हां,
इसी धरती का बेटा है वह
इसी मिट्टी का बना,
हम तुम जैसा ही,फिर भी हम तुम सा नहीं,
हम तुम सा नहीं ,फिर भी हम तुम जैसा ही,
हां, इसी मिट्टी का बना है वह।
उसने मनुष्य को मनुष्य होना सिखाया,
हिंदू, मुसलमान, सिख, ईसाई आदि विशेषणों को
कालरा,प्लेग की तरह बीमारियां बताया;
उसने पंडों,पुरोहितों व राजनेताओं को धूर्त, पाखंडी एवं अपराधी बताया।
स्वभावतह उन सब ने मिलकर साजिश की,
और उसे अपमानित किया, जेल में बंद किया, रेडिएशन से गुजारा,
और जहर दे दिया।
हां, ओशो ने स्वयं कहा:
"... इतना मैं कहना चाहूंगा कि सरकारें
मुझे अपने देश में आने से ही रोक सकती हैं,
लेकिन अपने लोगों के हृदय में प्रवेश करने से नहीं,
जो कि उनके देश में बसते हैं।
और मेरा काम तो ऐसा छुपा हुआ ही है,
मुझे कहीं जाने की जरूरत नहीं है।
जो लोग मुझे प्रेम करते हैं
वे कहीं भी हों
मेरे पास आ जाएंगे।
अपने सन्यासियों तक पहुंचने के लिये
मुझे उनके देश में प्रवेश करने की जरूरत नहीं है
मेरी उपस्थिति उनके प्रेम पर निर्भर करती है ,
सरकार के वीसा पर नहीं।
लेकिन इससे तुम्हारी तथाकथित विश्व शक्तियों की गरीबी का पता चलता है।
तुम्हें आनंदित होना चाहिए कि संसार में मुझे कहीं भी रहने की जगह नहीं मिल रही है।
तुम्हें आनंदित होना चाहिए, उत्सव मनाना चाहिए
कि विश्व इतिहास में पहली बार ऐसा हो रहा है,
शायद मैं मनुष्य के इतिहास में पहला आदमी हूं
जिसे पूरे विश्व में सताया जा रहा है।
लेकिन कोई बुरी खबर नहीं है, अच्छी खबर है।
इसका मतलब है कि मैंने संसार की हर धार्मिक, राजनैतिक और सामाजिक शक्ति को खतरे में डाल दिया है।
एक अकेले आदमी ने संसार की बड़ी-बड़ी ताकतों और बड़े-बड़े संगठित धर्मों की नपुंसकता को उघाड़ कर रख दिया है।
मुझे और क्या पुरस्कार मिल सकता है।"
-- स्वामी अगेह भारती की
पुस्तक ' ओशो-रस भीज्यों ' से
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