Friday, October 7, 2022

हाथी बरखे तीन गे उरदा तिली कपास, हाथी बरखे तीन भे साली, शक्कर, मास

 


।। बाबूलाल दाहिया ।।

बघेली बोली में यदि सबसे अधिक कहावतें हैं तो हस्त नृक्षत्र पर। क्योंकि कि यह ऐसा नृक्षत्र है जो खरीफ और रबी के संधिकाल में होने के कारण दोनों को प्रभावित करता है। यही कारण है कि इसमें वर्षा होने से कुछ लोगो मे खुसी होती है, तो कुछ लोगो के घरों में आफत भी ला देता है। इसे बघेली में हाथी य हथिया नृक्षत्र कहा जाता है।

यह नृक्षत्र अमूमन २५ सितम्बर के आस-पास लगता है और ९-१०  अक्टूबर तक समाप्त हो जाता है। पर  २० से २५ सितम्बर का समय यहां से वर्षा ऋतु समाप्ति का भी होता है। यह अलग बात है कि कभी- कभी कम दबाव का क्षेत्र बन जाने के कारण  बंगाल की खाड़ी बाले बादल यहां ४-५ दिन की झड़ी लगा बरस जाते हैं। 

तब क्वार माह होता है । अस्तु एक कहावत क्वार मास पर भी है कि--

  कुमार कय बरखा।

  आधेगाँव अनमन,

   आधे गाँव हरखा।।

क्योंकि जिनने खेत मे तिल, मूग, उड़द आदि नहीं बोया था उनको खुसी होती है कि खेतों में नमी संचित होने के कारण इस वर्ष गेहूं और गन्ने की भरपूर पैदावार होगी। परन्तु जिनने तिल, मूग, उड़द बोया हुआ था वहाँ तो यह वर्षा आफत ही लेकर आती है। कपास में भी फली छेदक सूडी ( इल्ली ) लग जाती है। यही कारण है कि एक कहावत तो और ही फेमस है जिसमें कहा गया है कि--

हथिया बरखे चित मेंड़राय।

घर बैठे किसान रेरियाय।।

इसीलिए इस मिले जुले आनन्द और दुख को उजागर करती यह कहावत भी कही गई है कि--

हाथी बरखे तीन गे उरदा तिली कपास।

हाथी बरखे तीन भे,साली शक्कर मास।।

यानी अगर उड़द, तिल, कपास नष्ट हुए तो धान, गन्ना और गेहूं के भरपूर उपज की संभावना भी बढ़ जाती है। इस नृक्षत्र में बारिश समाप्त हो चुकने पर जहां अलसी की बुबाई होती है वहीं एक कहावत सरसो, राई और मूली बोने की भी है कि--

      आधे हथिया मूर मुराई।

      आधे हथिया सरसो राई।।

हाथी के बाद चित्रा नृक्षत्र लगता है, जो चना मसूर बोने का नृक्षत्र होता है। हमारे पिता जी बताया करते थे कि " एक बार अश्वलेखा नृक्षत्र से बादल ऐसे रूठे की हस्त तक दुर्लभ से हो गए, जिससे समस्त खरीफ की फसल सूख गई।"

वर्षा आधारित खेती का जमाना था, जब कोई सिंचाई के साधन नहीं हुआ करते थे। अस्तु मजदूरों की कौंन कहे किसान तक परदेश कमाने मालबा, गुजरात चले गए। पर अचानक बंगाल की खाड़ी में हलचल हुई और स्वाती नृक्षत्र में इतनी बारिश होने लगी जितनी इन दिनों ३ दिन से दशहरा के समय हो रही है। फिर क्या था? प्रकृति ने कोदो को तो अकाल दुकाल के लिए बनाया ही था ? अस्तु उसके तने में कुछ जीवन शेष था । फिर नए किल्ले फूटे और शीघ्र ही बालियां आकर अगहन में दाने भी पक गए। जिसे काट मीज लोग भोजन में उपयोग किए और अकाल को अंगूठा दिया, जिससे उससे एक और कहावत ने जन्म ले लिया कि--

उत्तरा गए निखत्तरा, हाथी के मुह बोर।

बाढ़य बपुरी चित्रा,जउन लाई लोक बहोर।।

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