- 10 वर्षीय बाघ पी-243 के सिर पर है गहरा जख्म
- सतत उपचार के बावजूद ठीक नहीं हो पा रहा घाव
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पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 वर्षीय नर बाघ पी-243, जो आपसी संघर्ष में घायल हुआ है। |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। मध्य प्रदेश के पन्ना टाइगर रिज़र्व में बाघों की संख्या बढऩे के साथ ही उनके बीच इलाके में आधिपत्य को लेकर आपसी संघर्ष की घटनाएं भी बढ़ी हैं। बाघों के बीच होने वाली इस टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) में कई बार बाघ बुरी तरह से जख्मी हो जाते हैं। अभी हाल ही में पन्ना टाइगर रिजर्व का 10 वर्षीय बाघ पी-243 आपसी संघर्ष में बुरी तरह जख्मी हुआ है, इस बाघ के सिर में गहरा घाव है। यह वही प्रसिद्ध नर बाघ है, जिसने चार अनाथ शावकों की परवरिश की थी, जिनकी मां बाघिन पी-213(32) की मौत मई 2021 में हो गई थी।
पिछले दिनों पर्यटकों ने जब इस जख्मी बाघ की तस्वीर ली, तब पता चला कि वह जख्मी है। सोशल मीडिया में बाघ की वायरल हुई फोटो तथा उठ रहे सवालों की ओर पन्ना टाइगर रिजर्व की क्षेत्र संचालक अंजना सुचिता तिर्की का ध्यान आकृष्ट कराए जाने पर उन्होंने आज बताया कि पन्ना टाइगर रिजर्व के परिक्षेत्र हिनौता अंतर्गत स्वच्छंद रूप से नर बाघ पी-243 उम्र 10 वर्ष विचरण कर रहा है। लगभग तीन माह पूर्व आपसी संघर्ष में बाघ के सिर पर चोट लग जाने के कारण घाव निर्मित हुआ है, जिसका उपचार बाघ विशेषज्ञों की सलाह पर सतत रूप से वन्य प्राणी स्वास्थ्य अधिकारी पन्ना टाइगर रिजर्व के द्वारा किया गया, किंतु उपचार से बहुत अधिक लाभ नहीं हुआ।
क्षेत्र संचालक के मुताबिक ऐसा प्रतीत हो रहा है कि बाघ के स्कल में फ्रैक्चर है, जिस कारण से घाव ठीक नहीं हो रहा। बाघ विशेषज्ञों के सतत संपर्क में रहते हुए बाघ का उपचार एवं प्रबंधन किया जा रहा है। यहाँ विशेष गौरतलब बात यह है कि नर बाघ पी-243 इसके पूर्व भी वर्ष 2021 में आपसी लड़ाई में घायल हुआ था। उस समय भी इस बाघ के सिर में आँखों के बीचोबीच जख्म हुआ था, जो उपचार से ठीक हो गया था। लेकिन इस बार का जख्म पहले की तुलना में ज्यादा गहरा तो है ही स्कल फ्रैक्चर की आशंका भी जताई जा रही है। यही वजह है की सतत उपचार के बाद भी घाव ठीक नहीं हो पा रहा है।
खुले जंगल में स्वच्छंद रूप से विचरण करने वाले बाघों के बीच टेरिटोरियल फाइट (आपसी संघर्ष) होने व अन्य प्राकृतिक कारणों से जख्मी होने पर क्या उनका उपचार दवाइयों से होना चाहिए ? इस मुद्दे पर पन्ना टाइगर रिज़र्व के तत्कालीन क्षेत्र संचालक उत्तम कुमार शर्मा का कहना है कि जंगल का नियम है "सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट"। यानी जो फिट और ताकतवर है वहीं रह सकता है। जो अनफिट व कमजोर है उसे या तो मरना पड़ता है या फिर उस इलाके को छोड़कर भागना पड़ता है।
घायल बाघ को दवाई देकर उपचार करके उसे बचाने का तात्पर्य यह होगा कि हम प्रकृति के विरुद्ध जा रहे हैं। उनके अनुसार बाघ को उपचार कर बचाने से प्रत्यक्ष लाभ यह होगा कि बाघों की संख्या स्थिर रहेगी परंतु हानि यह है कि युवा बाघ इलाके की तलाश में बाहर चले जाएंगे। असुरक्षित इलाकों में जाने से कई बार वे हादसों का शिकार हो जाते हैं।
मालुम हो कि तीन वर्ष पूर्व दिसंबर 2021 में नर बाघ पी-243 जब आपसी संघर्ष में घायल हुआ था, उस समय भी वन्य जीव प्रेमियों द्वारा बाघ की सुरक्षा को लेकर चिंता जाहिर की जा रही थी। इस पर प्रतिक्रिया देते हुए तत्कालीन क्षेत्र संचालक श्री शर्मा ने कहा था कि टाइगर रिजर्व का कोर क्षेत्र बाघों के रहवास हेतु सबसे उपयुक्त और सुरक्षित स्थान होता है। लेकिन सीमित वन क्षेत्र होने के कारण यहां बाघों की एक निश्चित संख्या ही रह सकती है।
धारण क्षमता से अधिक संख्या होने पर अतिरिक्त बाघों को अपने लिए बाहर जाकर इलाके की खोज करनी होती है। इन परिस्थितियों में यदि हमने प्रकृति के विरुद्ध जाकर घायल व कमजोर बाघों को बचाया तो कोर क्षेत्र में वृद्ध बाघों की संख्या अधिक हो जाने से शावकों की जन्म दर व संख्या धीरे-धीरे कम होना प्रारंभ हो जाएगी। इतना ही नहीं अच्छा और मजबूत "जीन" कोर क्षेत्र से बाहर चला जाएगा।
क्या कहती है एनटीसीए की गाइडलाइन
बाघ अभयारण्यों व संरक्षित क्षेत्रों के लिए राष्ट्रीय बाघ संरक्षण प्राधिकरण (एनटीसीए) ने जो गाइडलाइन निर्धारित की है उसके मुताबिक बाघ जैसे वन्य जीवों के प्राकृतिक रहवास स्थलों में संतुलन को कायम रखने तथा उनके लिए उपयुक्त परिस्थितियों को बढ़ावा देने के लिए न्यूनतम मानव हस्तक्षेप जरूरी है। सर्वाइवल ऑफ फिटेस्ट के द्वारा प्राकृतिक तरीके से वृद्ध व कमजोर आबादी का उन्मूलन होता है। इसलिए वृद्ध, कमजोर व घायल जंगली बाघों को कृत्रिम भोजन देकर प्राकृतिक प्रक्रिया में हस्तक्षेप करना उचित नहीं है।
ऐसा करने से मानव व वन्यजीवों के बीच संघर्ष के हालात बन सकते हैं। वृद्ध व अक्षम जंगली बाघों की लंबी उम्र सुनिश्चित करने के लिए कृत्रिम आहार देना वन्य जीव संरक्षण के मूल सिद्धांतों के खिलाफ जाता है, इसलिए ऐसा नहीं किया जाना चाहिए। सिर्फ विशेष परिस्थितियों में जब किसी वृद्ध या घायल बाघ से मानव बाघ संघर्ष के हालात बने, तो इन परिस्थितियों में ऐसे बाघों को किसी मान्यता प्राप्त चिडय़िाघर में पुनर्वास किया जाना चाहिए।
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बढ़िया। जानकारी वाला पोस्ट।
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