Friday, September 30, 2022

सहजन की पत्ती के रस से बढ़ जाती है नेत्र ज्योति

  •  इस चमत्कारिक पौधे का हर हिस्सा औषधीय गुणों से परिपूर्ण
  •  पत्तियों के रस का प्रयोग करने से उतर जाता है आँखों का चश्मा

औषधीय गुणों से परिपूर्ण सहजन का पेड़।

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। घर, खेत, आँगन यहां तक कि बड़े गमलों में भी सहजता से उगाये जा सकने वाले सर्व सुलभ सहजन का पेड़ औषधीय गुणों की खान है। यह एक ऐसा पेड़ है जिसका हर हिस्सा उपयोगी तथा औषधीय गुणों से परिपूर्ण है। सहजन की ताजी पत्ती का रस निकालकर यदि एक-दो बूँद आँख में डाली जाये तो तमाम तरह के नेत्र रोगों से जहां निजात मिल जाती है, वहीं कुछ ही दिनों के प्रयोग से आँखों का चश्मा तक उतर जाता है। उद्यान विभाग पन्ना के सहायक संचालक रहे महेन्द्र मोहन भट्ट का कहना है कि सहजन की पत्तियों के रस का उपयोग करने से न सिर्फ नेत्र ज्योति बढ़ती है अपितु मोतियाबिन्द के जाले तक छँट जाते हैं तथा आँख पूर्व की तरह निर्मल और तरो ताजा हो जाती है।

उल्लेखनीय है कि कुपोषण के कलंक को मिटाने के लिये सहजन के पौधे को जिसे स्थानीय भाषा में मुनगा भी कहा जाता है, उसे जिले के प्रत्येक आँगनबाड़ी केन्द्र व घरों में रोपित किये जाने का अभियान भी चलाया जा रहा है। जिसमें उद्यान विभाग भी महत्वपूर्ण भूमिका निभा रहा है। उद्यान विभाग की  नर्सरियों में सहजन के पौधे तैयार कर रोपण के लिये उपलब्ध कराये जाते हैं। आपने बताया कि यह बहुत ही तेज गति से बढऩे वाला पौधा है और किसी भी तरह की मिट्टी व वातावरण में लग जाता है। 

श्री भट्ट ने सहजन को इस सदी का संजीवनी पेड़ बताया और कहा कि इसकी पत्तियों में प्रचुर मात्रा में खनिज लवण और विटामिन पाया जाता है इसीलिये इसे एनर्जी ब्लास्टर भी कहा जाता है। सहजन के पौधे में जड़ से लेकर फूल,पत्तियों व फलियों में सेहत के गुण भरे हुये हैं। आपने बताया कि सहजन की पत्तियों का ताजा रस सीधे आँख में डालने के बजाय उसे बराबर मात्रा में शहद व पानी मिलाकर डायलूट किया जा सकता है। क्योंकि अकेली पत्तियों का रस उपयोग करने से कुछ देर तक जलन महसूस होती है, लेकिन १०-१५ मिनट बाद ही आँखें तरोताजा हो जाती हैं तथा शीतलता का अहसास होता है।

हाई ब्लड प्रेशर होता है नियंत्रित

सहजन की पत्तियों के रस का काढ़ा बनाकर हाई ब्लड प्रेशर के मरीजों को देने से लाभ मिलता है। इसका काढ़ा पीने से घबराहट, चक्कर आना तथा उल्टी जैसी तकलीफों से भी राहत मिलती है। सहजन की पत्तियां नेत्र रोग के अलावा मोच व गठिया जैसी बीमारियों के लिये भी फायदेमंद है। सहजन की फली में प्रचुर मात्रा में कैल्शियम पाया जाता है, जो बच्चों के लिये बहुत फायदेमंद होता है। इससे हड्डियां और दांत दोनों ही मजबूत बनते हैं। मोटापा और शरीर की बढ़ी हुई चर्बी को दूर करने के लिये भी सहजन को एक लाभदायक औषधि माना गया है।

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Thursday, September 29, 2022

हीरों की तलाश में जुटे पांच लोगों की फिर चमकी किस्मत

  • पन्ना जिले की उथली खदानों में ५ लोगों को मिले बेशकीमती हीरे
  • एक ही दिन में मिले कुल १८.८२ कैरेट वजन के हीरे, कीमत लाखों में


