बेशकीमती हीरों के लिए प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय पर संकट के बादल मंडरा रहे हैं। शासन की अनदेखी और उपेक्षा के चलते पन्ना स्थित हीरा कार्यालय मौजूदा समय महज एक कमरे में संचालित हो रहा है। इटवांखास व पहाड़ीखेरा में संचालित होने वाले उप कार्यालय भी बंद हो चुके हैं। पिछले कई वर्षों से इस कार्यालय में कर्मचारियों के रिटायर होने पर उनकी जगह किसी की पदस्थापना नहीं हुई, फलस्वरूप इस कार्यालय के ज्यादातर पद खाली पड़े हैं। आलम यह है कि देश के इस इकलौते हीरा कार्यालय का वजूद सिर्फ नाम के लिए रह गया है।
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। हर इलाके की अपनी खूबियां और पहचान होती है। बुंदेलखंड क्षेत्र के पन्ना जिले की पहचान हीरा की खदानों, खूबसूरत हरे-भरे जंगलों तथा यहां विचरण करने वाले वन्य प्राणियों विशेषकर बाघ, जंगल के बीच से प्रवाहित होने वाली जीवनदायी केन नदी एवं यहां स्थित प्राचीन भव्य मंदिरों से है। लेकिन इन अनगिनत खूबियों का अपेक्षित लाभ पन्ना जिलावासियों को नहीं मिल सका है। अब तो हालात ऐसे बन रहे हैं कि इस जिले की पहचान पर ही संकट के बादल मंडराने लगे हैं। हीरा खदानें, नदी, जंगल व बाघ सभी पर संकट मंडरा रहा है। एशिया महाद्वीप की इकलौती मैकेनाइज्ड एनएमडीसी खदान विगत 1 जनवरी 2021 से जहाँ बंद है, वहीं जिला मुख्यालय पन्ना स्थित हीरा कार्यालय भी बंद होने की कगार पर है।
उल्लेखनीय है कि पूर्व में पन्ना स्थित हीरा कार्यालय में जहाँ हीरा अधिकारी की पदस्थापना होती थी वहीं अब खनिज अधिकारी के पास हीरा कार्यालय का प्रभार है। नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा अधिकारी का चेंबर तक नहीं है, हीरा कार्यालय एक छोटे से कमरे में संचालित हो रहा है। हीरा पारखी अनुपम सिंह ने बताया कि पहले पन्ना जिला मुख्यालय के साथ-साथ इटवांखास व पहाड़ीखेरा में उप कार्यालय हुआ करते थे जो अब बंद हो चुके हैं। उस समय उथली हीरा खदानों की निगरानी व खदानों से प्राप्त होने वाले हीरों को जमा कराने के लिए तीन दर्जन से भी अधिक सिपाही और हीरा इंस्पेक्टर पदस्थ थे। लेकिन अब सिर्फ दो सिपाही बचे हैं जो अपने रिटायरमेंट की राह देख रहे हैं। हीरा कार्यालय की एकमात्र हीरा इंस्पेक्टर नूतन जैन वर्षों से अपनी सेवाएं खनिज विभाग में दे रही हैं।
जिला मुख्यालय पन्ना स्थित हीरा कार्यालय जो महज एक छोटे से कमरे में संचालित है। |
गौरतलब है कि पन्ना स्थित देश के इकलौते हीरा कार्यालय में हीरा अधिकारी सहित हीरा पारखी एक सीनियर व तीन जूनियर, इंस्पेक्टर के तीन पद, ऑफिस सुपरिटेंडेंट एक पद, लिपिक चार पद, हवलदार तीन पद, सिपाही तीस पद, मेठ तीन पद, क्षेत्रीय सहायक एक पद, ड्राइवर एक पद, चौकीदार दो पद तथा भृत्य के दो पद स्वीकृत हैं। लेकिन मौजूदा समय इस ऑफिस में हीरा पारखी सहित कुल पांच कर्मचारी बचे हैं जो किसी तरह एक कमरे में सिमट चुके हीरा कार्यालय को चला रहे हैं। पूर्व में हीरा कार्यालय महेन्द्र भवन में संचालित होता था जहाँ हीरा अधिकारी का पृथक से चेंबर था वहीं ऑफिस के लिए भी पर्याप्त जगह थी। लेकिन नवीन कलेक्ट्रेट भवन में हीरा कार्यालय के लिए महज एक छोटा सा कमरा आवंटित हुआ है जिसमें बैठने तक को जगह नहीं है। हालात ये हैं कि हीरा कार्यालय का आधे से भी अधिक सामान महेन्द्र भवन स्थित पुराने ऑफिस में पड़ा हुआ है।
लगभग 70 किमी. क्षेत्र में है हीरा धारित पट्टी का विस्तार
