Friday, October 7, 2022

आखिर क्यों बनती जा रही है खेती अब घाटे का सौदा ?

 


।।  मंगल सिंह राजावत ।। 

आज 7अक्टूबर ऐसा प्रतीत हो रहा है कि वर्षा ऋतु अपने पूरे शबाब पर है। उर्द, सोयाबीन , अतिवृष्टि के कारण खराब हो गए हैं तो तिल की भी कब्रगाह बन गई है। बुंदेलखंड के छतरपुर टीकमगढ़ सहित अनेक जिलों में मूंगफली पर भी संकट के बादल गहराते जा रहे हैं। महंगे डीजल, महंगा बीज, एमआरपी से लगभग दोगुने रेट में मिलने वाला खतपरवार एवं कीटनाशक आदि आदि परिस्थितियों ने लघु एवं सीमांत किसानों की कमर तोड़ दी है। 

दरअसल हमें प्रकृति की नैसर्गिकता को समझते हुए मौसम एवं फसलों में तालमेल बैठाना होगा, वरना खेती अब घाटे का सौदा बनती जा रही है। मध्य भारत में मुख्यतः तीन ऋतुऐ होती हैं, प्रत्येक ऋतु 120 दिन की होती है इसी के आधार पर फसल चक्र सदियों से निर्धारित किया गया है। 

किसान भाइयों कहने की जरूरत नहीं है विगत ग्रीष्म ऋतु  इतिहास की सबसे गर्म ऋतु रही है। स्पष्ट था प्रकृति संतुलन बनाती है, इसलिए वर्षा भी रिकॉर्ड बनाने वाली थी। हुआ भी यही किसान भाइयों ने पिछले वर्षों की तरह जल्दबाजी करते हुए जून अंत जुलाई फर्स्ट में उड़द, सोयाबीन, तिल की बोनी कर दी। 

 यद्यपि 15 जून से 15 अक्टूबर 120 दिन वर्षा काल के होते हैं, उपरोक्त फसलें सही समय पर 60 से 75 दिन के बीच में पक कर तैयार हो गई परिणाम अतिवृष्टि के कारण नष्ट हो गई। हम इसके लिए प्रकृति को उत्तरदाई नहीं ठहरा सकते। 


मैं खेती ठेका या बटाई पर देता रहा हूं किंतु इस वर्ष मैंने स्वयं खेती कराई है। मैं जान गया था कि इस वर्ष अतिवृष्टि होगी इसलिए मैंने धान रोपाई नहीं बल्कि सीधे छिडकवा दी थी इससे आने वाली लागत से बच गया था। अरहर सहित होने वाली लगभग सभी फसलें थोड़ी-थोड़ी मात्रा में बुवाई, परिणाम खेती को घाटे का सौदा होने से बचा लिया। किसान भाइयों अक्टूबर में जारी बरसात को देखते हुए पूरी-पूरी संभावना है, आने वाली रबी की फसल ऋतु चक्र को देखते हुए बोनी होगी, वरना परिणाम गंभीर होंगे। 

अर्थात यह कि हमें कोई एक अल्पकालीन आयुवाली फसल के स्थान पर प्राचीनकालीन परंपरागत खेती करते हुए संतुलन बनाना होगा। तभी हम विपत्तियों से बच सकते हैं। 

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