 ।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले की रत्नगर्भा धरती इन दिनों हीरों की तलाश करने वाले लोगों पर मेहरबान है। यहाँ भिन्न - भिन्न इलाकों में कई जगह उथली हीरा खदानें लगाई जाती हैं जहाँ यदा कदा लोगों को हीरे मिलते रहते हैं। लेकिन ऐसा संयोग कम ही होता है कि एक ही दिन में पांच लोगों को बेशकीमती हीरे मिले हों। बुद्धवार २८ सितम्बर को यह चमत्कार घटित हुआ जब एक - एक करके शाम तक पटी व जरुआपुर की उथली हीरा खदानों में पांच लोगों को हीरा मिले। इन भाग्यशाली लोगों में एक महिला भी शामिल है।


डायमण्ड ऑफिसर पन्ना रवि पटेल ने जानकारी देते हुए बताया कि कलेक्ट्रेट स्थित हीरा कार्यालय में बुद्धवार को  पांच अलग-अलग लोगों के द्वारा उथली खदानों से प्राप्त हीरे जमा किए गए हैं। आपने बताया कि बारिश के दिनों में अमूमन हीरे अधिक लोगों को मिलते हैं। इसकी वजह हीरा धारित चाल (मिट्टी युक्त ककरू) धुलने के लिए पानी की पर्याप्त उपलब्धता होती है। लेकिन एक ही दिन में पांच लोगों को अच्छे किस्म के हीरे मिलना दुर्लभ संयोग है। आपने बताया कि उथली खदानों में पूरे वर्ष हीरे मिलते रहते हैं लेकिन  इस वर्ष मिलने वाले हीरों की संख्या गत वर्षो की तुलना में अधिक है।

हीरा कार्यालय पन्ना में पदस्थ हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि कल्लू सोनकर निवासी पन्ना को कृष्णा कल्याणपुर पटी हीरा खदान में ६.८१ कैरेट का बेशकीमती हीरा मिला है। जेम क्वालिटी का यह हीरा बुद्धवार को मिले हीरों में सबसे बड़ा व कीमती है। इसी प्रकार राजा बाई निवासी छतरपुर को पटी खदान में १.७७ कैरेट, राजेश जैन निवासी पन्ना को पटी खदान में २.२८ कैरेट प्रकाश मजूमदार निवासी ग्राम जरुआपुर को जरुआपुर खदान में ३.६४ कैरेट एवं राहुल अग्रवाल निवासी जनकपुर पन्ना को पटी खदान में ४.३२ कैरेट वजन का हीरा प्राप्त हुआ है। इन सभी हीरा धारकों ने प्राप्त हुए हीरों को नियमानुसार हीरा कार्यालय में जमा किया है। हीरा पारखी ने बताया कि यह सभी हीरे उज्जवल किस्म के हैं, जिनका कुल वजन १८.८२ कैरेट है। जानकारों के मुताबिक उथली खदानों से प्राप्त हुए इन हीरों की कीमत लाखों में है, जो आगामी १८ अक्टूबर से होने वाली नीलामी में बिक्री के लिए रखे जाएंगे।



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Wednesday, September 28, 2022

पोषण वाटिका को हर घर मे होना जरूरी है – रविकान्त

  • दस्तक किशोरी समूहों के प्रतिनिधियों की जिला स्तरीय कार्यशाला आयोजित 
  • कार्यशाला में पोषण, स्वास्थ्य, आजीविका एवं नेतृत्व पर किया गया संवाद 


पन्ना। विकास संवाद समिति पन्ना द्वारा संचालित दस्तक परियोजना के अंतर्गत गठित किशोरी समूहों के प्रतिनिधियों का दो दिवसीय जिला स्तरीय कार्यशाला का आयोजन होटल- संकल्प गार्डन पन्ना में किया गया।  इस कार्यशाला में किशोरियों को पोषण, स्वास्थ्य, आजीविका एवं संगठनात्मक (नेतृत्व) विकास हेतु संवाद किया गया। आयोजन में २५ गांव से ५० किशोरियों के द्वारा सभागिता की गई।

कार्यशाला में सहजकर्ता की भूमिका- सतना से मंजू चटर्जी एवं विकास संवाद भोपाल से अंजली आचार्य तथा पन्ना टीम के साथियों द्वारा निभाई गई। सबसे पहले कार्यशाला के उद्देश्य के बारे में विस्तार से चर्चा की गई और दो दिन की कार्यशाला को बिषय बार बताया गया जिसमे कुपोषण को ख़त्म करने हेतु सामुदायिक साझा पहल, आजीविका के नए स्रोतों का सृजन, पुरे साल हेतु घर में सब्जियों का उत्पादन, जैविक खेती को बढ़ावा देना, जल संरक्षण, लैंगिक भेदभाव, किशोरी स्वास्थ्य, पोषण, शिक्षा, छुआ छूत पर संवाद और आगामी छः माह की कार्ययोजना आदि बिषय कार्यशाला में शामिल रहे।

