पद्मश्री बाबूलाल दाहिया : बघेली कवि व कृषक |
।। बाबूलाल दाहिया ।।
वन का मनुष्य व तमाम जीव जंतुओं के साथ बड़ा पुराना नजदीकी का रिश्ता रहा है। हमारे प्राचीन मनीषियों ने जीवों की अंडज, पिण्डज, स्वदज एवं जरायुज आदि 4 उत्पत्ति की श्रेणियां बनाई थी, उन में जरायुज का आशय पेड़ पौधों से ही था। पर उनका जीव जगत का एक वर्गी करण और भी बड़ा ही सटीक था। वह है स्थावर और जंगम प्राणी।
स्थावर वे पेड़ पौधे बनस्पतियाँ हैं जो जहाँ उगते हैं वही रह जाते हैं। आग लगे तो जल जाएंगे, बाढ़ आयेगी तो डूब जायेंगे, पर भाग कर नहीं जाएगे ? किन्तु जंगम प्राणी हम मनुष्य सहित तमाम पशु, पक्षी, कीड़े, मकोड़े आदि सभी चलने फिरने वाले प्राणी हैं जो खतरे को भाप इधर उधर भाग सकते हैं ? पर इन दोनों तरह के प्राणियों का बड़ा ही आपसी गहरा सम्बन्ध है ? यहां तक कि अगर एक न हो तो दूसरा अपने आप समाप्त हो जायगा। हमारे इन स्थावर बन्धुओ के पास आँख, कान, नाक आदि तो नहीं दिखाई पड़ते ? पर लगते बड़े ही चालाक हैं। और हमसे जो उनका स्वार्थ है वह यह है कि वे सूर्य के प्रकाश और पत्तियों से अपना भोजन तो तैयार कर सकते हैं पर उसमें लगने वाली एक गैस कार्बन डाईआक्साइड वे हम जंगम प्राणियों से ही लेते हैं ?
हम लोग उनके इर्द गिर्द मंडराते रहें, इसका अगर गहराई से अध्ययन किया जाय तो उनकी चतुराई पर आप दाद दिए बिना नहीं रह सकेंगे ? वह यह कि हर पौधा जमीन से एक जैसा हवा, पानी और सूर्य से धूप ग्रहण करता है किन्तु फल फूल और पत्तियां कुछ में साथ-साथ तो कुछ में अलग-अलग समय में आती है। आम, जामुन, महुआ, अचार, तेंदू, कटाई, बेल अगर चैत्र से असाढ़ तक फल देंगे तो कठजमुना, कोसम, लभेर, सीताफल आदि सावन से कार्तिक तक ? उधर बेर ,अमरूद, कैथा, आदि अगहन से फागुन तक, पर ऊमर, बरगद ,पीपल की डाल कभी फलों से खाली ही न होगी ? कि "खूब खाओ और हमारे इर्द गिर्द मेड़राते रहो।"
इसी तरह कुछ छोटे मझोले पत्तियों वाले पेड़ नीम, आम, महुआ, सरई, कैथा आदि में तो नई कोपले और पत्तियां चैत बैसाख में ही आ जायेंगी, कि जीव जन्तु छाया में आराम फरमाये और कार्बन डाइऑक्साइड का उनके लिए उत्सर्जन करते रहें। लेकिन बड़े पत्ते वाला सागौन और पलास अपनी पत्तियां अषाढ़ में ही उगायेंगे ? वह इसलिए जिससे जीव जन्तु उनके नीचे खड़े होकर पानी की बौछार से अपनी रक्षा कर सकें ? अब गौर कीजिए कि वे हमारी कितनी आवश्यकताओं और कमजोरियों से वाकिफ हैं ? अगर कोई अपनी पत्नी से अधिक प्यार करता है तो लोग उसे "जोरू के गुलाम" नामक मुहावरे से नवाजने लगते हैं। पर मनुष्य कहाँ है जोरू का गुलाम ? वह तो पेड़ पौधों का गुलाम अधिक दिख रहा है ? अगर आम, केला, अमरूद ने अपने मीठे फलों से उसे मुग्ध कर रखा है, जिससे वह अपने बाग़ में उसे लगाने के लिए बाध्य सा है ? तो बेला,चमेली, रातरानी खुशबू से और गुलाब, अमलतास, केक्टस आदि खूबसूरती से उसे अपना चहेता बनाए हुए हैं।
लेकिन एक स्वार्थ को तो हम भूल ही रहे हैं कि जैसे हम उन्हें कार्बन डाइऑक्साइड देते हैं, उसी तरह वे हमें प्राण वायु आक्सीजन भी तो देते हैं। जिसे हमें नजर अंदाज नहीं करना चाहिए ? हम जंगम प्राणियों में बाकी प्राणी तो बेचारे आज भी आदिम जीवन शैली में जी रहे हैं। बस मनुष्यों ने ही प्रकृति के सारे नियमों को तहस-नहस किया है।
इसलिए आज स्थावर और जंगम प्राणियों के अंतर सम्बन्धो को हमे ही खूब अच्छी तरह समझने की जरूरत है। और यही जानने के लिए विश्व वानिकी दिवस है भी ? फिर अगर पेड़ पौधे न रहेंगे तो वर्षा में भी तो कमी आयेगी। जो जीव जगत के लिए एक जरूरी प्राण रक्षक घटक है ?
00000
No comments:
Post a Comment