Sunday, May 21, 2023

पन्ना की पुकार : हीरे, मंदिर और जंगल, अब चाहिए "मंगल" !

भव्य प्राचीन मंदिरों और हीरा की खदानों के लिये प्रसिद्ध मध्यप्रदेश के पन्ना जिले में प्रकृति ने सृजन के विविध रूपों को जिस तरह से प्रकट किया है वह  मंत्रमुग्ध कर देने वाला है। पहली बार जो कोई भी यहाँ आता है, इस रत्नगर्भा धरती के अतुलनीय सौन्दर्य को निहारकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। लेकिन प्रकृति के अनुपम सौगातों का पन्ना के विकास की दिशा में रचनात्मक उपयोग नहीं हो सका। पर्यटन विकास की असीम संभावनायें मौजूद होने के बावजूद अभी तक यह जिला पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र नहीं बन सका है। 



।। अरुण सिंह ।।   

पन्ना। यहां प्राचीन भव्य मन्दिरों के अलावा ऐतिहासिक महत्व के स्थलों, खूबसूरत जल प्रपातों व प्राकृतिक सौन्दर्य से परिपूर्ण मनोरम स्थलों की भरमार है। इनका समुचित ढंग से प्रचार-प्रसार न होने के कारण देशी व विदेशी पर्यटक इस जिले की खूबियों से अनभिज्ञ हैं। यही वजह है कि पर्यटकों को आकर्षित  करने की खूबियों के बावजूद पन्ना पर्यटन स्थल के रूप में विकसित नहीं हो सका। लेकिन अब प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने विशेष रूचि प्रदर्शित करते हुए जिस तरह से बुंदेल केसरी महाराजा छत्रसाल की जयंती को गौरव दिवस के रूप में मनाने की अभिनव पहल की है उससे मन्दिरों के शहर पन्ना को पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किये जाने की उम्मीद जागी है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिला विन्ध्य की ऊँची-नीची पर्वत श्रंखलाओं पर बसा हुआ हैै। जिले की सीमायें हरी-भरी, मनमोहक वादियों से आच्छादित हैं। सीमा में प्रवेश होते ही कलकल निनाद करती नदियां, झरझर के स्वर बिखेरते प्रपात एवं पक्षियों की चहचहाट सप्तस्वर लहरियां बिखेर देती हैं। तब ऐसा प्रतीत होता है कि मार्गों के दोनों तरफ वृक्षों की टहनियां हवा में लहराकर आगंतुकों का स्वागत कर रही हैं। यहां के मन्दिर लोगों को अनायाश ही अपनी ओर खींच लेते हैं जो भी मन्दिर परिसर में पहुँच जाता है वह इन मन्दिरों की स्थापत्य कला व भव्यता को देखकर मंत्रमुग्ध हो जाता है। इतना ही नहीं इस जिले मेें अनेकानेक प्राकृतिक स्थल, धार्मिक स्थल, ऐतिहासिक इमारतें और विश्व प्रसिद्ध हीरा की खदानें स्थित हैं। यहां की प्रकृति और इमारतें सांस्कृतिक विरासत को समेटे हुये हैं। वनवास के दौरान मर्यादा पुरूषोत्तम भगवान श्री राम पन्ना जिले से होकर गुजरे थे, जिसके चिह्न यहां आज भी मौजूद हैं। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 16 किमी दूर सुतीक्षण आश्रम तथा सलेहा के निकट स्थित अगस्त ऋषि आश्रम भगवान राम के वन पथ गमन की यादों को अपने जेहन में आज भी संजोये हुये है। धार्मिक  महत्व के इन प्राचीन स्थलों का यदि योजनाबद्ध तरीके से विकास किया जाये तो ये स्थल पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं। इस पुण्य भूमि में अनेकों ऋषि मुनियों ने भी अपने जीवन का लम्बा समय बिताया है, जिसके चलते इस भूमि को यदि तपोभूमि कहा जाये तो कोई अतिश्योक्ति नहीं है।