विकास संवाद समिति के जिला समन्वयक रविकांत पाठक  द्वारा बताया गया की हम प्रतिबर्ष २५ गांव से किशोरी समूहों के दो-दो साथियों को कार्यशाला में शामिल करते हैं। कार्यशाला में किशोरी स्वास्थ्य, पोषण, आजीविका, सामुदायिक संगठनों को मजबूती हेतु दो दिन की कार्यशाला में संवाद स्थापित करते हैं। यदि हमे गाँव से कुपोषण, एनीमिया का अंत करना है, तो समुदाय, शासकीय एवं अशासकीय संस्थाओं को साथ मिल कर काम करना होगा। हमें यह तय    करना होगा कि गांव के प्रत्येक घर में पोषण वाटिका लगाने की जरूरत है, तभी हम कुपोषण और एनीमिया का अंत कर सकेंगे। 

विकास संवाद से अंजली जी द्वारा किशोरी स्वास्थ्य में मेंसट्रुअल कप के बारे में विस्तार से जानकारी दी तथा उपयोग करने हेतु बताया गया और कम खर्च तथा सुरक्षा कि दृष्टी से बहुत ही महत्त्व पूर्ण है। कार्यशाला में पृथ्वी संस्था से समीना युसूफ ने कार्यशाला में शामिल किशोरियों को सेनेटरी नेपकिन हेतु जानकारी देते हुए बताया कि आप स्वयं और परिवार में महिलाओ को पेड के उपयोग करने हेतु प्रेरित करें, जिससे संक्रमण का ख़तरा कम हो। रोजगार हेतु मशरुम उत्पादन सम्बन्धी जानकारी दी और बताया की आप लोग अपने घर में मशरूम उगा सकते हैं। मशरूम में बहुत पोषण होता है आप स्वयं परिवार में उपयोग करें और बच्चों को खिलाये साथ ही ज्यादा मात्रा में लगाते हैं तो बाजार में बेच सकते हैं, जिससे परिवार में आजीविका का स्रोत भी हो सकता है। 

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Tuesday, September 27, 2022

विश्व पर्यटन दिवस : सुरक्षा और संरक्षण मिले तो प्राकृतिक सौन्दर्य को मिले पहचान

  • पन्ना शहर के निकट स्थित है मनोरम स्थल कौआ सेहा
  • देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का बन सकता है केन्द्र 


।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। आज 42वां विश्व पर्यटन दिवस है, इस दिवस को हर साल 27 सितंबर को मनाया जाता है। वर्ष 2022 में विश्व पर्यटन दिवस की थीम 'पर्यटन पर पुनर्विचार' (Rethinking Tourism) रखी गई है। इस दिवस को मनाने की शुरुआत 1980 में हुई थी और उसी साल पहला विश्व पर्यटन दिवस मनाया गया था।इस दिवस को मनाने का मुख्य उद्देश्य टूरिज्म के प्रभाव को लेकर लोगों में जागरुकता फैलाना है। टूरिज्म दुनिया को आपस में जोड़ता है और एक दूसरे कल्चर के बारे में ज्ञान देता है।  

उल्लेखनीय है कि पर्यटन विकास की मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में विपुल सम्भावनायें मौजूद हैं। यहाँ प्रकृति के दिलकश नज़ारे मंत्रमुग्ध कर देने वाले हैं। प्रकृति ने यहाँ की धरती को जहाँ रत्नगर्भा बनाया है वहीँ हरी भरी पहाड़ियों, गहरे सेहों और खूबसूरत झरनों के रूप में उसके हस्ताक्षर जगह - जगह नजर आते हैं। लेकिन दुर्भाग्य की बात यह है कि प्रकृति के अनुपम सौगातों का पन्ना के विकास की दिशा में रचनात्मक उपयोग हम नहीं कर सके हैं। बातें तो बहुत होती हैं लेकिन ठोस पहल व प्रयास नहीं होते। यही वजह है कि पर्यटन विकास की असीम संभावनाओं के बावजूद अभी तक यह जिला पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र नहीं बन सका है। यहां प्राचीन भव्य मन्दिरों के अलावा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों, खूबसूरत जल प्रपातों व प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण मनोरम स्थलों की भरमार है। इनका समुचित ढंग से प्रचार-प्रसार न होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक इस जिले की खूबियों से अनभिज्ञ हैं। यदि पन्ना शहर के आसपास 10 - 15  किमी. के दायरे में स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का ही योजनाबद्ध तरीके से समुचित विकास हो जाये तो देशी और विदेशी पर्यटकों का यहाँ तांता लग सकता है।


