- रासायनिक खेती के दुष्परिणामों को देखते हुए बड़ी संख्या में किसान अब जैविक खेती को अपनाने की दिशा में अग्रसर हो रहे हैं। प्रदेश सरकार भी जैविक खेती को बढ़ावा दे रही है। पन्ना जिले के कई किसान जैविक तरीके से सब्जियां उगाकर खुशहाल जीवन जी रहे हैं। जिले का विल्हा गाँव तो जैविक गांव बनने की तैयारी में है।
गोबर और जैविक कचरे से वर्मी कम्पोष्ट तैयार करने की विधि सीखतीं गांव की महिलाएं। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना जिले का विल्हा गाँव जैविक खेती को अपनाने की दिशा में अग्रसर है। कई दशकों से खेती करने वाले किसान सुदामा पटेल कहते हैं कि इतने सालों में मैंने यह सबक लिया है कि रासायनिक खादों और कीटनाशकों का अधाधुंध उपयोग कर न सिर्फ हम खेतों को ऊसर बना रहे हैं अपितु अपनी सेहत व पर्यावरण से भी खिलवाड़ कर रहे हैं। रासायनिक खेती घाटे की खेती है क्यों कि इसमें लागत ज्यादा और फायदा कम है। वे आगे कहते हैं कि मैंने अब यह संकल्प किया है कि जैविक ढंग से खेती करूँगा और फसलों में रासायनिक खाद नहीं डालूंगा।
सुदामा पटेल बताते हैं कि उन्होंने निजी भूमि के अलावा बटाई पर खेत लेकर वर्षों खेती की है। अटूट मेहनत के बावजूद खर्चा काटने के बाद दो-ढाई लाख से ज्यादा आय नहीं होती। यदि मौसम ने साथ नहीं दिया अथवा कोई आपदा आ गई तो इतना भी नहीं बच पाता। लेकिन जैविक ढंग से यदि खेती की जाय तो मिट्टी की उपजाऊ शक्ति जहाँ बढती है, वहीँ लागत बहुत ही कम आती है। इसलिए अब बटाई पर खेत लेकर रासायनिक खेती करना छोड़ अपनी 20-22 एकड़ जमीन में जैविक तरीके से खेती करना शुरू किया है। इसमें सालाना कम से कम 8-10 लाख रुपये की आय हो रही है। श्री पटेल कहते हैं कि कम क्षेत्र में खेती करके ज्यादा मुनाफा कमा लेंगे लेकिन रासायनिक खेती अब नहीं करेंगे।
ग्राम पंचायत रक्सेहा के ग्राम विल्हा में किसानों को जैविक खेती अपनाने के लिए प्रेरित करने में सक्रिय भूमिका निभा रहे स्वयं सेवी संस्था समर्थन के रीजनल क्वार्डिनेटर ज्ञानेंद्र तिवारी ने बताया कि गांव में 159 परिवार खेती के कार्य में लगे हैं। ग्राम पंचायत ने निर्णय लिया है कि ग्राम पंचायत को जैविक ग्राम पंचायत के रूप में विकसित करना है। इस दिशा में जिले की स्वयंसेवी संस्था समर्थन फोर्ड फाउन्डेसन एवं कृषि,उद्यानिकी व कृविके के सहयोग से जैविक ग्राम बनाने में सामुदायिक पहल कर रही है। शुक्रवार को साल के आखिरी दिन लगभग 42 किसानों के वर्मी कम्पोस्ट के वेड तैयार कर दिये गये एवं केचुआ डालने की प्रक्रिया कृषि विश्वविद्यालय के वैज्ञानिक रितेश बगोरा के निदेशन में पूरा किया गया। पूरे गांव के किसान महिला एवं पुरूष जैविक खेती के लिये तैयार हैं। रूकमन बाई एवं सुदामा पटेल जैसे किसानों ने कहा कि हम रासायनिक खाद से खेती कर चुके हैं अब हम जैविक खेती ही करेंगे। जैविक खेती से कम क्षेत्र में भी खेती करके ज्यादा मुनाफा कमाया जा सकता है।
गांव में जैविक उत्सव जैसा महौल
ग्राम पंचायत के सचिव एवं रोजगार सहायक नारायण ने कहा कि आज ग्राम विल्हा में जैविक उत्सव जैसा महौल है। वास्तव में यह बदलाव की बयार समर्थन और ग्राम पंचायत के साथ विभागीय समन्वय का परिणाम है। गांव के सभी किसान खुश हैं कि हमारी मिटटी स्वस्थ्य रहेगी, ऊसर नहीं बनेगी। इस कार्यक्रम में उपसंचालक कृषि एपी सुमन, कृविके के वैज्ञानिक पीएन त्रिपाठी एवं उद्यान विकास अधिकारी संजीत बागरी तथा पंचायत एवं ग्रामीण विकास मनरेगा परियोजना अधिकारी संजय सिंह परिहार का किसानों के अधोसंरचना विकास में महत्वपूर्ण भूमिका है। समर्थन संस्था के क्षेत्रीय समन्वयक ने कहा कि जैविक कृषि की ओर किसान आगे आ रहे हैं। विभागीय एवं पंचायत समन्वय के साथ ग्राम के लोगों की भागीदारी से सब कुछ संभव है।
गांव में 113 किसानों के घरों में पोषण वाटिका
मवेशियों से प्राप्त होने वाले गोबर और जैविक कचरे से गांव के किसान वर्मीकम्पोस्ट तैयार कर रहे हैं जिसका उपयोग वे फसलों की अधिक पैदावार के लिए करेंगे। ज्ञानेंद्र तिवारी बताते हैं कि गांव में 113 किसानों के घरों में पोषण वाटिका स्थापित है, जहाँ बैगन, मिर्ची, टमाटर, पालक, मूली एवं धनिया तथा कुछ घरों में लहसुन, प्याज भी लगाया गया है। अभी तक ग्राम बिल्हा में लोग गोबर की खाद के साथ रसायनिक खाद व दवाओ का भी उपयोग करते रहे हैं लेकिन अब वे जैविक तरीके से सब्जी उगाने के लिए प्रेरित हो रहे हैं। उद्यान विभाग से कृषि यंत्र हेतु 52 किसानों का पंजियन करवाया गया है तथा 42 किसानों के यहाँ वर्मी खाद तैयार कराने हेतु वैड लगा कर किसानों को केचुआ खाद बनाने हेतु प्रेरित किया जा रहा है। किसानों के द्वारा रसायनिक खाद एवं दवाई का प्रयोग कम कर जैविक खेती को बढ़ावा देने हेतु प्रयास किया जा रहा है।
गांव की महिला के नवाचार का वीडियो -
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