पन्ना में मानसून पर्यटन के विकास की विपुल संभावनाएं



प्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने पूर्व में पन्ना प्रवास के दौरान यह घोषणा की थी कि पन्ना शहर के आस-पास स्थित प्राकृतिक मनोरम स्थलों व जल प्रपातों का विकास कर यहां मानसून पर्यटन को बढ़ावा देने के लिये प्रयास किये जायेंगे ताकि बारिश के मौसम में जब पन्ना टाईगर रिजर्व के गेट पर्यटकों के भ्रमण हेतु बंद हो जायें, उस समय भी पर्यटक यहां आकर प्रकृति के अद्भुत नजारों का आनन्द ले सकें। इससे यहां पर रोजगार के नये अवसरों का जहां सृजन होगा, वहीं मन्दिरों के शहर पन्ना को एक खूबसूरत पर्यटन स्थल के रूप में विकसित किया जा सकेगा। मुख्यमंत्री जी की इस सोच व घोषणा की पन्नावासियों ने सराहना की थी, लेकिन अभी तक इस दिशा में कोई सार्थक पहल व प्रयास नहीं हुये। मालुम हो कि पन्ना शहर के आस-पास 10 किमी के दायरे में प्राकृतिक व ऐतिहासिक महत्व के ऐसे अनेकों स्थल व जल प्रपात हैं, जिनको यदि पर्यटकों की दृष्टि से विकसित कर दिया जाये तो ये स्थल आकर्षण का केन्द्र बन सकते हैं।

जिला मुख्यालय पन्ना से 10 किमी. की दूरी पर सड़क मार्ग के निकट स्थित लखनपुर सेहा का घना जंगल तथा ऊँची मीनार जैसा नजर आने वाला यहां का मशरूम राक देखने जैसा है। गौरतलब है कि पन्ना जिले को प्रकृति ने अनुपम सौगातों से नवाजा है। यहां के हरे-भरे घने जंगल, अनूठे जल प्रपात व गहरे सेहे देखकर लोग हैरत में पड़ जाते हैं कि यहां इतना सब है फिर भी यह इलाका उपेक्षित और पिछड़ा क्यों है? पन्ना शहर में जहां प्राचीन भव्य व विशाल मन्दिर हैं वहीं इस जिले में ऐतिहासिक महत्व के स्थलों की भी भरमार है। प्रकृति तो जैसे यहां अपने बेहद सुन्दर रूप में प्रकट हुई है। यदि इन सभी खूबियों का सही ढंग से क्षेत्र के विकास व जन कल्याण में रचनात्मक उपयोग हो तो इस पूरे इलाके का कायाकल्प हो सकता है। 

पन्ना शहर के बेहद निकट स्थित लखनपुर का सेहा एक ऐसा स्थान है जो इस जिले को पर्यटन के क्षेत्र में सम्मानजनक स्थान दिलाने की क्षमता रखता है। लखनपुर सेहा के अलावा पन्ना शहर के ही निकट गौर का चौपड़ा, खजरी कुड़ार गाँव के पास चरही, कौआ सेहा, बृहस्पति कुण्ड सहित अनेकों स्थल हैं जो उपेक्षित पड़े हैं। यदि इन मनोरम स्थलों को विकसित किया जाकर सही तरीके से प्रस्तुत किया जाये तो पर्यटक यहां खिंचे चले आयेंगे। इन सभी स्थलों को चिह्नित करते हुये वहां तक सुगम मार्ग व बुनियादी सुविधायें यदि उपलब्ध करा दी जायें तो ये स्थल बारिश के मौसम में पर्यटकों से गुलजार हो सकते हैं।