पन्ना शहर से बमुश्किल तीन-चार किलोमीटर दूर स्थित कौवा सेहा का अप्रतिम सौंदर्य देखने जैसा है। यदि इस प्राकृतिक सेहा तक सुगम मार्ग व यहां सुरक्षा के जरूरी इंतजाम करा दिए जाएं तो मानसून सीजन के अलावा भी पूरे वर्ष भर यह स्थल पर्यटकों को आकर्षित करने की क्षमता रखता है। पिछले दिनों मैं जब कौवा सेहा पहुंचा और यहां के विहंगम दृश्य को देखा तो अवाक रह गया। प्रकृति की इस अद्भुत रचना के सौंदर्य को यहां जाकर ही अनुभव किया जा सकता है। किलकिला नदी का पानी इस गहरे सेहा में जब सुमधुर संगीत के साथ सैकड़ों फीट नीचे गिरता है, तो उसे सुनकर मन प्रफुल्लित हो जाता है। चोपड़ा मंदिर से किलकिला नदी को पार करके जंगल के रास्ते से पैदल जब हम यहां पहुंचे, तो सेहा की गहराई और दूर-दूर तक नजर आतीं वनाच्छादित पहाड़ियां एक अलग ही अहसास दिलाती हैं। आमतौर पर यहां सन्नाटा पसरा रहता है और झरने के सुुुमधुर संगीत के बीच वृक्षों में कुल्हाड़ी चलने की आवाजें गूंजती हैं, जिससे यहां का माहौल बेहद डरावना प्रतीत होने लगता है। यदि यह स्थल विकसित हो जाए तो अवैध कटाई सहित अन्य गैरकानूनी गतिविधियों पर जहां रोक लग सकती है, वहीं उपेक्षा के चलते उजड़ रहा यह स्थल अप्रतिम सौंदर्य को पुन: प्राप्त हो सकता है।

कौवा सेहा से किलकिला नदी के प्रवाह मार्ग पर चलते हुए जब हम चोपड़ा मंदिर की ओर वापस लौटे तो किलकिला नदी की दुर्दशा को देख मन व्यथित हो गया। शहर के निकट से प्रवाहित होने वाली यह नदी जंगल से गुजर कर कौवा सेहा में गिरती है और आगे चलकर केन नदी में मिल जाती है। प्रणामी संप्रदाय में किलकिला नदी का वही महत्व है जो हिंदुओं के लिए गंगा नदी का है। यही वजह है कि किलकिला को प्रणामी संप्रदाय की गंगा कहा जाता है। लेकिन यह नदी इस कदर दूषित और विषाक्त है कि इसका पानी हाथ धोने के लायक भी नहीं है। पन्ना शहर की पूरी गंदगी इस नदी में पहुंचती है, जो इसे विषाक्त बनाए हुए है। नदी के प्रवाह क्षेत्र में दोनों तरफ कचरा और पॉलिथीन के ढेर जमा हैं। नदी किनारे स्थित वृक्षों के तने पॉलीथिन से पटे हुए हैं। पन्ना के विकास व सौंदर्यीकरण की बात करने वाले जनप्रतिनिधि व आला अधिकारी यदि किलकिला नदी को साफ स्वच्छ बनाने व कौवा सेहा को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित करने की दिशा में सार्थक पहल करें तो निश्चित ही यह पन्ना शहर पर न सिर्फ बहुत बड़ा उपकार होगा अपितु इससे रोजगार के नए अवसरों का सृजन व पर्यावरण का संरक्षण भी होगा।


