आज हम लोग अपनी जैव विविधता वाटिका घूमने गए, जहाँ पेड़ पौधों की सौ से अधिक प्रजातियां लगी हुई हैं। वहां अगर एक-एक पौधा आम,जामुन, महुआ, अमरूद, आंवला जैसे बाग वाले पौधों के हैं, तो एक-एक पौधा हर्र, बहेरा, कोशम, कैमा, दहिमन,खमार, कुल्लू के जंगल वाले भी हैं।
कचनार,कैथा,करंज,मरोड़ फल में जहां नए पत्ते आ गये हैं, वही कुल्लू,ओदार,चिल्ला अभी पात विहीन हैं। कुछ पौधे तो ऊंचाई में मुझसे भी बड़े हो गए हैं। पर कैथा, कहुआ, केवड़ा, इमली, बेल और महुआ अभी एक हाथ के भी नहीं हुए। सिंदूरी मरोड़ फल शहतूत, दो वर्ष में ही युवा हो जहां फल फूल देने लगे हैं, वहीं अन्य पेड़ो का अभी बहुत दिन इंतजार करना पड़ेगा।
फल फूल आते रहेंगे जब आना होगा ? क्यो वह सभी अलग-अलग कुदरत के नियम में बंधे हैं । यू भी बाग वाटिका एक पीढ़ी लगाती है लेकिन उससे अगली पीढियां ही लाभान्वित होती हैं। आगे हम रहें न रहें पर अभी हमें इसका फख्र जरूर है कि हम लोगों ने जो वाटिका तैयार कर दी है, वह अपने जैव विविधता प्रबंधन समिति की अवधारणा के अनुरूप ही है।
आज जब हम जैव विविधता प्रवंधन समिति के सदस्य गण अपनी इस बाटिका में घूमने आते हैं, तो यह अवश्य लगता है कि हमने जीवन मे एक बेहतर काम किया है। क्योकि हमने इनके सिचाई के लिए सब मर्सिवल पम्प लगाए। चारों ओर सुरक्षा के लिए खम्भे और जालियां तथा गेट लगवाया, दो वर्ष तक निराई गुड़ाई तथा सिचाई की ब्यवस्था की। अब आगामी जुलाई से यह समस्त पौधे दो वर्ष के हो जाएंगे। तब हम इन्हें ग्राम पंचायत को हस्तगत कर समाज को सौप अपनी जिम्मेदारी से अलग हो जायेंगे।
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