 जर्जर हो चुकी धरोहरें बदल सकती हैं पन्ना जिले की तकदीर



सदियों पुराने जर्जर और बदहाल हो  चुके किले पन्ना जिले की तस्वीर और तकदीर दोनों बदल सकते  हैं। यदि इन प्राचीन धरोहरों का सही  ढंग से कायाकल्प कराकर सुनियोजित विकास किया जाए तो ये देशी व विदेशी पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकते  हैं। इस जिले में भव्य और अनूठे मन्दिरों की पूरी श्रृंखला व प्राकृतिक मनोरम स्थलों की भरमार है, फिर भी पन्ना पर्यटन की दृष्टि से अपनी पहचान बना पाने में कामयाब नहीं हो सका है। पन्ना टाईगर रिजर्व की दम पर खजुराहो  में पर्यटन उद्योग खूब फल फूल रहा  है और सब कुछ रहते हुए भी पन्ना आज भी उपेक्षित और दीनहीन बना हुआ है।

किसी समय चन्देल राजाओं के शक्ति का केन्द्र रहा पन्ना जिले का ऐतिहासिक अजयगढ़ दुर्ग स्वाधीनता के बाद प्रशासनिक उपेक्षा के चलते खण्डहर में तब्दील होता जा रहा  है। जिला मुख्यालय से लगभग 30 किमी की दूरी पर विन्ध्यांचल की दुर्गम पर्वत श्रेणियों पर स्थित यह अजेय दुर्ग अपने जेहन में भले ही वीरता की अनेकों गौरव गाथायें सहेजे है, लेकिन इसके बावजूद यहां  भूले भटके भी पर्यटक दिखाई नहीं देते। चंदेल राजाओं द्वारा निर्मित इस दुर्ग की वास्तुकला के अवशेषों का अवलोकन करने पर ऐसा प्रतीत होता है कि खजुराहो और कालींजर के विश्व प्रसिद्ध शिल्प के शिल्पियों के हांथ में इतनी पैनी छैनियां नहीं थीं, जितनी की अजयगढ़ दुर्ग के वास्तुकारों के पास थीं। वास्तव में अजयगढ़ का किला वास्तु शिल्प की दृष्टि से अधिक कलात्मक, अनूठा और बेजोड़ है।

खजुराहो शिल्प में यक्ष-यक्षिणी की मैथुन मुद्राओं को पाषाण पर उकेर कर जहाँ  जीवंत रूप प्रदान किया गया है , वहीँ  अजयगढ़ की शिल्पकला सत्यं शिवम सुन्दरम् की गरिमा से युक्त है । राजाओं और महाराजाओं के उत्थान एवं पतन के इतिहास को अपने जेहन में समेटे अजयगढ़ दुर्ग का प्राकृतिक सौन्दर्य चिरस्थायी है। पर्वत शिखरों से फूटते झरने, नागिन सी बल खाती घाटियां, मनोरम गुफायें, गहरी खाईयां, विशाल सरोवर व श्याम गौर चïट्टानें दर्शकों का मन मोह लेती हैं। इसके बावजूद इस अनूठे दुर्ग की लगातार घोर उपेक्षा हुई है, जिससे यह अभी तक पर्यटन के मानचित्र से ओझल बना हुआ है । 

गौरतलब है  कि चन्देल राजाओं द्वारा निर्मित इस भव्य दुर्ग के निर्माण में पत्थरों का तो प्रयोग किया गया है  किन्तु उनको जोडऩे में कहीं भी मसाले का प्रयोग नहीं  हुआ । जानकारों का कहना है कि इसके निर्माण में गुरूत्वाकर्षण के सिद्धातों के आधार पर कोणीय संतुलन विधि का प्रयोग किया गया है । प्राकृतिक झंझावातों, प्रकोपों, मानवीय युद्धों के विध्वंशक प्रहारों तथा अभिशापों को झेलने वाला यह दुर्ग अपनी भव्यता, अद्वितीयता और सुदृढ़ता का परिचय दे रहा है, जो निश्चित ही खजुराहों तथा अन्य ऐतिहासिक स्थलों से किसी भी दृष्टि से कम नहीं है।