मालुम हो कि प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विगत 6 वर्ष पूर्व पन्ना प्रवास के दौरान यह घोषणा की थी कि पन्ना शहर के आस-पास स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का विकास कर यहां मानसून पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये प्रयास किये जायेंगे ताकि बारिश के मौसम में जब पन्ना टाईगर रिजर्व के गेट पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हो जायें, उस समय भी पर्यटक यहां आकर प्रकृति के अद्भुत नजारों का आनन्द ले सकें। इससे यहां पर रोजगार के नये अवसरों का जहां सृजन होगा, वहीं मन्दिरों के शहर पन्ना को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जी की इस सोच व घोषणा की पन्नावासियों ने सराहना की थी, लेकिन ६ वर्ष गुजर जाने के बाद भी इस दिशा में कोई सार्थक पहल व प्रयास नहीं हुये। प्राकृतिक मनोरम स्थलों के विकास की मुख्यमंत्री द्वारा की गई घोषणा कब मूर्त रूप लेगी पन्नावासियों को उसका बेसब्री से इंतजार है।  

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Saturday, September 10, 2022

घृणा के घटाटोप में प्रेम का पैयां पैयां पैगाम

  • बुद्ध से गांधी तक, कोलंबस से मार्टिन लूथर तक सबकी यात्रा ने मनुष्यता की राह आसान की। मैगस्थनीज से वास्कोडिगामा और फाह्यान से इब्न बतूता तक सबने इतिहास के नये पन्ने लिखे। और आडवाणी की रथयात्रा ने भाईचारे की धरती पर घृणा का हल बखर चलाया।


।। डॉ राकेश पाठक ।।

कांग्रेस के पूर्व अध्यक्ष राहुल गांधी कन्याकुमारी से भारत जोडऩे का पैग़ाम लेकर पैयां पैयां चल पड़े हैं।

सवा सौ साल पुरानी उनकी पार्टी अपने इतिहास के सबसे बुरे दिनों से गुजर रही है। यह यात्रा भले ही देश को जोडऩे, आपसी सद्भाव बढ़ाने के घोषित उद्देश्य से शुरू हुई है लेकिन हर राजनैतिक दल का हर कदम राजनीति के लक्ष्य साधने के लिए होता है वैसे ही इसका भी है। होगा ही, इससे किसे इंकार है..!

साढ़े तीन हजार किलोमीटर चल कर यह यात्रा जब पांच महीने बाद श्रीनगर पहुंचेगी तब तक इसके राजनैतिक लक्ष्य कितने पूरे होंगे यह अभी भविष्य के गर्भ में है लेकिन यह तय है कि यह यात्रा देश में भाईचारे का संदेश पहुंचाने में तो कामयाब हो ही जाएगी।

जब देश घृणा के घटाटोप में घिरा हुआ है तब कोई प्रेम का पैग़ाम लेकर इतनी कठिन यात्रा पर पैयां पैयां निकल पड़ा हो तो एक सभ्य समाज उसे उम्मीद की निगाह से देखेगा ही। देखना भी चाहिए।

इस यात्रा में कांग्रेस पार्टी का कोई प्रतीक, चुनाव चिन्ह,झंडा डंडा नहीं है और न होगा। यात्रा सिर्फ़ एकता और भाईचारे की बात करेगी। स्वाभाविक है कि भले कोई प्रतीक न हो लेकिन पार्टी का सबसे बड़ा शुभंकर राहुल गांधी जब सबसे आगे कदम रखेगा तो पार्टी का नाम पता भी घर घर स्वयमेव पहुंच जाएगा। 

इसके चुनावी फलितार्थ जो भी होंगे हमारी बला से लेकिन अगर यह समाज में बढ़ते सांप्रदायिक , विभाजनकारी विचार को दो कदम भी पीछे धकेलने में सफल रही तो देश और समाज दोनों के हित में होगा।

यह आधुनिक युग में देश ही नहीं संभवत: दुनिया की सबसे लंबी दूरी की पदयात्रा है। अगर यह अपने गंतव्य तक सफलतापूर्वक पहुंच सकी तो यह अपने आप में एक इतिहास होगा।

🌐आज़ादी के पहले और बाद में राजनैतिक यात्राएं

राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा के बहाने देश में हुई राजनैतिक यात्राओं का फौरी लेखा जोखा देख लेना समीचीन होगा।

आज़ादी के संग्राम में महात्मा गांधी ने 12 मार्च 1930 को साबरमती(अहमदबाद) से समुद्र तक के कस्बे दांडी तक पैदल यात्रा की थी। अंग्रेज सरकार के नमक कानून को तोडऩे के लिए यह यात्रा 390 किलोमीटर दूरी तय करके 6अप्रैल 1930 को दांडी पहुंची थी।

यह यात्रा अपने उद्देश्य में सफल रही थी।

आज़ादी के बाद पचास के दशक में आचार्य विनोबा भावे ने भूदान आंदोलन में पदयात्रा की। करीब तेरह साल चली इस यात्रा में आचार्य भावे ने 58हजार किलोमीटर से ज्यादा यात्रा की थी।

