।। बाबूलाल दाहिया ।।
शनिवार 25 मई से नौतपा लग गए हैं। वैसे यह रोहणी नृक्षत्र है जिस के नव दिन के समय को नौतपा कहा जाता है। इन नव दिनों में सूर्य हमारे सिर के ठीक ऊपर होकर गुजरता है इसलिए सब से तेज गर्मी पड़ती है।
आज हमारे पास गर्मी मापक यंत्र है जिसके जरिये मालुम पड़ गया कि हमारे यहां 44 डिग्री सेल्सियस ताप क्रम है। किंतु हमारे पुरखे अपने अनुभव जनित ज्ञान से ही ज्ञात कर लिए थे कि यह 9 दिन सर्बाधिक तपने वाले दिन है।
आज हम कुलर पंखे के बीच रह कर भी उमस महसूस करते हैं। किन्तु हमारे पुरखे इस तपन को झेल सुख की अनुभूति महसूस करते थे। पहले अगर नौतपा 9 दिन खूब तपता तो किसान खुश होते कि इस वर्ष अच्छी बारिश होगी। पर अगर किसी साल प्री मानसून के बादल आकर एकाध दिन बून्दा बादी कर इसका मौसम बिगाड़ देते तो किसान निराश हो जाते कि "इस वर्ष अच्छी बारिश न होगी?" क्योकि उनकी पूरी खेती वर्षा आधारित ही होती थी। नौतपा के बाद में तो प्रायः यूंही मृगसिरा नृक्षत्र में हर साल प्री मानसून बारिस होती है । पर नवतपा नव दिन तपे तभी किसान खुस होते थे ।
हमारे यहां एक और कहावत कही जाती है कि,
आधा जेठ अषाढ़ कहावै
इसलिए यह नृक्षत्र यूं ही किसानों के लिए खेती की तैयारी का होता था जिसमें घर के छान्ही छप्पर, खेतों में गोबर की खाद डालना , नये बैलों को हल में चलाने के लिए दमना बंधी बांधों के नाट मोघे बाधना आदि बहुत सारे काम होते थे।
उधर कुम्हार समुदाय के लोग इसी पखबाड़े में घर के खपरे पाथ कर पकाते अस्तु प्रकृति से जुड़े तमाम लोगों को यह जान ही न पड़ता कि कब जेठ का यह महीना आया और बीत गया ? पर अब तो किसानों को न तो जेठ से मतलब न अषाढ़ और न ही मृगशिरा य नौतपा से। पानी नही गिरा तो टीयूबेल से निकाल लेगे और घूर कताहुर की भी फिक्र नही। लाकर रसायनिक खाद डाल देंगे । बैल की तो जैसे अब जरूरत ही नही रही ? क्योकि एक ट्रैक्टर आया तो यूं ही 20 बैल बूचड़ खाने भेज देता है। और उसी का परिणाम है घर- घर बीमारी , पानी का संकट । कुए तालाब बाबड़ी नदी सब जल हींन। कुम्हारों का खपरा उद्दोग खत्म ,पर्यावरण का विनास। पर आदमी जानते हुए यह विनाश रूपी विकास अपनाए जा रहा है।
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