Friday, March 18, 2022

तो क्या केन-बेतवा परियोजना में डूबने से बच सकता है बाघों का घर ?

  •  प्रस्तावित बांध स्थल को पन्ना से पवई शिफ्ट करने की मांग 
  •  विधान सभा में बजट पर चर्चा के दौरान उठा यह मामला 

पन्ना टाइगर रिज़र्व के मध्य से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी जिसमें बांध बनना है।  

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व से होकर प्रवाहित होने वाली केन नदी के नैसर्गिक प्रवाह को रोककर पर्यटन पर आधारित एक मात्र आजीविका की धरोहर पन्ना टाईगर रिजर्व के बड़े हिस्से को डुबाने वाली केन-बेतवा लिंक परियोजना को लेकर नई चर्चा शुरू हुई है। सत्तारूढ़ और विपक्षी विधायकों ने राज्य विधानसभा में बजट पर चर्चा के दौरान केन-बेतवा परियोजना स्थल को पन्ना से पवई स्थानांतरित करने की मांग की है। 

भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन व कांग्रेस विधायक लक्ष्मण सिंह का कहना है कि  "अगर केन-बेतवा परियोजना को बुंदेलखंड के पवई में स्थानांतरित किया जाता है, तो दो लाभ होंगे। पन्ना टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र जो बाघों का घर है वह डूबने से बच जायेगा साथ ही पन्ना सहित मध्य प्रदेश को सिंचाई के लिए ज्यादा पानी मिलेगा। भाजपा विधायक शैलेंद्र जैन ने लक्ष्मण सिंह का समर्थन करते हुए कहा कि अगर सिंह इस मुद्दे को उठाते हैं, तो वह इसका समर्थन करेंगे क्योंकि यह मध्य प्रदेश के लिए अच्छा है।

उल्लेखनीय है कि केन-बेतवा लिंक परियोजना के चलते पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के प्रमुख आवास का 10 फीसदी से ज्यादा हिस्सा पानी में डूब सकता है। यदि इस क्षेत्र के कुल क्षेत्रफल की बात की जाए तो वो करीब 58.03 वर्ग किलोमीटर के बराबर बैठता है। वहीं अप्रत्यक्ष रूप से इस परियोजना के चलते बाघों के प्रमुख आवास का करीब 105.23 वर्ग किलोमीटर का हिस्सा खतरे में है। पन्ना जिले के लोगों को चिंता इसी बात की है कि बाघों से आबाद हो चुके पन्ना टाइगर रिज़र्व से अब पर्यटन विकास के द्वार खुले हैं जिससे लोगों को रोजी रोजगार मिलने लगा है, ऐसी स्थिति में इसे फिर से उजाड़ना पन्ना जिले के साथ नाइंसाफी होगी। बांध स्थल को शिफ्ट किये जाने की सोच से पन्नावासी उत्साहित हैं क्योंकि ऐसा हुआ तो बांध भी बन जायेगा और राष्ट्रीय पशु बाघ का घर भी आबाद रहेगा।    

केंद्रीय बजट में 1,400 करोड़ रुपये आवंटित

केंद्र सरकार ने केन-बेतवा लिंकिंग परियोजना के कार्यान्वयन के लिए हालिया केंद्रीय बजट में 1,400 करोड़ रुपये आवंटित किए हैं। परियोजना के तहत केन नदी का पानी बेतवा नदी में स्थानांतरित किया जाएगा, दोनों यमुना नदी की सहायक नदियां हैं। यह परियोजना बुंदेलखंड को कवर करेगी, जो सूखा प्रभावित क्षेत्र है, जो उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के 13 जिलों में फैला है। जल शक्ति मंत्रालय के अनुसार, इस परियोजना से 10.62 लाख हेक्टेयर की वार्षिक सिंचाई, लगभग 62 लाख लोगों को पीने के पानी की आपूर्ति और 103 मेगावाट जल विद्युत और 27 मेगावाट सौर ऊर्जा उत्पन्न होने की उम्मीद है।


इसमें कोई शक नहीं कि इस परियोजना की मदद से बुंदेलखंड क्षेत्र में रह रहे लोगों को सूखे से बड़ी राहत मिलेगी। लेकिन दूसरी तरफ अनुमान है कि इस परियोजना के चलते मध्य प्रदेश में पन्ना टाइगर रिजर्व का एक बढ़ा हिस्सा पानी में डूब जाएगा, जोकि वहां बाघों का प्रमुख आवास (क्रिटिकल टाइगर हैबिटेट) भी है। इतना ही नहीं शोधकर्ताओं का अनुमान है कि इस परियोजना के चलते इस रिजर्व के काफी क्षेत्र में मौजूद जैव विविधता पर भी व्यापक असर पड़ेगा। गौरतलब है कि पन्ना टाइगर रिजर्व देश भर में बाघों के संरक्षण की सबसे सफल परियोजनाओं में से एक है। इसकी सफलता का अंदाजा आप इसी बात से लगा सकते हैं कि वर्ष 2009 में पन्ना टाइगर रिजर्व में एक भी बाघ नहीं था, लेकिन अब यह वन क्षेत्र बाघों से न सिर्फ आबाद हो चुका है अपितु मौजूदा समय पन्ना लैंड स्केप में 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। 

सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी की रिपोर्ट के मुख्य बिन्दु

  • केन-बेतवा लिंक परियोजना के अन्तर्गत डूब में आने वाला पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र का जंगल पारिस्थितिकी तंत्र और संरचना की दृष्टि से अनूठा है। जैव विविधता के मामले में भी यह क्षेत्र अत्यधिक समृद्ध है। इस तरह के पारिस्थितिकी तंत्र को पुन: विकसित नहीं किया जा सकता।
  • सीईसी ने अपनी रिपोर्ट में कहा है कि परियोजना के लिये 6017 हेक्टेयर वन भूमि जो अधिगृहित की जा रही है, वह पन्ना टाईगर रिजर्व का न सिर्फ कोर क्षेत्र है अपितु बाघों का प्रिय रहवास भी है। इस वन क्षेत्र के डूब में आने से 10,500 हेक्टेयर वन क्षेत्र और प्रभावित होगा। यह वन क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व से पृथक होकर दो टुकड़ों में बँट जायेगा, जिससे वन्य प्राणियों का आवागमन बाधित होगा।
  • परियोजना पर जितना पैसा खर्च होगा उससे प्रति हेक्टेयर सिंचाई  में 44.983 लाख रू. व्यय आयेगा। यदि स्थानीय स्तर पर गाँव के पानी को गाँव में ही रोकने के लिये छोटी परियोजनाओं व जल संरचनाओं पर ध्यान दिया जाये तो कम खर्च में न सिर्फ कृषि भूमि सिंचित हो सकती है अपितु जंगल, बाघ व वन्य प्राणियों के रहवास को भी बचाया जा सकता है।
  • सीईसी ने नेशनल बोर्ड ऑफ वाइल्ड लाइफ द्वारा केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट के लिये सहमति प्रदान करने के निर्णय पर प्रश्र चिह्न लगाते हुये कहा है कि वन्य प्राणियों के रहवास, अनूठे पारिस्थितिकी तंत्र व जैव विविधता को अनदेखा किया गया है। डूब क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व का कोर एरिया है, इस बात का भी ध्यान नहीं रखा गया।
  • सेन्ट्रल इम्पावर्ड कमेटी ने रिपोर्ट में  द्रढता के साथ यह बात कही है कि किसी भी विकास परियोजना को देश  में बचे इस तरह के नाजुक पारिस्थितिकी तंत्र और बाघों के अति महत्वपूर्ण रहवासों को नष्ट करने की इजाजत नहीं दी जानी चाहिये। बेहतर यह होगा कि इस तरह की परियोजनाओं को संरक्षित वन क्षेत्रों से प्रथक रखा जाय। संरक्षित वन क्षेत्रों में इस तरह की विकास परियोजनायें न तो वन्य प्राणियों के हित में हैं और न ही लम्बे समय तक समाज के हित में है।

लिंक परियोजना से जुड़े कुछ तथ्य

  • बुन्देलखण्ड क्षेत्र की जीवनदायिनी केन नदी की कुल लम्बाई 427 किमी है।
  • जहां बांध बन रहा है वहां से केन नदी की डाउन स्ट्रीम की लम्बाई 270 किमी है।
  • बांध की कुल लम्बाई 2031 मीटर जिसमें कांक्रीट डेम का हिस्सा 798 मीटर व मिट्टी के बांध की लम्बाई 1233 मीटर है। बांध की ऊँचाई 77 मीटर है।
  • ढोढऩ बांध से बेतवा नदी में पानी ले जाने वाली लिंक कैनाल की लम्बाई 220.624 किमी होगी।
  • बांध का डूब क्षेत्र 9 हजार हेक्टेयर है, जिसका 90 फीसदी से भी अधिक क्षेत्र पन्ना टाईगर रिजर्व के कोर क्षेत्र में निहित है।
  • 105 वर्ग किमी. का कोर क्षेत्र जो छतरपुर जिले में है, डूब क्षेत्र के कारण विभाजित हो जायेगा। इस प्रकार कुल 197 वर्ग किमी से अधिक क्षेत्र डूब व विभाजन के कारण नष्ट हो जायेगा।

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