Wednesday, February 22, 2023

कार्बन डेटिंग से होगा हथिनी वत्सला की उम्र का खुलासा, तब वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज होगा नाम

  • तकरीबन 105 वर्ष की हो चुकी दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की शान है। दुर्भाग्य से इस हथिनी के जन्म का कोई रिकॉर्ड न होने के कारण इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अभी तक दर्ज नहीं हो सका। लेकिन कार्बन डेटिंग से वत्सला की उम्र का सही आकलन हो सकता है। फिर भी सवाल यह है कि क्या जीते जी वत्सला को दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी का खिताब हासिल हो सकेगा ?

पन्ना टाइगर रिज़र्व की धरोहर बन चुकी दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी वत्सला। 

।। अरुण सिंह ।।  

पन्ना (मध्यप्रदेश)। दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी वत्सला पिछले दो दशक से पर्यटकों और वन्य जीव प्रेमियों के लिए आकर्षक का केंद्र बनी हुई है। पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर बन चुकी इस हथिनी की उम्र तकरीबन 105 वर्ष बताई जा रही है, जबकि दुनिया के सबसे अधिक उम्र वाले हाथी लिन वांग (ताइवान) की 86  वर्ष की आयु में 26 फरवरी 2008 को मौत हो चुकी है। इस लिहाज से पन्ना टाइगर रिजर्व की हथिनी वत्सला मौजूदा समय पूरी दुनिया में सबसे अधिक उम्र की हाथी है, बावजूद इसके अभी तक वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो सका है। इसकी वजह हथिनी वत्सला का जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होना है।

हथिनी वत्सला को दो बार मौत के मुंह से बचाने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता बताते हैं कि हथिनी वत्सला की सही उम्र का पता लगाने का अब एक ही रास्ता है कि उसके एकमात्र उपलब्ध मोलर टीथ (दाढ़) का कार्बन डेटिंग कराया जाए। इस पद्धति से वत्सला की आयु का पता चल सकता है। डॉक्टर गुप्ता बताते हैं कि जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की आयु तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। दो दशक पूर्व जब पहली बार मैंने वत्सला को देखा था, उस समय इसके दांत गिर चुके थे। हथिनी वत्सला की पूरी तरह घिस चुकी मोलर टीथ (दाढ़) भी पिछले माह गिर गई है जो हमारे पास है। यह वत्सला का अंतिम दांत था, यदि इसका कार्बन डेटिंग कराया जाए तो हथिनी की उम्र का पता चल सकता है। डॉक्टर गुप्ता बताते हैं कि जीते जी वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो, इसके लिए यही एकमात्र रास्ता है कि मोलर टीथ का कार्बन डेटिंग कराया जाए।

आखिर क्या होता है कार्बन डेटिंग ?


हथिनी वत्सला का मोलर टीथ (दाढ़) दिखाते हुए वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता।  

कार्बन डेटिंग जिसे रेडियो कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है, इसका उपयोग लकड़ी, हड्डी, चमड़ी, बाल और खून के अवशेष की उम्र अथवा कितनी पुरानी है इस बात का पता लगाने में किया जाता है। इस तकनीक की खोज वर्ष 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1960 में रसायन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था। डॉक्टर संजीव गुप्ता बताते हैं कि मोलर टीथ भी एक प्रकार की हड्डी है, जो जन्म के समय की होती है। मोलर टीथ की कार्बन डेटिंग से वत्सला की सही उम्र का आकलन किया जा सकता है, जिसकी मान्यता भी होगी। हमने इस बाबत देश की दो प्रमुख प्रयोगशालाओं से संपर्क भी किया है।

 उम्रदराज हथिनी वत्सला की क्या है कहानी 

शतायु पार कर चुकी हथिनी वत्सला की कहानी बेहद दिलचस्प तथा रहस्य व रोमांच से परिपूर्ण है। वत्सला मूलतः केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। इसका प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मंडल (केरल) में वनोपज परिवहन का कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद मध्यप्रदेश लाया गया, उस समय वत्सला की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को वर्ष 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह हथिनी यहां की पहचान बनी हुई है। 

विशेष गौरतलब बात यह है कि वत्सला के साथ होशंगाबाद से महावत रमजान खान व चारा कटर मनीराम भी आए थे, जो आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी वत्सला की देखरेख कर रहे हैं। महावत रमजान खान बताते हैं कि वत्सला की अधिक उम्र व सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य मुक्त कर दिया गया था। तब से किसी कार्य में उसका उपयोग नहीं किया गया। वत्सला का पाचन तंत्र भी कमजोर हो चुका है, इसलिए उसे विशेष भोजन दिया जाता है। मौजूदा समय वत्सला की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाने से उसे दिखाई भी नहीं देता, फलस्वरुप चारा कटर मनीराम उसकी सूंड अथवा कान पकड़कर जंगल में घुमाने ले जाता है। बिना सहारे के वत्सला ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते हैं।