पन्ना जिले में हीरा धारित पट्टी का विस्तार लगभग 70 किलोमीटर क्षेत्र में है, जो मझगवां से लेकर पहाड़ीखेरा तक फैली हुई है। हीरे के प्राथमिक स्रोतों में मझगवां किंबरलाइट पाइप एवं हिनौता किंबरलाइट पाइप पन्ना जिले में ही स्थित है। यह हीरा उत्पादन का प्राथमिक स्रोत है जो पन्ना शहर के दक्षिण-पश्चिम में 20 किलोमीटर की दूरी पर है। यहां अत्याधुनिक संयंत्र के माध्यम से हीरों के उत्खनन का कार्य सार्वजनिक क्षेत्र के प्रतिष्ठान राष्ट्रीय खनिज विकास निगम (एनएमडीसी) द्वारा संचालित किया जाता रहा है। मौजूदा समय उत्खनन हेतु पर्यावरण की अनुमति अवधि समाप्त हो जाने के कारण यह खदान 1 जनवरी 21 से बंद है। एनएमडीसी हीरा खदान बंद होने से हीरों के उत्पादन का ग्राफ जहाँ नीचे जा पहुंचा है वहीं शासन को मिलने वाली रायल्टी में भी कमी आई है। यदि निकट भविष्य में एनएमडीसी हीरा खदान चालू नहीं हुई और हीरा कार्यालय की हालत नहीं सुधरी तो हीरों से जो पन्ना की पहचान थी वह भी ख़त्म हो सकती है। एनएमडीसी खदान में वर्ष 1968 से लेकर अब तक लगभग 13 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन किया जा चुका है। इस खदान में अभी भी 8.5 लाख कैरेट हीरों का उत्पादन होना शेष है। ऐसी स्थिति में खदान संचालन की अनुमति यदि नहीं मिलती तो अरबों रुपए कीमत के हीरे जमीन के भीतर ही दफन रह जाएंगे।
पन्ना जिले की मझगंवा स्थित एनएमडीसी हीरा खदान जो विगत 28 माह से बंद है। |
परियोजना के बंद होने से यहां सैकड़ों कर्मचारी जहां चिंतित हैं, वहीं इस परियोजना के आसपास स्थित ग्रामों के निवासी जिन्हें परियोजना से शिक्षा, स्वास्थ्य, पेयजल सहित अन्य बुनियादी सुविधाएं मिलती हैं, वे भी परेशान हैं। गौरतलब है कि जंगल व खनिज संपदा से समृद्ध पन्ना जिले में ऐसी कोई बड़ी परियोजना व उद्योग स्थापित नहीं हुए जिनसे इस पिछड़े जिले के विकास को गति मिलती। यहां पर सिर्फ एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना है, जिससे पन्ना की पहचान है। इस परियोजना के कारण ही पन्ना शहर को देश व दुनिया में डायमंड सिटी के रूप में जाना जाता है। यदि परियोजना को पर्यावरण महकमे से उत्खनन की अनुमति नहीं मिली और परियोजना स्थाई रूप से बंद हो जाती है तो हीरों की रायल्टी के रूप में शासन को प्रतिवर्ष मिलने वाले करोड़ों रुपए के राजस्व की जहां हानि होगी, वहीं डायमंड सिटी के रूप में पन्ना की जो पहचान है उस पर भी ग्रहण लग जाएगा।
सिर्फ दो क्षेत्र में दिए जा रहे हीरा खदानों के पट्टे
पटी खदान क्षेत्र में हीरा धारित चाल की धुलाई करते ग्रामीण। |
पन्ना स्थित हीरा कार्यालय से मिली जानकारी के मुताबिक वर्तमान में सिर्फ दो राजस्व क्षेत्र हैं जहाँ हीरा खदानों के पट्टे जारी किये जा रहे हैं इनमें पटी (कल्याणपुर) व सकरिया चौपरा हीरा खदान क्षेत्र हैं। हीरा कार्यालय से सेवा निवृत्त हो चुके लिपिक सूरजदीन सिंह ने बताया कि वर्ष 1981 में जब वे सेवा पर आये उस समय सभी पद भरे थे, लेकिन अब गिनती के चार-पांच लोग ही बचे हैं। सूरजदीन बताते हैं हैं कि पहले जिन क्षेत्रों में हीरा की खदाने संचालित होती थी उनमें पन्ना सर्किल, इटवा सर्किल तथा पहाड़ीखेरा सर्किल की खदानें हैं। पन्ना सर्किल के अंतर्गत महुआटोला, मनौर, महलाने का सेहा, सकरिया, खिन्नी घाट, कमलाबाई, भुतियाऊ, नरेंद्रपुर, पुखरी, हर्रा चौकी, बरम की कुईयां, दहलान चौकी, पटी, जनकपुर, सरकोहा, मोहार, रानीपुर, रानीपुर नाला तथा राधापुर खदान क्षेत्र हैं। जबकि इटवा सर्किल में बाबूपुर, किटहा, पाली, बगीचा, हजारा, हजारा मुढ्ढा, मडफा, भरका, रमखिरिया व गोंदी खदान क्षेत्र हैं। पहाड़ीखेरा सर्किल में बरहों कुदकपुर, सेहा सालीकपुर, महतेन तथा सिरसा द्वारा क्षेत्र में खदानों के पट्टे जारी किए जाते थे। प्रभारी हीरा अधिकारी रवि पटेल के मुताबिक अब तक तकरीबन आधा सैकड़ा हीरा खदानों के पट्टे जारी हुए हैं।
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