Tuesday, March 22, 2022

अब जल संकट का निदान बेचारे वरुण देव भी नहीं कर सकते ?

  • विश्व जल दिवस पर जल देवता के दुश्मनों को जानें  

 


 ।। बाबूलाल दाहिया ।।  

आज विश्व जल दिवस है। जल को हमारी संस्कृति में देवता का दर्जा मिला हुआ है। हमारी धार्मिक मान्यताओं में बकायदे एक जल मंत्रालय है, जिसके देवता वरुण हैं। यही कारण है कि प्राचीन समय में जब अचानक बर्षा रुक जाती तो लोगो को वरुण देवता याद आ जाते थे और उनको प्रसन्न करने के पूजा अनुष्ठान होने लगते थे। पर आज का जल संकट अलग तरह का है। क्योंकि वह इस मानव रूपी दानव का ही दिया हुआ है। अस्तु इस संकट का निदान बेचारे वरुण देव भी नहीं कर सकते।

इस साल अपेक्षाकृत अधिक बारिश हुई है अस्तु हम अगहन पूस तक ग्लैड थे कि "चलो इस साल जल संकट नही आयेगा"। पर फागुन आते ही सारी खुसी रफू हो गई। जब लोग साईकल में डिब्बा बांधे इधर उधर जाते दिखने लगे। इसलिए हमें समय रहते अपने गाँव के जल देवता के दुश्मनों की तलाश करना आवश्यक प्रतीत होने लगा और हम कुछ दुश्मनों को चिन्हित करने में जुट भी गए।

दुश्मन न .1 -  कंक्रीट भवन व सड़क

जब तक गाँव में कच्चे मकान हुआ करते थे तो मिट्टी लेने के लिए घर के समीप ही गढ़इन खोदनी पड़ती थी। उसमें वर्षा का पानी अपने आप एकत्र होकर धरती को पानी दार बनाता था । पर अब पक्की सड़क कंक्रीट के भवन गाँव के पानी को सीघ्र ही नाली से नाला और नाला से नदी में पहुचा देते हैं एवं धरती अच्छी वर्षा के बाबजूद भी प्यासी की प्यासी ही रही आती है।

दुश्मन न . 2 - सोयाबीन महराज

पहले गाँव में बड़े- बड़े बांध होते थे, जिनमें असाढ़ से क्वार तक पानी भरा रहता था और वह गाँव के जल स्तर को बढ़ाता था। पर अब उन सोयाबीन जी को बोने के लिए लोग असाढ़ में ही बांध को फोड देते हैं।

दुश्मन न .- 3 तलाब फोड़ कर खेती

पहले तलाब बनवाना एक पुन्न का कार्य माना जाता था। तालाब कोई बनवाये पर उसका उद्देश्य सार्वजनिक हित ही होता था। उससे गाँव का जल स्तर भी बढ़ता था। पर अब लोग तालाब फोड़ कर भी खेती करने लगे हैं। कहीं-कहीं पोखर तालाबों को भाठ कर  मकान भी बना लिए गये हैं। इसलिए जल स्तर उत्तरोत्तर घट रहा है।

दुश्मन न. - 4  बैज्ञानिक खेती 

पुरानी वर्षा आधारित खेती में जो अनाज उगाये जाते थे वे यहां की जलवायु में हजारो वर्षों के रचे बसे होते थे। इसलिए कम वर्षा में भी ठोस और चिलक दार उपज देते थे। पर नए आयातित अनाजों में चार बार सिचाई अनिवार्य है। इसलिए लोग जमीन का 4 सौ 5 सौ फीट तक का पानी निकाल लेते हैं। जिसका अर्थ यह होता है कि अब अगर 1 क्विंटल गेहूं की उपज लेकर गांव के बाहर भेजते हैं तो गाँव का 1 लाख लीटर पानी बाहर जा रहा है। एक किलो धान उगाते हैं तो 3 हजार लीटर पानी धरती से निकाल रहे हैं।

 दुश्मन न.- 5   जंगल विनाश

पहले गाँव के आस-पास घने जंगल थे, तो आकाश से उड़कर जाते बादल पर्याप्त नमी के कारण नीचे उतर वर्षा करने लगते थे। पर अब पेड़ो के कट जाने के कारण गर्म कार्बन डाइऑक्साइड बादलों को और ऊंचा उठा देती है। इसलिए वे बगैर बारिश किए ही आगे चले जाते हैं। आप माने न माने पर बस यही सब जल देवता के दुश्मन हैं। हम विकास के दुश्मन नही हैं, पर हो रहे कथित विकास के नाम पर विनाश के दुष्परिणाम को भी देख रहे हैं। 

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