- धार्मिक महत्व का यह प्राचीन स्थल उपेक्षा का शिकार
- पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है यह स्थल
इस समय पूरे देश में एक ही गूंज सुनाई पड़ रही है और वह है अयोध्या में बने भव्य राम मंदिर की। न्यूज़ चैनलों और अखबारों में भी इसी बात की चर्चा हो रही है। लेकिन यहां हम चर्चा कर रहे हैं भगवान राम के वनवासी रूप की। वनवास के दौरान भगवान राम, सीता व लक्ष्मण अयोध्या से प्रयागराज होते हुए चित्रकूट पहुंचे थे। फिर सतना होते हुए भगवान राम पन्ना जिले के अगस्त मुनि के आश्रम भी पधारे थे। यह आश्रम घने जंगल के बीच स्थित है, जहां पर भगवान श्री राम के वनवासी रूप की पाषाण प्रतिमा मौजूद है। बताया जाता है कि वनवासी राम की यह प्रतिमा सर्वाधिक प्राचीन है, जो धनुष की प्रत्यंचा को चढ़ाने वाली मुद्रा में है। इस अनूठी प्रतिमा की मौजूदगी के बावजूद यह प्राचीन स्थल अभी भी उपेक्षित है।
पन्ना जिले के सिद्धनाथ मन्दिर परिसर में मौजूद वनवासी राम की पाषाण प्रतिमा |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। बुन्देलखण्ड अंचल के पन्ना जिले में धार्मिक व पुरातात्विक महत्व के अनेकों स्थल हैं, ऐसा ही एक अनूठा स्थल सलेहा के निकट सिद्धनाथ है जो ऐतिहासिक व पुरातात्विक दृष्टि से अत्यधिक महत्वपूर्ण है। सिद्धनाथ मन्दिर परिसर में भगवान श्रीराम के वनवासी रूप की दुर्लभ पाषाण प्रतिमा मौजूद है। यह स्थान जिला मुख्यालय पन्ना से 60 किमी दूर विन्ध्य पहाडिय़ों के बीच स्थित है। पुराविदों का यह दावा है कि देश में अब तक प्राप्त भगवान श्रीराम की पाषाण प्रतिमाओं में यह सबसे अधिक प्राचीन है। कहा जाता है कि दुर्गम पहाडिय़ों के बीच स्थित इस स्थान पर अगस्त मुनि का आश्रम रहा है।
उल्लेखनीय है कि इस पूरे परिक्षेत्र में 10वीं और 11वीं शताब्दी की दुर्लभ पाषाण प्रतिमायें व मन्दिरों के अवशेष बिखरे पड़े हैं। राम वन गमन पथ सर्वेक्षण यात्रा में बुद्धिजीवियों व पुराविदों का दल जब इस प्राचीन स्थल पर पहुँचा तो वनवासी राम की दुर्लभ और प्राचीन प्रतिमा को देख आश्चर्यचकित रह गया। जिस छोटी सी कुटिया में वनवासी वेश वाली भगवान श्रीराम की जटाजूटयुक्त पाषाण प्रतिमा रखी है, उसी के निकट सिद्धनाथ मन्दिर है जिसे खजुराहो के मन्दिरों से भी अधिक प्राचीन बताया जाता है।
दुर्लभ पाषाण प्रतिमा में वनवासी राम धनुष की प्रत्यंचा खींचे हुये वीर भाव में दृष्टिगोचर हो रहे हैं जो लक्ष्य भेदने को तत्पर हैं। अंचल के ग्रामीणों की यह मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान श्रीराम वनवासी वेष में चित्रकूट से चलकर यहां अगस्त मुनि के आश्रम में आये थे। यहीं से होते हुये वनवासी राम पंचवटी पहुँचे। इस प्राचीन दुर्गम स्थान का दौरा कर चुके पुराविदों का कहना है कि इस स्थल का वर्णन बाल्मीक रामायण में है।
वनवासी राम की पाषाण प्रतिमा को अत्यधिक प्राचीन और दुर्लभ बताया गया है। इस प्रतिमा के यहां मिलने से यह स्पष्ट होता है कि उस काल में यह क्षेत्र राममय रहा होगा। सदियों से उपेक्षित पड़ी इस दुर्लभ पाषाण प्रतिमा में धनुष खण्डित है, लेकिन जटाजूटयुक्त वनवासी राम का वीर भाव स्पष्ट रूप से देखने को मिलता है। इस दुर्लभ पाषाण प्रतिमा के संबंध में पुराविदों द्वारा अध्ययन किया जा रहा है ताकि यह पता लगाया जा सके कि यह कितनी प्राचीन है।
खजुराहो से अधिक प्राचीन है यह मन्दिर
पन्ना के सिद्धनाथ मन्दिर की स्थापत्य कला देखने काबिल है। पुराविदों के मुताबिक सिद्धनाथ मन्दिर खजुराहो के विश्व प्रसिद्ध मन्दिरों से भी अधिक प्राचीन है। समुचित देखरेख के अभाव व संरक्षण हेतु अपेक्षित उपाय न होने के कारण पुरा सम्पदा से समृद्ध यह इलाका उपेक्षित पड़ा है। किसी जमाने में यहां पर खजुराहो की ही तरह मन्दिरों की पूरी श्रृंखला थी लेकिन समय के थपेड़ों में अधिकांश मन्दिरों का वजूद खत्म हो गया है। इन मन्दिरों के अवशेष जहाँ-तहाँ बिखरे पड़े हैं। यदि इस स्थल का समुचित विकास हो जाये तथा यहां की पुरा सम्पदा व मन्दिर का संरक्षण हो तो यह इलाका पर्यटकों के आकर्षण का केन्द्र बन सकता है।
भगवान के वनवासी वेश वाली दुर्लभ प्रतिमा के दर्शन करने दक्षिण भारत से हर साल हजारों की संख्या में श्रद्धालु सिद्धनाथ आते हैं। इस धार्मिक महत्व के मनोरम स्थल में पहुँचकर वे अपने आपको धन्य समझते हैं। धार्मिक आस्था का केन्द्र होने के बावजूद इस प्राचीन स्थल तक अभी भी सुगम मार्ग नहीं है। ऐंसी स्थिति में यहां आने वाले श्रद्धालुओं को भारी कठिनाईयों का सामना करना पड़ता है।
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