वे महात्मा गांधी के आध्यात्मिक उत्तराधिकारी माने जाते थे। खुद गांधी जी ने उन्हें देश का 'पहला सत्याग्रही' कहा था।

आज़ाद भारत में सबसे महत्वपूर्ण यात्राओं में चंद्रशेखर की 1983 में निकली भारत यात्रा यादगार मानी जाती है। इंदिरा गांधी की सत्ता के खिलाफ़ जनजागरण के लिए यह यात्रा कन्याकुमारी से राजघाट,दिल्ली तक की थी। इस यात्रा के कुछ साल बाद चंद्रशेखर प्रधानमंत्री बने थे।

1990 में भाजपा नेता लालकृष्ण आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या तक रथयात्रा निकाली थी। राममंदिर निर्माण की मांग के लिए निकली यह यात्रा पूरी नहीं हो सकी। बीच में ही उन्हें गिरफ्तार कर लिया गया लेकिन तब तक यह रथयात्रा देश की धरती पर सांप्रदायिकता, वैमनस्यता, धार्मिक कटुता का हल बखर चला चुकी थी। 

देश आजतक उसी दौर में बही विभाजनकारी राजनीति की जहरीली आबोहवा को भुगत रहा है। हां इसके बाद भाजपा सत्ता का स्वाद चखने में अवश्य सफल रही।

यह यात्रा पैदल नहीं थी, सुसज्जित चारपहिया रथ पर थी।

कांग्रेस के नेता सुनील दत्त ने 1987 में पैदल भारत यात्रा की थी। यह सिख आतंकवाद का चरम दौर था। तब सुनील दत्त ने मुंबई से अमृतसर तक यात्रा की।

सुनील दत्त ने परमाणु हथियारों के खिलाफ़ नागसाकी से हिरोशिमा की यात्रा भी की थी। 

एन टी रामराव ने 1982 में चैतन्य रथम यात्रा निकाली। 

आधुनिक सुविधा संपन्न रथ में 75 हजार किलोमीटर की यात्रा करके एन टी आर सत्ता के सिंहासन तक पहुंच गए।

आंध्र प्रदेश में पहले सन 2003 में वाई एस राजशेखर रेड्डी ने पदयात्रा की।बाद में सरकार बनाई। उनके बेटे जगन मोहन ने भी यात्रा की और आज सत्ता में बैठे हैं।

हाल के वर्षों में सबसे उल्लेखनीय पदयात्रा कांग्रेस के वरिष्ठ नेता दिग्विजय सिंह ने की। करीब छह महीने में दिग्विजय ने तीन हजार किलोमीटर चल कर नर्मदा परिक्रमा की। सन 2018 में मप्र में कांग्रेस की सरकार बनने में इस नर्मदा यात्रा का बड़ा योगदान माना जाता है।

गैर राजनैतिक यात्राओं में बाबा आमटे की कन्याकुमारी से कश्मीर और कच्छ से कोहिमा तक की यात्रा उल्लेखनीय है।

 🌐अमरीका में मार्टिन लूथर किंग की पदयात्रा..

दुनिया के इतिहास में महान और परिवर्तनकारी पदयात्राओं में मार्टिन लूथर किंग जूनियर की पदयात्रा गिनी जाती है। मार्टिन लूथर ने सन 1965 में अश्वेतों के मताधिकार के लिए अलबामा की राजधानी मोंटगोमरी तक 25 हजार लोगों के साथ पैदल मार्च किया। इस मार्च के बाद ही अगस्त 1965 में अश्वेतों को मतदान का अधिकार मिला।

मार्टिन लूथर किंग महात्मा गांधी को अपना प्रेरणा पुरुष मानते थे। गांधी के सत्य,अहिंसा,सत्याग्रह के सिद्धांत आत्मसात करके ही मार्टिन लूथर ने हर आंदोलन चलाया।

🔴 प्राचीन समय में देश,दुनिया में यात्राएं...

