- तकरीबन 105 वर्ष की हो चुकी दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी वत्सला मध्यप्रदेश के पन्ना टाइगर रिजर्व की शान है। दुर्भाग्य से इस हथिनी के जन्म का कोई रिकॉर्ड न होने के कारण इसका नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में अभी तक दर्ज नहीं हो सका। लेकिन कार्बन डेटिंग से वत्सला की उम्र का सही आकलन हो सकता है। फिर भी सवाल यह है कि क्या जीते जी वत्सला को दुनिया की सबसे बुजुर्ग हथिनी का खिताब हासिल हो सकेगा ?
पन्ना टाइगर रिज़र्व की धरोहर बन चुकी दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी वत्सला। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना (मध्यप्रदेश)। दुनिया की सबसे उम्र दराज हथिनी वत्सला पिछले दो दशक से पर्यटकों और वन्य जीव प्रेमियों के लिए आकर्षक का केंद्र बनी हुई है। पन्ना टाइगर रिजर्व की धरोहर बन चुकी इस हथिनी की उम्र तकरीबन 105 वर्ष बताई जा रही है, जबकि दुनिया के सबसे अधिक उम्र वाले हाथी लिन वांग (ताइवान) की 86 वर्ष की आयु में 26 फरवरी 2008 को मौत हो चुकी है। इस लिहाज से पन्ना टाइगर रिजर्व की हथिनी वत्सला मौजूदा समय पूरी दुनिया में सबसे अधिक उम्र की हाथी है, बावजूद इसके अभी तक वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज नहीं हो सका है। इसकी वजह हथिनी वत्सला का जन्म रिकॉर्ड उपलब्ध न होना है।
हथिनी वत्सला को दो बार मौत के मुंह से बचाने वाले पन्ना टाइगर रिजर्व के वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव कुमार गुप्ता बताते हैं कि हथिनी वत्सला की सही उम्र का पता लगाने का अब एक ही रास्ता है कि उसके एकमात्र उपलब्ध मोलर टीथ (दाढ़) का कार्बन डेटिंग कराया जाए। इस पद्धति से वत्सला की आयु का पता चल सकता है। डॉक्टर गुप्ता बताते हैं कि जंगली हाथी की औसत उम्र 60 से 70 साल होती है, 70 वर्ष की आयु तक हाथी के दांत गिर जाते हैं। दो दशक पूर्व जब पहली बार मैंने वत्सला को देखा था, उस समय इसके दांत गिर चुके थे। हथिनी वत्सला की पूरी तरह घिस चुकी मोलर टीथ (दाढ़) भी पिछले माह गिर गई है जो हमारे पास है। यह वत्सला का अंतिम दांत था, यदि इसका कार्बन डेटिंग कराया जाए तो हथिनी की उम्र का पता चल सकता है। डॉक्टर गुप्ता बताते हैं कि जीते जी वत्सला का नाम गिनीज बुक ऑफ वर्ल्ड रिकॉर्ड में दर्ज हो, इसके लिए यही एकमात्र रास्ता है कि मोलर टीथ का कार्बन डेटिंग कराया जाए।
आखिर क्या होता है कार्बन डेटिंग ?
हथिनी वत्सला का मोलर टीथ (दाढ़) दिखाते हुए वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता। |
कार्बन डेटिंग जिसे रेडियो कार्बन डेटिंग भी कहा जाता है, इसका उपयोग लकड़ी, हड्डी, चमड़ी, बाल और खून के अवशेष की उम्र अथवा कितनी पुरानी है इस बात का पता लगाने में किया जाता है। इस तकनीक की खोज वर्ष 1949 में शिकागो यूनिवर्सिटी के साइंटिस्ट विलियर्ड फ्रैंक लिबी और उनके साथियों ने की थी। उनकी इस उपलब्धि के लिए उन्हें 1960 में रसायन का नोबेल पुरस्कार भी दिया गया था। डॉक्टर संजीव गुप्ता बताते हैं कि मोलर टीथ भी एक प्रकार की हड्डी है, जो जन्म के समय की होती है। मोलर टीथ की कार्बन डेटिंग से वत्सला की सही उम्र का आकलन किया जा सकता है, जिसकी मान्यता भी होगी। हमने इस बाबत देश की दो प्रमुख प्रयोगशालाओं से संपर्क भी किया है।
उम्रदराज हथिनी वत्सला की क्या है कहानी
शतायु पार कर चुकी हथिनी वत्सला की कहानी बेहद दिलचस्प तथा रहस्य व रोमांच से परिपूर्ण है। वत्सला मूलतः केरल के नीलांबुर फॉरेस्ट डिवीजन में पली-बढ़ी है। इसका प्रारंभिक जीवन नीलांबुर वन मंडल (केरल) में वनोपज परिवहन का कार्य करते हुए व्यतीत हुआ। इस हथिनी को 1971 में केरल से होशंगाबाद मध्यप्रदेश लाया गया, उस समय वत्सला की उम्र 50 वर्ष से अधिक थी। वत्सला को वर्ष 1993 में होशंगाबाद के बोरी अभ्यारण्य से पन्ना राष्ट्रीय उद्यान लाया गया, तभी से यह हथिनी यहां की पहचान बनी हुई है।
