- वर्ष 2009 में जब पन्ना का जंगल शोक गीत में तब्दील हो गया था, उस समय बांधवगढ़ की इस बाघिन ने अप्रैल 2010 में चार शावकों को जन्म देकर हमें जश्न मनाने का अवसर दिया था। पन्ना के जंगलों में बाघों की दहाड़ फिर से लौटाने वाली 17 वर्ष की हो चुकी इस बाघिन ने पन्ना को अब अलविदा कह दिया है। शून्य से अब तक के सफर में बाघिन टी-1 के योगदान को हमेशा याद किया जाएगा।
बाघिन टी-1 अपने नन्हे शावकों के साथ ( फाइल फोटो ) |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। बेहद शर्मीली और शांत स्वभाव वाली बाघिन टी-1 अपने शावकों की निपुणता से देखरेख करने वाली एक अच्छी मां भी थी। लगभग 17 वर्ष की आयु में इस बेहद केयरिंग मां ने पन्ना को अलविदा कह दिया है। यह वही बाघिन है, जिसे 4 मार्च 2009 को बांधवगढ़ से पन्ना तब लाया गया था जब यहां के जंगलों से बाघों की दहाड़ गुम हो गई थी। पन्ना का जंगल शोकगीत में तब्दील हो गया था। उस संकट की घड़ी में इस बाघिन ने पन्ना को गुलजार किया और शून्य से शुरू हुआ यह सफर निरंतर आगे बढ़ रहा है।
बाघिन टी-1 नहीं रही, यह खबर बुधवार 1 फरवरी की सुबह जैसे ही मिली, मन व्यथित हो गया। इस बाघिन ने पन्ना को आबाद करने में जो अभूतपूर्व योगदान दिया व जश्न मनाने के अनेकों अवसर प्रदान किए वे सब परिदृश्य नजर आने लगे। मन में यह सवाल भी उठने लगा कि इस बुजुर्ग बाघिन की मौत आखिर कैसे व किन हालातों में हुई ? दोपहर में क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व कार्यालय से बाघिन की मौत बाबत प्रेस नोट जारी हुआ, जिससे पता चला कि बाघिन की मौत तकरीबन 10 दिन पूर्व हो चुकी थी। गत 31 जनवरी को उसके शव का सिर्फ अवशेष गश्ती दल को मिला है। निश्चित ही यह बहुत ही अफसोस जनक और चिंता की बात है। आखिर बाघिन की मौत होने पर जो रेडियो कॉलर भी पहने हुई थी, उसकी खबर वन अमले को कैसे नहीं लगी ?
पार्क प्रबंधन के मुताबिक बाघिन के शव का अस्थि पंजर मंडला वन परिक्षेत्र के मनौर बीट में जहां पाया गया है, वहीं पास में निष्क्रिय रेडियो कॉलर भी मिला है। प्राप्त अवशेषों के सैंपल जांच हेतु सेंट्रल फॉर वाइल्डलाइफ फॉरेंसिक एंड हेल्थ, नानाजी देशमुख वेटेरिनरी कॉलेज जबलपुर एवं स्टेट फॉरेंसिक लैबोरेट्री सागर भेजे जा रहे हैं। रिपोर्ट प्राप्त होने पर मृत्यु के कारण स्पष्ट हो सकेंगे। लेकिन सवाल ये उठता है कि जब बाघ का शव मिला ही नहीं सिर्फ अस्थि पंजर मिले हैं, तो मौत की असल वजह कैसे पता चलेगी ? बाघिन की मौत किसी बीमारी, भूख, हार्ट अटैक या अन्य कारणों से हुई यह कैसे ज्ञात होगा ? यदि उसका शव सही सलामत मिलता तो मौत की असल वजह का पता लगाना आसान होता साथ ही पन्ना की इस संस्थापक बाघिन की अंतिम विदाई भी सम्मान पूर्वक संभव हो पाती। लेकिन हमारे हाथ सिर्फ अस्थि पंजर ही लगा, जिससे पता चलता है कि पन्ना टाइगर रिजर्व का मॉनिटरिंग सिस्टम पहले जैसा नहीं रहा।
इस बात को याद रखना बेहद जरूरी है कि पन्ना को यहां तक पहुंचाने में अनेकों लोगों का अथक श्रम व जीवन का अमूल्य समय लगा है। यह कामयाबी उसी का परिणाम है कि यहां का जंगल बाघों से आबाद है। अब तो पन्ना के बाघ अपने लिए इलाके की खोज में बाहर भी निकल रहे हैं। लेकिन माकूल सुरक्षा इंतजाम व अनुकूल माहौल न मिलने पर असमय काल कवलित भी हो रहे हैं। बीते कुछ माह के दौरान जिस तरह से युवा बाघों की मौतें हुई हैं, उससे साफ जाहिर है कि हालात सामान्य नहीं हैं। बाघों को अनुकूल रहवास व सुरक्षा मुहैया कराना पार्क प्रबंधन की पहली प्राथमिकता होनी चाहिए, साथ ही मॉनिटरिंग सिस्टम को भी बेहतर बनाने की जरूरत है।
बाघिन की ऐसी मौत से दुःखी हैं पन्नावासी
पन्ना बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारिक सफलता दिलाने वाली बाघिन टी-1 की ऐसी मौत से पन्नावासी दुःखी हैं। वे चाहते थे कि इस संस्थापक बाघिन को पूरे सम्मान के साथ विदाई मिले लेकिन यह चाहत पूरी नहीं हो सकी। क्षेत्र संचालक पन्ना टाइगर रिजर्व ने जानकारी देते हुए बताया कि आज सुबह वन्य प्राणी चिकित्सक डॉक्टर संजीव गुप्ता ने प्राप्त अवशेषों का परीक्षण किया। बाघ संरक्षण प्राधिकरण के प्रतिनिधि व अधिकारियों की मौजूदगी में परीक्षण के दौरान अवशेषों के पास निष्क्रिय रेडियो कॉलर भी पाया गया है। अवशेषों के सैंपल जांच हेतु भेजे जा रहे हैं, रिपोर्ट मिलने पर मृत्यु के कारण स्पष्ट हो सकेंगे।
क्षेत्र संचालक ने बताया कि बाघिन टी-1 ने 5 बार में 13 बाघ शावकों को जन्म दिया था। पन्ना टाइगर रिजर्व में यह बाघिन 14 वर्ष तक यहाँ के जंगलों में स्वच्छंद रूप से विचरण करती रही। क्षेत्र संचालक ब्रजेन्द्र झा के मुताबिक वृद्ध हो जाने के कारण बाघिन टाइगर रिजर्व के परिधि में विचरण कर रही थी। शिकार न कर पाने के कारण दूसरे बाघों के शिकार को खाकर अपना पेट भर रही थी। उन्होंने कहा कि बाघिन की मौत पर समस्त वन अमला दुःखी है, हम हृदय से अपनी श्रद्धांजलि अर्पित करते हैं।
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*Came to know T1 of Panna Reintroduction (First tigress from Bandhavgarh reintroduced at Panna) passed away. She must be around 14-15 years. What a magnanimous gentle lady. Very peaceful and coolest of the tigresses I had witnessed. When her daughters grown up she shared her territory to them and moved to the periphery where she lived her last phase of life gracefully. Earlier she shared her territory with T4 also. She was one who brought happiness when the Team Panna and MP Forest department were in despair. Her role in repopulating Panna shall be always remembered. My tributes to her*
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