नर हाथी ने दो बार किया प्राणघातक हमला

वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस. के. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003  और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। डॉ गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (४४ वर्ष) ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।

 अपने नाम को पूरी तरह किया है चरितार्थ 

बेहद शांत, संवेदनशील और वात्सल्य से परिपूर्ण इस हथिनी ने अपने नाम को पूरी तरह से चरितार्थ किया है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता बताते हैं कि जब भी कोई हथिनी यहां बच्चे को जन्म देती है तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका निभाती है। इस हथिनी का जैसा नाम है वैसा उसके द्वारा आचरण भी किया जाता है। लगभग दो वर्ष की उम्र होने पर जब पार्क प्रबंधन द्वारा किसी बच्चे को उसकी मां से पृथक किया जाता है, तो उसे वत्सला के पास छोड़ते हैं। इन बच्चों को वत्सला बड़े प्यार से अपने पास रखती है। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में उनके कार्यकाल में लगभग 15 बच्चों का जन्म हुआ लेकिन एक भी डिलीवरी में उनके द्वारा कोई इंजेक्शन व उपचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वत्सला बखूबी एक दक्ष दाई की तरह बच्चे को जनाने का काम करती है। 

डॉ.गुप्ता बताते हैं कि उनकी जॉइनिंग के समय वर्ष 2000 में जब मैंने हथिनी वत्सला का स्वास्थ्य परीक्षण किया था उस समय हथिनी के पूरे दांत गिर चुके थे। 23 वर्ष पूर्व हथिनी की उम्र 80 से 85 वर्ष के बीच रही होगी। उस हिसाब से अब हथिनी की उम्र 103 से 105 वर्ष होनी चाहिए, जो दुनिया के जीवित हाथियों में सबसे अधिक है।

वत्सला की लंबी सूंड का क्या है रहस्य 

दुनिया की सबसे उम्रदराज कही जाने वाली हथिनी वत्सला की तमाम खूबियों में से एक खूबी उसके शारीरिक बनावट को लेकर भी है। जिससे हाथियों के झुंड में भी वत्सला को आसानी से पहचाना जा सकता है। दरअसल वत्सला की सूंड दूसरे अन्य हांथियों के मुकाबले अधिक लंबी है। सूंड की लंबाई इतनी अधिक है कि वत्सला जब खड़ी होती है तो दो से तीन फिट सूंड को जमीन के ऊपर मोड़ कर रखना पड़ता है। उसकी इस खूबी के कारण कई वन्यजीव प्रेमी वत्सला को पांच पैर वाली हथिनी भी कहते हैं। वत्सला की सूंड इतनी लंबी कैसे हुई, इस बाबत वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता का कहना है कि शुरुआती दिनों में हथिनी वत्सला के द्वारा लकड़ी की बोगियों को उठाने व रखने का कार्य किया जाता रहा है। यही वजह है कि उम्र बढ़ने के साथ ही वत्सला की सूंड भी लंबी हो गई।

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Wednesday, February 1, 2023

पन्ना के जंगलों को गुलजार करने वाली बाघिन टी-1 नहीं रही

  • वर्ष 2009 में जब पन्ना का जंगल शोक गीत में तब्दील हो गया था, उस समय बांधवगढ़ की इस बाघिन ने अप्रैल 2010 में चार शावकों को जन्म देकर हमें जश्न मनाने का अवसर दिया था। पन्ना के जंगलों में बाघों की दहाड़ फिर से लौटाने  वाली 17 वर्ष की हो चुकी इस बाघिन ने पन्ना को अब अलविदा कह दिया है। शून्य से अब तक के सफर में बाघिन टी-1 के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।

बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों के साथ  ( फाइल फोटो ) 

।। अरुण सिंह ।।

पन्ना।  बेहद शर्मीली और शांत स्वभाव वाली बाघिन टी-1 अपने शावकों की निपुणता से देखरेख करने वाली एक अच्छी मां भी थी। लगभग 17 वर्ष की आयु में इस बेहद केयरिंग मां ने पन्ना को अलविदा कह दिया है। यह वही बाघिन है, जिसे 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से पन्ना तब लाया गया था जब यहां के जंगलों से बाघों की दहाड़ गुम हो गई थी। पन्ना का जंगल शोकगीत में तब्दील हो गया था। उस संकट की घड़ी में इस बाघिन ने पन्ना को गुलजार किया और शून्य से शुरू हुआ यह सफर निरंतर आगे बढ़ रहा है। 

