Friday, April 22, 2022

पहले गाय, बैलों से किसान का होता था एक मूक समझौता, अब नहीं रहा !


 ।। बाबूलाल दाहिया ।। 

इन दिनों नरवई जलाने की अनेक घटनाएँ सुनाई पड़ रही हैं। कहीं-कहीं तो आग अपना बिकराल रूप धर आगे बढ़ती आस-पास की फसल और मकान आदि भी जला देती है। पर मनुष्य के ऊपर यह ह्रदय हीन ब्यापार संस्कृति ऐसी हाबी हो चुकी है कि वह पशुओं और जीव जंतुओं  के भोजन जलाने के अपने इस धतकर्म से बाज ही नहीं आ रहा।

खेती लगभग 8 --10 हजार वर्ष पुरानी है, जिसे किसान करता चला आ रहा है। पहले जमीन में झाड़ झंखाड़ जला और बीज छिड़क कर। फिर लकड़ी हड्डियों से भूमि को खुरच कर एवं अंत में जब आज से लगभग 2800 वर्ष के आस पास लौह अयस्क की खोज कर ली तो हल बैल से जमीन को जोत कर। इस बैल और मनुष्य के साझेदारी की खेती में जमीन की उर्वरता का एक टिकाऊपना था ।क्योंकि न सिर्फ बैल हल में चलते थे बल्कि उनके गोबर की खाद खेत को उपजाऊ भी बनाती रहती थी। फिर मिलमा खेती और अंतरवर्ती खेती का भी वह ऐसा फसल चक्र अपनाता था, जिससे भूमि की उर्वर शक्ति हमेशा बनी रहती थी।

उस समय की ब्यवस्था देख ऐसा लगता था कि किसान का गाय बैलों से एक मूक समझौता होता था कि " बैल हल में चले और किसान हल चलाये साथ ही  बैलों की देख भाल भी करे। किन्तु जो उत्पादन में अनाज हो वह मनुष्य का और भूसा, चारा, चुनी, चोकर बैल का। बैल ने गोबर किया किसान ने उसकी खाद बनाई और गाड़ी में भरा भी। पर खेत तक गाड़ी खींच कर बैल ही ले गये परन्तु अपने - अपने हिस्से के लाभ का समान बटवारा।"

एक समझौता यह भी कि गाय बैल बूढ़े हो जाय तो किसान अपने बूढ़े माँ बाप व परिवार की तरह जीवन पर्यंत  उनकी भी सेवा करे और उनके खाने पीने की पूरी ब्यवस्था करें। पर साठ-सत्तर के दशक में यह हरित क्रांति क्या आई, लोगो को किसान के बजाय ह्रदय हीन ब्यापारी ही बना दिया, जिसका माई बाप सब कुछ पैसा हो गया। जिस चारे भूसे के लिए वह 50-60 के दशक में अपने खाने से अधिक  गाय बैल के खाने के लिए चिंतित  रहता था अब उन्हें घर से निकाल हारवेस्टरर से फसल का तो दाना- दाना निकाल लेता है। पर भूसा बनाने के बजाय नरबई को ही आग के हवाले कर देता है।

घर से निकाले गाय बैल अब भूख से मरे, चाहे प्यास से उसकी बला से? भला बताइये यह किसान है या पूरा कसाई ?  क्योंकि प्रकृति ने जो भी अनाज बनस्पतियों को बनाया है वह सभी जन्तुओ के लिए। अनाज और घास के जो दाने जमीन में झड़ते हैं, उन्हें चिड़िया अगली फसल आने तक चुगती रहती हैं।चीटियां बीज को उठा अपने बिलो में संग्रहीत कर लेती हैं। पर जब मीलों लम्बे चौड़े दायरे में आग लगा दी जाती है तब तो वह जीव जन्तु भी वहीं जल जाते हैं। 

भला बताइए कि मनुष्य अपने 8-10 सदस्यीय परिवार के सुख सुबिधा और ऐसो आराम के लिए कितना घृणित कार्य कर रहा है।  जिसमें वह न सिर्फ आस पास के पशु पक्षियों और लाखों करोड़ो जीवो का भोजन छीन लेता है, बल्कि मीलों लम्बे चौड़े दायरे में भून कर उनकी जान भी ले लेता है।

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