावक नर शावकों की तुलना में छोटी है। श्री शर्मा बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व की शान व पहचान बन चुके इन चारों अनाथ शावकों का नामकरण पी 213-32 (21), (22), (23) और (24) के रूप में किया गया है। इनमें पी 213-32(24) मादा शावक है।

खतरों से भरा था अनाथ शावकों का यह सफर


15 माह के ये शावक अब बन चुके हैं खतरों के खिलाड़ी, करने लगे हैं शिकार।   

बाघिन मां के बिना नन्हे शावकों का जंगल में जीवित रहना कोई आसान काम नहीं है। लेकिन प्रकृति की पाठशाला में वन्यजीवों को जो अनुभव और सबक सीखने को मिलते हैं वह सीमित दायरे (चिडय़िाघर) में कैदियों की तरह रहकर संभव नहीं है। पन्ना टाइगर रिजर्व के एक वन कर्मी ने नाम न छापने की शर्त पर बताया कि बाघ शावक अत्यधिक अनुशासित होते हैं। बाघिन ने मौत से पहले अपने शावकों को जिस मांद में रखा था और उनकी घूमने फिरने व चहल कदमी के लिए जितना एरिया निर्धारित किया था, शावकों ने उसका उल्लंघन नहीं किया। तकरीबन 10 माह की उम्र तक चारों शावक एक वर्ग किलोमीटर के छोटे से क्षेत्र में रहते थे, जिसे "क्यूब टेरिटरी" नाम दिया गया था। लेकिन अब उनका आत्मविश्वास बढ़ गया है और चारों सब एडल्ट शावक अब ज्यादा समय "क्यूब टेरिटरी" के बाहर बिता रहे हैं। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा बताते हैं कि चारों अभी एक साथ 5-6 महीने और रहेंगे इसके बाद अलग-अलग क्षेत्रों में अपने लिए इलाके की खोज हेतु निकलेंगे। श्री शर्मा बताते हैं कि शावक इतने बड़े और सक्षम हो चुके हैं कि वे तेंदुआ और भालू जैसे हमलावरों से अपनी सुरक्षा कर सकते हैं। लेकिन पन्ना टाइगर रिजर्व में विचरण करने वाले दूसरे बाघों से अभी भी खतरा बना हुआ है। चारों शावक शिकार करने लगे हैं तथा चीतल, जंगली सुअर, सांभर, नीलगाय के बछड़ों तथा छोटे आकार के मवेशियों को मारने में सक्षम हैं। जंगल में जीवित रहने के लिए शिकार करने का यह कौशल उन्होंने बिना मां के जिस तरह शीघ्रता से सीखा है वह आश्चर्यजनक है।

नर बाघ पी-243 ने निभाई महत्वपूर्ण भूमिका


निर्भय होकर करने लगे खुले जंगल में स्वच्छंद विचरण। 

शावकों के पिता नर बाघ पी-243 ने बाघिन मां की मौत होने के बाद शुरुआती दिनों में शावकों की सुरक्षा व उनकी परवरिश करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। इस नर बाघ ने शावकों की छोटी सी टेरिटरी को न सिर्फ सुरक्षित रखा अपितु दूसरे बाघों के यहां प्रवेश के प्रति भी सतर्क रहा। जाहिर तौर पर इसका फायदा शावकों को मिला और वे तेंदुआ व भालू आदि के खतरे से बचे रहे। क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा ने बताया कि नर बाघ पी-243 की गतिविधियों की निगरानी सेट लाइट कॉलर द्वारा की जाती है। जिससे यह देखा गया कि बाघ पी-243 सितंबर के महीने से "क्यूब टेरिटरी" में आना जाना कम कर दिया है लेकिन पूरी तरह से बंद नहीं किया। मौजूदा समय नर बाघ पी-243 पन्ना टाइगर रिजर्व की दो बाघिनों पी-142 व पी-652 के साथ दिखाई देता है। बाघिनों का साथ पाने के लिए नर बाघ पी-243 को दूसरे प्रतिद्वंदी बाघों पी-431, पी-241, पी-621 तथा पी-271 से संघर्ष भी करना पड़ा। लेकिन ऐसा लगता है कि पी-243 काफी मजबूत और बलशाली है तथा लड़ाई जीत रहा है।

आपसी संघर्ष में लड़ाई जीतकर नर बाघ पी-243 ने एक नए इलाके में कब्जा कर लिया है। जाहिर है कि अब उसका आना-जाना शावकों के क्षेत्र में कम हो गया है। क्षेत्र संचालक श्री शर्मा के मुताबिक शावकों के क्षेत्र में अन्य नर बाघों को जाते व इलाके को पार करते हुए भी देखा गया है। शावकों के क्षेत्र में नर बाघ पी-431 व पी-241 की गतिविधि दर्ज की गई है। लेकिन इन नर बाघों का शावकों के साथ किसी भी तरह का संघर्ष हुआ लड़ाई रिपोर्ट नहीं हुई। चारों शावक स्वस्थ और सुरक्षित हैं तथा जंगल में बहादुरी के साथ प्राकृतिक जीवन जी रहे हैं। लेकिन प्रकृति का मूल नियम "सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट" है। यहां केवल फिट और मजबूत ही जीवित रह सकता है, अयोग्य व कमजोर नष्ट हो जाते हैं। इन चारों शावकों के साथ भी प्रकृति का यही नियम लागू होगा और जीवित रहने के लिए आगे उन्हें अपना रास्ता खुद बनाना होगा।

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