बाघिन टी-1 नहीं रही, यह खबर बुधवार 1 फरवरी की सुबह जैसे ही मिली, मन व्यथित हो गया। इस बाघिन ने पन्ना को आबाद करने में जो अभूतपूर्व योगदान दिया व जश्न मनाने के अनेकों अवसर प्रदान किए वे सब परिदृश्य नजर आने लगे। मन में यह सवाल भी उठने लगा कि इस बुजुर्ग बाघिन की मौत आखिर कैसे व किन हालातों में हुई ? दोपहर में क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय से बाघिन की मौत बाबत प्रेस नोट जारी हुआ, जिससे पता चला कि बाघिन की मौत तकरीबन 10 दिन पूर्व हो चुकी थी। गत 31 जनवरी को उसके शव का सिर्फ अवशेष गश्ती दल को मिला है। निश्चित ही यह बहुत ही अफसोस जनक और चिंता की बात है। आखिर बाघिन की मौत होने पर जो रेडियो कॉलर भी पहने हुई थी, उसकी खबर वन अमले को कैसे नहीं लगी ?

पार्क प्रबंधन के मुताबिक बाघिन के शव का अस्थि पंजर मंडला वन परिक्षेत्र के मनौर बीट में जहां पाया गया है, वहीं पास में निष्क्रिय रेडियो कॉलर भी मिला है। प्राप्त अवशेषों के सैंपल जांच हेतु सेंट्रल फॉर वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ, नानाजी देशमुख वेटेरिनरी कॉलेज जबलपुर एवं स्टेट फॉरेंसिक लैबोरेट्री सागर भेजे जा रहे हैं। रिपोर्ट प्राप्त होने पर मृत्यु के कारण स्पष्ट हो सकेंगे। लेकिन सवाल ये उठता है कि जब बाघ का शव मिला ही नहीं सिर्फ अस्थि पंजर मिले हैं, तो मौत की असल वजह कैसे पता चलेगी ? बाघिन की मौत किसी बीमारी, भूख, हार्ट अटैक या अन्य कारणों से हुई यह कैसे ज्ञात होगा ? यदि उसका शव सही सलामत मिलता तो मौत की असल वजह का पता लगाना आसान होता साथ ही पन्ना की इस संस्थापक बाघिन की अंतिम विदाई भी सम्मान पूर्वक संभव हो पाती। लेकिन हमारे हाथ सिर्फ अस्थि पंजर ही लगा, जिससे पता चलता है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का मॉनिटरिंग सिस्टम पहले जैसा नहीं रहा।

इस बात को याद रखना बेहद जरूरी है कि पन्ना को यहां तक पहुंचाने में अनेकों लोगों का अथक श्रम व जीवन का अमूल्य समय लगा है। यह कामयाबी उसी का परिणाम है कि यहां का जंगल बाघों से आबाद है। अब तो पन्ना के बाघ अपने लिए इलाके की खोज में बाहर भी निकल रहे हैं। लेकिन माकूल सुरक्षा इंतजाम व अनुकूल माहौल न मिलने पर असमय काल कवलित भी हो रहे हैं। बीते कुछ माह के दौरान जिस तरह से युवा बाघों की मौतें हुई हैं, उससे साफ जाहिर है कि हालात सामान्य नहीं हैं। बाघों को अनुकूल रहवास व सुरक्षा मुहैया कराना पार्क प्रबंधन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, साथ ही मॉनिटरिंग सिस्टम को भी बेहतर बनाने की जरूरत है।

बाघिन की ऐसी मौत से दुःखी हैं पन्नावासी  



पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने वाली बाघिन टी-1 की ऐसी मौत से पन्नावासी दुःखी हैं। वे चाहते थे कि इस संस्थापक बाघिन को पूरे सम्मान के साथ विदाई मिले लेकिन यह चाहत पूरी नहीं हो सकी। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व ने जानकारी देते हुए बताया कि आज सुबह वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव गुप्ता ने प्राप्त अवशेषों का परीक्षण किया। बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि व अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण के दौरान अवशेषों के पास निष्क्रिय रेडियो कॉलर भी पाया गया है। अवशेषों के सैंपल जांच हेतु भेजे जा रहे हैं, रिपोर्ट मिलने पर मृत्यु के कारण स्पष्ट हो सकेंगे। 

क्षेत्र संचालक ने बताया कि बाघिन टी-1 ने 5 बार में 13 बाघ शावकों को जन्म दिया था। पन्ना टाइगर रिजर्व में यह बाघिन 14 वर्ष तक यहाँ के जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरण करती रही। क्षेत्र संचालक ब्रजेन्द्र झा के मुताबिक वृद्ध हो जाने के कारण बाघिन टाइगर रिजर्व के परिधि में विचरण कर रही थी। शिकार न कर पाने के कारण दूसरे बाघों के शिकार को खाकर अपना पेट भर रही थी। उन्होंने कहा कि बाघिन की मौत पर समस्त वन अमला दुःखी है, हम हृदय से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं। 

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