मानव सभ्यता के विकास के साथ ही मनुष्य में भ्रमण, देशाटन की ललक रही आई है। जल ,थल मार्ग से अनेक महत्वपूर्ण यात्राएं की गई जिनके जरिए दुनिया के लोगों ने एक दूसरे को जाना।

ज्ञात इतिहास में महात्मा गौतम बुद्ध के भारत भ्रमण का उल्लेख मिलता है। ईसा के पांच सौ साल पहले जन्मे गौतम ने भारत के अलावा कश्मीर पार करके अफगानिस्तान तक यात्रा की । बामियान बौद्ध धर्म की राजधानी बना।

आठवीं सदी में आदि शंकराचार्य ने सनातन धर्म की पुनर्स्थापना के लिए भारत यात्रा की थी। इसे 'शंकर दिग्विजय यात्रा' कहा गया। इस यात्रा के दौरान ही चारों पीठ स्थापित किए और एक तरह से भारत के एकीकरण का अभूतपूर्व कार्य किया।

महा पंडित राहुल सांकृत्यायन ने बीसवीं सदी के दूसरे दशक में यात्राएं शुरू की तो जीवन के आखिर तक घूमते ही रहे। ज्ञानार्जन के लिए उन्होंने रूस,जापान, तिब्बत की दुरूह यात्राएं की और वोल्गा  से गंगा जैसी रचनाएं लिखीं।

कोलंबस की इतिहास प्रसिद्ध यात्रा ने अमरीका को खोज निकाला। उससे पहले दुनिया अमरीका से अनभिज्ञ थी।

दुनिया के तमाम यात्री भारत आते रहे। 

ईसा पूर्व यूनानी यात्री मैगस्थनीज , चीनी यात्री फाह्यान, ह्वेंसांग ने भारत भ्रमण करके यहां के बारे में विस्तार से लिखा।

मेहमूद गजनवी के साथ सन 1000 ई में  अलबरूनी भारत आया था।  मोरक्को(अफ्रीका) से इब्न बतूता ने भी भारत आकर प्रमाणिक लेखन किया।  

इटली का यात्री मार्कोपोलो सन 1288 में भारत आया और निकालो कोंटी ने सन 1420 में भारत की यात्रा की।

यह अवश्य ध्यान में रखना चाहिए कि ये सब यात्री पैदल नहीं आए थे। उस समय उपलब्ध जलमार्ग में नौकाओं या थलमार्ग में घोड़े,खच्चर आदि से ही इतनी लंबी यात्राएं की गई थीं।

इति।

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Friday, September 9, 2022

एक मोटा अनाज मडुआ अंग्रेजी में कहते हैं फिंगर मिलट

 


 ।। बाबूलाल दाहिया ।।               

यह मडुआ है जिसे कहीं मड़िया या मेडिया अथवा रागी नाम से जाना जाता है। इसके  बाल की बनावट ऊपर की ओर की गईं हाथ की पाँचो उंगलियों की तरह होती है। शायद इसीलिए अंग्रेजी में इसे "फिंगर मिलट" भी कहा जाता है।

इसमें आयरन आदि कई तत्वों की मात्रा बहुत अधिक होती है, इसलिए कुछ लोग 80:10: 10 गेहूं चना और मड़िया को मिला उक्त अनुपात में पिसा कर रोटी खाते हैं। इसका पौधा जमते समय बघेली के (घोड़चबा ) नामक घास की तरह चौड़ी पत्ती का होता है, जिसे जानवर खूब खाते हैं।

बगैर रसायनिक खाद की खेती के इस फसल को उगाने की एक नई तकनीक भी आ गई है। पहले एक एकड़ हेतु 100 ग्राम बीज बो दिया जाय और जब पौधा रोपने लायक हो जाय तो अगस्त में  खेत की दो बार जुताई कर एक लकड़ी से अड़ी और खड़ी एक-एक फीट के फासले की समानान्तर रेखा खींच दी जाय  एवं जहां-जहां रेखा एक दूसरे को क्रॉस करें वहीं-वहीं एक - एक पौधा रोप दिया जाय। इससे कतार से कतार और पौधे से पौधों की दूरी 1 फीट होगी। जब खेत मे लगे पौधे 15 -20 दिन के हो जाय तो आदमी - आदनी से ही हल्का पाटा चला दिया जाय। पर यह स्मरण रहे कि पाटा एक ओर से ही चले जिससे सभी पौधे एक ओर ही झुकें। इस तरह पाटा चला देने से पौधों में खूब किल्ले आते हैं और प्रति एकड़ 7-8 क्विंटल तक उपज आती है।

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Saturday, September 3, 2022

सिर में बस्ता हाथ में जूते, इस तरह दलदल पार कर स्कूल जाते हैं नौनिहाल

  • पन्ना जिले के बरियारपुर पंचायत अंतर्गत मजरा मंझपुरवा के हाल
  • जिले का यह अकेला गांव नहीं है ऐसे ग्रामों की यहाँ लम्बी फेहरिस्त 