विशेष गौरतलब बात यह है कि वत्सला के साथ होशंगाबाद से महावत रमजान खान व चारा कटर मनीराम भी आए थे, जो आज भी पन्ना टाइगर रिजर्व में हथिनी वत्सला की देखरेख कर रहे हैं। महावत रमजान खान बताते हैं कि वत्सला की अधिक उम्र व सेहत को देखते हुए वर्ष 2003 में उसे रिटायर कर कार्य मुक्त कर दिया गया था। तब से किसी कार्य में उसका उपयोग नहीं किया गया। वत्सला का पाचन तंत्र भी कमजोर हो चुका है, इसलिए उसे विशेष भोजन दिया जाता है। मौजूदा समय वत्सला की दोनों आंखों में मोतियाबिंद हो जाने से उसे दिखाई भी नहीं देता, फलस्वरुप चारा कटर मनीराम उसकी सूंड अथवा कान पकड़कर जंगल में घुमाने ले जाता है। बिना सहारे के वत्सला ज्यादा दूर तक नहीं चल सकती। हाथियों के कुनबे में शामिल छोटे बच्चे भी घूमने टहलने में वत्सला की पूरी मदद करते हैं।
नर हाथी ने दो बार किया प्राणघातक हमला
वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ एस. के. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व के ही नर हाथी रामबहादुर ने वर्ष 2003 और 2008 में दो बार प्राणघातक हमला कर वत्सला को बुरी तरह से घायल कर दिया था। डॉ गुप्ता ने बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के मंडला परिक्षेत्र स्थित जूड़ी हाथी कैंप में नर हाथी रामबहादुर (४४ वर्ष) ने मस्त के दौरान वत्सला के पेट पर जब हमला किया तो उसके दांत पेट में घुस गये। हाथी ने झटके के साथ सिर को ऊपर किया, जिससे वत्सला का पेट फट गया और उसकी आंतें बाहर निकल आईं। डॉ. गुप्ता ने 200 टांके 6 घंटे में लगाए तथा पूरे 9 महीने तक वत्सला का इलाज किया। समुचित देखरेख व बेहतर इलाज से अगस्त 2004 में वत्सला का घाव भर गया। लेकिन फरवरी 2008 में नर हाथी रामबहादुर ने दुबारा अपने टस्क (दाँत) से वत्सला हथिनी पर हमला करके गहरा घाव कर दिया, जो 6 माह तक चले उपचार से ठीक हुआ।
अपने नाम को पूरी तरह किया है चरितार्थ
बेहद शांत, संवेदनशील और वात्सल्य से परिपूर्ण इस हथिनी ने अपने नाम को पूरी तरह से चरितार्थ किया है। वन्य प्राणी चिकित्सक डॉ संजीव गुप्ता बताते हैं कि जब भी कोई हथिनी यहां बच्चे को जन्म देती है तो वत्सला जन्म के समय एक कुशल दाई की भूमिका निभाती है। इस हथिनी का जैसा नाम है वैसा उसके द्वारा आचरण भी किया जाता है। लगभग दो वर्ष की उम्र होने पर जब पार्क प्रबंधन द्वारा किसी बच्चे को उसकी मां से पृथक किया जाता है, तो उसे वत्सला के पास छोड़ते हैं। इन बच्चों को वत्सला बड़े प्यार से अपने पास रखती है। डॉ. गुप्ता बताते हैं कि पन्ना टाइगर रिजर्व में उनके कार्यकाल में लगभग 15 बच्चों का जन्म हुआ लेकिन एक भी डिलीवरी में उनके द्वारा कोई इंजेक्शन व उपचार करने की आवश्यकता नहीं पड़ी। वत्सला बखूबी एक दक्ष दाई की तरह बच्चे को जनाने का काम करती है।
डॉ.गुप्ता बताते हैं कि उनकी जॉइनिंग के समय वर्ष 2000 में जब मैंने हथिनी वत्सला का स्वास्थ्य परीक्षण किया था उस समय हथिनी के पूरे दांत गिर चुके थे। 23 वर्ष पूर्व हथिनी की उम्र 80 से 85 वर्ष के बीच रही होगी। उस हिसाब से अब हथिनी की उम्र 103 से 105 वर्ष होनी चाहिए, जो दुनिया के जीवित हाथियों में सबसे अधिक है।
वत्सला की लंबी सूंड का क्या है रहस्य
दुनिया की सबसे उम्रदराज कही जाने वाली हथिनी वत्सला की तमाम खूबियों में से एक खूबी उसके शारीरिक बनावट को लेकर भी है। जिससे हाथियों के झुंड में भी वत्सला को आसानी से पहचाना जा सकता है। दरअसल वत्सला की सूंड दूसरे अन्य हांथियों के मुकाबले अधिक लंबी है। सूंड की लंबाई इतनी अधिक है कि वत्सला जब खड़ी होती है तो दो से तीन फिट सूंड को जमीन के ऊपर मोड़ कर रखना पड़ता है। उसकी इस खूबी के कारण कई वन्यजीव प्रेमी वत्सला को पांच पैर वाली हथिनी भी कहते हैं। वत्सला की सूंड इतनी लंबी कैसे हुई, इस बाबत वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव कुमार गुप्ता का कहना है कि शुरुआती दिनों में हथिनी वत्सला के द्वारा लकड़ी की बोगियों को उठाने व रखने का कार्य किया जाता रहा है। यही वजह है कि उम्र बढ़ने के साथ ही वत्सला की सूंड भी लंबी हो गई।
00000
No comments:
Post a Comment