आज के इस तकनीकी और वैज्ञानिक युग में मौसम की सटीक भविष्यवाणी करने में वैज्ञानिकों से भले ही चूक हो जाय, लेकिन पशु-पक्षियों में अन्तर्निहित नैसर्गिक क्षमता उन्हें इस बात का अहसास करा देती है कि आने वाला मौसम कैसा रहेगा। पक्षियों के संकेतों खासकर बया पक्षी के घोसले को देखकर अतीत में लोग अनुमान लगा लेते थे कि इस साल बारिश कैसी होगी।
।। बाबूलाल दाहिया ।।
मनुष्य ने हर क्षेत्रों में तरक्की की है। उसके दो अदद फुर्सत के हाथ और एक अदद विलक्षण बुद्धि ने जल, थल, अंतरिक्ष किसी को भी अपनी दखलन्दाजी से महफूज नहीं छोड़ा। उसका विज्ञान 24 य 48 घण्टे पहले ही बता देता है कि " समुद्र में तेज हवाएं आएंगी इसलिए नाविक गहरे समुद्र में मछली मारने मत जाए ?" कब वर्षा होगी या बर्फ पड़ेगी ? यह सब सटीक मौसम सम्बंधित ज्ञान प्रसारित कर वह लोगों को सचेत करता रहता है। आज ही उसकी एक भविष्यवाणी है कि 2 जून तक उत्तर भारत के अनेक प्रदेशों में भारी बारिश होगी।
परन्तु एक विज्ञान पशु पक्षियों में भी है जो उनके गुण सूत्रों में ही पीढ़ियों से मौजूद है। और समय - समय पर उनकी छठी इंद्री उन्हें निर्देश देती रहती है कि "तुम्हे यह करना है और यह नही करना ?" हमें याद है कि 60 के दशक तक हमारे गाँव में जब खूब घना जंगल था तब अगर पहाड़ के खेतों की तरफ जुताई होती तो हल में चल रहे हमारे बैल सूर्यास्त होने के 2-3 घण्टा पहले से ही कान खड़ा कर बार -बार रुक जाते। जैसे हल चलाने वालों को इशारा देकर समझा रहे हों कि " भाई अब तू अपना हल ढील और शीघ्र ही यहां से हमें ले चल। क्योकि बाघ तेंदुए के बिचरण का समय होने वाला है ?" और फिर जैसे ही हल ढिलता तो वे वहां से तुरन्त रवाना हो जाते। रास्ते में कितनी भी अच्छी घास लगी हो वह मुँह तक न मारते। इसके विपरीत जब वह गांव के मैदानी भाग वाले खेतों में होते तो हल से ढिल जाने के पश्चात भी रात्रि में घन्टों घास चरते रहते।
बया नामक पक्षी को देखिए अगर वह पेड़ की टहनी के बिल्कुल किनारे अपना घोंसला बनाए तो उसका संकेत है कि " इस साल वर्षा कम होगी।" किन्तु वही बया पक्षी अगर टहनी के मध्य घने पत्तों के नीचे घोंसला बनाता है तो वह अधिक वर्षा का परिचायक होता है। नदियों के किनारे बसने वाले केवट लोग जिनकी आजीविका ही नदियों से जुड़ी रहती है हमेशा यह गुरज्ञान वे बया पक्षी से ही लेते हैं कि " इस वर्ष उन्हें नदी से कितनी ऊँचाई पर अपनी झोपड़ी बनाकर रहना चाहिए ?" उनका घोंसला जितनी ऊँचाई तक होता है उसका अर्थ यह होगा कि " इस वर्ष नदी में इससे ऊपर बाढ़ नही आएगी।"
इसी तरह एक पक्षी टिटिहरी है जो उड़ तो सकता है पर उसके पैरों की बनावट पेड़ों में बैठने लायक नही होती, अस्तु वह जब भी बैठेगा तो जमीन में ही और जमीन में ही अपने अंडे भी देता है। किन्तु साँप या कौआ आदि कोई उसके अंडे को खा न पाए ? इसलिए वह सूखे नाले के ठीक मध्य में पाल बना अपने अंडे रखता है। उसका अपना रंग तो मटमैला होता ही है किन्तु उसके अंडों का रंग भी नाले के बालू या मिट्टी की तरह ही मटमैले रंग का होता है। इससे कोई जन्तु वनस्पति रहित उस सूने नाले के मध्य नहीं जाते और अंडे से सुरक्षित बच्चे आराम से निकल आते हैं। परन्तु वह अंडे तभी देगा जब उसके मष्तिष्क का कम्प्यूटर बता रहा होता है कि " अंडे से बच्चे निकल कर उड़ने तक अभी नाले में बहने लायक तेज बारिश नहीं होगी ?"
इस तरह सभी जीव जन्तु प्रकृति के नियमों में बंधे हैं। अगर कोई उसके नियमों को धता बता मनमानी रास्ते से चल रहा है तो वह मनुष्य ही है। अस्तु मनुष्य को इन तमाम जीव जन्तुओं से शिक्षा लेनी चाहिए कि कम से कम ऐसा काम न करे जो समस्त जीव जगत को ही खतरे में डाल दे।
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