जेमोलॉजी पर केंद्रित शैक्षणिक संस्थान की हो स्थापना




विश्व प्रसिद्ध हीरा खदानों के लिए पन्ना जाना जाता है। यहां पर उत्तम गुणवत्ता वाले हीरे निकलते हैं। सदियों से पन्ना की खदानों से हीरा निकाला जाता रहा है जो आज भी जारी है। लेकिन इसका अपेक्षित लाभ पन्ना को नहीं मिला। मौजूद समय पन्ना में डायमंड म्यूजियम खोले जाने की खासी चर्चा है, म्यूजियम खोलना अच्छी बात है लेकिन यह पर्याप्त नहीं है। पन्ना में ऐसे शिक्षण संस्थान खुलने चाहिए जिससे यहां हीरा व्यवसाय को बढ़ावा मिले तथा रोजी रोजगार के नए अवसर पैदा हों। इसके लिए जेमोलॉजी पर केंद्रित शैक्षणिक संस्थान की स्थापना उपयोगी साबित होगी। क्योंकि यहां पर हीरा निकलता है इसलिए पन्ना इसके लिए उपयुक्त स्थल है। 
उल्लेखनीय है कि रत्नों की पहचान, मूल्यांकन की कला, पेशा और विज्ञान को जेमोलॉजी कहा जाता है। जेमोलॉजी के अंतर्गत रत्नों की पहचान करना तथा रत्नों की कटिंग, सॉर्टिंग (छटाई), ग्रेडिंग, वैल्यूएशन (मूल्य निर्धारण), डिजाइनिंग के बारे में बताया जाता है। देश में जेमोलॉजि विषय के बहुत ही कम से शैक्षणिक संस्थान हैं, जो कि महानगरों में स्थित हैं। लेकिन जहां हीरा निकलता है वहाँ इससे संबंधित कोई शिक्षा संस्थान नहीं है। यदि इसकी स्थापना हो जाए तो देश भर के विद्यार्थी यहाँ पढऩे आएंगे, इसी के साथ यहां पर हीरों की कटिंग, पॉलिसिंग व ज्वेलरी निर्माण का काम भी होगा। जिससे हीरा व्यवसाय को पंख लग जाएंगे और इसका लाभ निश्चित ही स्वाभाविक तौर पर पन्ना को मिलेगा।

बाघ पुनर्स्थापना रिसर्च व ट्रेनिंग सेंटर जरूरी




पन्ना टाइगर रिजर्व में बाघों के उजड़ चुके संसार को फिर से आबाद करने के लिए वर्ष 2009 में शुरू की गई बाघ पुनर्स्थापना योजना को चमत्कारी सफलता मिली है। मौजूदा समय यहाँ पर 70 से भी अधिक बाघ स्वच्छंद रूप से विचरण कर रहे हैं। पन्ना के बाघों ने आसपास के इलाकों में भी अपना आशियाना बनाया है, जिससे वहां भी बाघों की आबादी फल फूल रही है। पन्ना की इस अनूठी कामयाबी को वैश्विक ख्याति मिली है तथा अनेकों देश पन्ना में हुए इस सफलतम प्रयोग से सीख लेकर बाघों के कुनबे को बढ़ाने का प्रयास कर रहे हैं। इस बात को द्रष्टिगत रखते हुए पन्ना में बाघ पुनर्स्थापना सेंटर के साथ-साथ वन अधिकारियों के प्रशिक्षण केंद्र की स्थापना होनी चाहिए। ऐसा होने से पन्ना की जहां एक नई पहचान बनेगी वहीं रोजी रोजगार के अवसरों का भी सृजन होगा। इसके लिए हिनौता अनुकूल व उपयुक्त जगह है। इसको मूर्त रूप देने में एनएमडीसी हीरा खनन परियोजना की भी मदद ली जा सकती है।
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