Friday, August 11, 2017

पन्ना के जोधनटोला गाँव में मिला दुर्लभ जीव पेंगोलिन

  •   औषधि में उपयोग होने के कारण विलुप्त होने का मंडरा रहा संकट
  •   भारत में यह वन्यजीव संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची प्रथम में दर्ज
  •   खतरे का आभास होते ही गेंद की तरह हो जाता है गोल



पेंगोलिन विचरण करते हुये।

अरुण सिंह,पन्ना। अत्यधिक दुर्लभ और संकटग्रस्त वन्यजीवों में शामिल पेंगोलिन म.प्र. के पन्ना जिले में मिला है। दक्षिण वन मण्डल पन्ना अंतर्गत सलेहा वन परिक्षेत्र के गाँव जोधनटोला में इस दुर्लभ और विचित्र जीव को जब ग्रामीणों ने देखा तो वे हैरान रह गये। क्योंकि इसके पूर्व उन्होंने ऐसा जीव पहले कभी नहीं देखा था। इस विचित्र स्तनपायी वन्यजीव को पेंगोलिन कहते हैं। चीटियों को बड़े ही चाव से खाने वाला यह दुर्लभ प्राणी औषधि व जादू-टोने में प्रयोग किये जाने के कारण संकटग्रस्त जीवों की प्रजातियों में आ गया है।
पन्ना टाईगर रिजर्व के वन्यप्राणी चिकित्सक डॉ. संजीव गुप्ता ने बताया कि इसके शरीर पर बालों के गुच्छे(कैरेटाइन) सख्त होकर सेल में रूपांतरित हो जाते हैं और रक्षा कवच बनाते हैं। भारत में यह प्रजाति संरक्षित है, इसे वन्यप्राणी संरक्षण अधिनियम 1972 की अनुसूची प्रथम में रखा गया है। यह बंगलादेश, चीन, भारत, म्यांमार, नेपाल, ताइवान, थाईलैण्ड और वियतनाम में राष्ट्रीय और उपराष्ट्रीय कानूनों से संरक्षित है। लगभग 100 सेमी. की लम्बाई वाला यह प्राणी खतरे का आभास होते ही अपने शरीर को गेंद की तरह गोल बनाकर निर्जीव की तरह पड़ा रहता है। इस शक्ल में पेंगोलिन ऐसा प्रतीत होता है मानो जमीन में भूरे या पीले रंग का कोई गोल पत्थर पड़ा है। वन अधिकारियों के मुताबिक पेंगोलिन का पूरा शरीर एक-दूसरे पर चढ़े हुये पीले भूरे रंग के शल्कों से ढँका रहता है। अत्यधिक कठोर ये शल्क पेंगोलिन के लिये रक्षा कवच साबित होते हैं। लभग 5 से 9 किग्रा. वजन वाले इस दुर्लभ प्राणी का शरीर सिर, गर्दन, धड़ व पूँछ में विभक्त रहता है। अत्यधिक चौकन्ना होकर धीमी चाल से जब पेंगोलिन चलता है तो उसकी पीठ ऊपर उठी रहती है। इस अनूठे वन्यजीव का उपयोग सेक्सुअल पावन बढ़ाने की दवाईयां बनाने में उपयोग होने के चलते तस्करों की नजर इस पर बनी रहती है। अंतर्राष्ट्रीय बाजार में एक पेंगोलिन के अंगों की कीमत लाखों में होती है, अत्यधिक माँग के चलते यह वन्यजीवन विलुप्ति की कगार पर जा पहुँचा है।

अनोखा है भोजन करने का तरीका


पेंगोलिन एक रात्रिचर प्राणी है जिसका मुख्य आहार चीटियां, दीमक व उनके अण्डे हैं। इस विचित्र जीव का भोजन करने का तरीका भी अनोखा है। यह अपनी लगभग 30 सेमी. लम्बी चिपचिपी जीभ को चीटियों व दीमक के घरों में डालकर चुपचाप पड़ा रहता है। जब चीटियां व दीमक इसकी जीभ में चिपक जाते हैं तो यह जीभ को मुँह के भीतर खींचकर उन्हें चट कर जाता है। जानकार यह बताते हैं कि गठिया बात, बबासीर व भगंदर जैसे असाध्य रोगों के लिये भी पेंगोलिन के अंगों का उपयोग किया जाता है। भूत-प्रेत की छाया से बचने के लिये भी इसकी हड्डियों की अंगूठी पहनने का रिवाज है। ऐसी अवैज्ञानिक धारणाओं और अंधविश्वास के चलते ही यह अद्भुत प्राणी अब दुर्लभ हो गया है।

वन अमले ने बौलिया के जंगल में छोड़ा


जोधनटोला गाँव में मिले पेंगोलिन के साथ पुलिस व वनकर्मी।

वन परिक्षेत्राधिकारी सलेहा एस.पी. सिंह बुन्देला ने जानकारी देते हुये आज बताया कि सोमवार की रात्रि में जोधनटोला गाँव के लोगों ने इस विचित्र जीव को जब देखा तो उन्होंने इसे मगरमच्छ समझकर तत्काल पुलिस को सूचना दी। पुलिस इस जीव को थाना ले गई जहां वन अमले को बुलाकर इसे उनके हवाले कर दिया गया। फारेस्ट गार्ड जे.पी. सोनकर व कृष्ण कुमार गुप्ता द्वारा इस दुर्लभ और संकटग्रस्त वन्यजीव को दूसरे दिन पास के ही बौलिया जंगल में छोड़ दिया गया, जो सुरक्षा की दृष्टि से उचित नहीं कहा जा सकता। पेंगोलिन को वरिष्ठ वन अधिकारियों की देखरेख में पन्ना टाईगर रिजर्व के जंगल में छोड़ा जाना चाहिये था, क्योंकि इस दुर्लभ वन्यजीव को यहां पर अनुकूल प्राकृतिक रहवास व भोजन के साथ-साथ सुरक्षा भी उपलब्ध होती।

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