ये नौनिहाल स्कूल जाकर पढ़ने के लिए किस तरह जोखिम उठाते हैं, कितनी कठिन है इनकी डगर।  

।। अरुण सिंह ।। 

पन्ना। देश में जब आजादी का अमृत महोत्सव बड़े ही धूमधाम के साथ मनाया जा रहा है, उस समय देश में ही ऐसे इलाके भी हैं जहाँ के लोगों को अभी तक न तो आजादी का मतलब पता है और न ही अमृत महोत्सव से उनका कोई वास्ता है। उनकी जिंदगी तो दो जून की रोटी की जुगाढ़ में ही खप रही है। बुनियादी और मूलभूत सुविधाओं से वंचित इन लोगों को चिकनी चमचमाती सड़कें तो दूर की बात पैदल चलने लायक सुगम रास्ता तक नसीब नहीं है। बारिश के मौसम में इनकी मुसीबतें और बढ़ जाती हैं क्योंकि तब उन्हें कीचड भरे रास्ते से होकर जाना पड़ता है।  

हम बात कर रहे हैं मध्यप्रदेश के बुन्देलखण्ड क्षेत्र के उस जिले की जहाँ की धरती में बेशकीमती हीरे निकलते हैं। प्रचुर मात्रा में वन व खनिज संपदा के बावजूद इस जिले की एक बड़ी आबादी दयनीय और लाचारी वाली जिंदगी जीने को मजबूर है। आजादी के 75 सालों बाद अमृतकाल में भी पन्ना जिले के सैकड़ा भर से अधिक गांव सड़क विहीन हैं। बारिश के दिनों में यहां के मार्ग दलदल में तब्दील हो जाते हैं, जिससे ग्रामीणों का आवागमन कठिन हो जाता है।  प्रमुख मार्गों से इन ग्रामों का संपर्क पूरी तरह से टूट जाता है। कुछ ग्रामों में स्कूल नहीं होने से बच्चे कई किलोमीटर दलदल पार कर स्कूल जाने को मजबूर होते हैं। ऐसा ही मामला पन्ना विधानसभा के अजयगढ़ विकासखंड अंतर्गत ग्राम पंचायत बरियारपुर के मजरा मंझपुरवा का है। लगभग 400 की आबादी और 100 घरों वाले इस गांव के बच्चे बरसात के 4 माह तक सिर में बस्ता हाथों में जूते लेकर 2 किलोमीटर कीचड़ पार करते हुए जान जोखिम में डालकर स्कूल जाते हैं। 

ग्रामवासियों के मुताबिक विगत 2 वर्ष पूर्व एक बच्ची की इसी दलदली रास्ते में फिसल कर गिरने की वजह से नाक और मुंह में कीचड़ चले जाने से मौत हो गई थी। उस समय जब यह हादसा घटित हुआ था तब कुछ दिनों तक यह मामला सुर्खियों में बना रहा। लेकिन जैसा हर हादसे और घटना के बाद होता है वही इस गांव के साथ भी हुआ। जल्दी ही मामले को जिम्मेदार प्रशासनिक अधिकारी व जनप्रतिनिधि भूल गये फलस्वरूप गांव की हालत जस की तस है। जिले का यह अकेला गांव नहीं है ऐसे ग्रामों की लम्बी फेहरिस्त है जहाँ के रहवासी इक्कीसवीं सदी में आदिम जिंदगी जी रहे हैं। गांव के नौनिहाल जिन्हे देश का भविष्य कहा जाता है वे कीचड़भरे रास्ते से सिर में किताब और कापियों का बस्ता व हाँथ में जूते लटकाये निकलते हैं। ग्रामीण भारत के इन स्कूली बच्चों की तकलीफों और समस्याओं की सुध लेने की किसी को फुर्सत नहीं है।  

इनका क्या कहना है-

यह बहुत बड़ी समस्या है छोटे-छोटे बच्चों को घुटनों तक कीचड़ में चलकर स्कूल जाना पड़ रहा है। दो वर्ष पूर्व एक बच्ची की मौत हो चुकी है मैं जनप्रतिनिधि होने के नाते शासन प्रशासन का इस ओर ध्यान आकर्षित करवा कर शीघ्र सड़क निर्माण की मांग करूंगी। 

- रचना वृंदावन पटेल जिला पंचायत सदस्य

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