Tuesday, January 2, 2018

ग्रामीणों की सोच बदली तो जल संकट से मिली निजात

  •   पन्ना जिले के आदिवासी बहुल पल्थरा गाँव की बदली तस्वीर
  •   जल का संरक्षण करने से गरीब आदिवासी हुये खुशहाल




।। अरुण सिंह ।।

पन्ना। पर्यावरण और जल संरक्षण के प्रति सोच में सकारात्मक बदलाव आने पर किसी गाँव की तस्वीर कैसे बदल सकती है, इसका जीता जागता उदाहरण पन्ना जिले का छोटा सा गाँव पल्थरा है। इस गाँव के गरीब आदिवासियों ने पानी के महत्व को समझा और बारिश के पानी को बहकर बर्वाद होने से बचाने के लिये सामूहिक प्रयास किया, परिणामस्वरूप उनकी जिन्दगी खुशहाल हो गई। जल स्तर में सुधार होने से गाँव के कुँओं में भी बारहों महीने पानी बना रहता है, जिससे ग्रामीणों को जल संकट की समस्या से भी निजात मिल गई है।

उल्लेखनीय है कि पन्ना जिला मुख्यालय से लगभग 30 किलोमीटर की दूरी पर स्थिति है आदिवासी बाहुल्य छोटा सा गांव पल्थरा जहां लगभग 22 परिवार निवास करते हैं। गांव के लोगों की जीविका का मुख्य साधन खेती एवं मजदूरी है। खेती मुख्य व्यवसाय होने के बाद भी गांव में खेतों की सिंचाई के साधन न के बराबर थे। बड़ी बात ये है कि गांव के खेतों में मेढ़बंधान भी न के बराबर है जिससे गांव का पूरा पानी बहकर नाले के द्वारा गांव से कई मील दूर बह जाता था। 

मनरेगा योजना के अंतर्गत कुछ कपिलधारा कूप बने हैं  लेकिन ये कूप काफी कम गहरे होने के कारण सिंचाई करने में सक्षम नहींं थे, बरसात में भरे पानी के कारण बहुत कम पानी फ सलों को मिल पाता था। गांव के किनारे से एक नाला निकला है जिसमें कुछ पानी रहता है जिसकारण से नाले के किनारे के परिवार अपने खेतों की कुछ सिचाई कर पाते थे। इसी नाले में कुछ वर्ष पूर्व स्टापडेम बना था लेकिन उसके टूट जाने के कारण उसके अस्तित्व को पूरी तरह से खत्म कर चुका था, जिससे उसका लाभ भी लोगों को नहीं मिल पा रहा था। गांव में एक छोटा तालाब भी है लेकिन वह बनने के कुछ वर्ष बाद ही फू ट चुका था जिससे पानी नहीं रूकता था।




वित्तीय वर्ष 2016-17 में समर्थन-सेंटर फार डेवलपमेंट सपोर्ट, भोपाल का सकारात्मक हस्तक्षेप इस गांव के साथ आस-पास के ऐसे ही जरूरतमंद गांवों में प्रारंभ हुआ। संस्था के द्वारा लोगों को गांव की सामूहिकता और सामूहिक ताकत को अहसास कराने के साथ प्राकृतिक संसाधनों की महत्वा और उसे संरक्षित करने की चर्चा प्रारंभ की। जनसमुदाय के साथ लगातार बैठकर प्राकृतिक संसाधनों के महत्व एवं उसका जीवन पर प्रभाव आदि को चर्चा का विषय बनाया। गांव के छोटे-छोटे उदाहरणों से पानी रोकने एवं पौधों को बचाने के साथ खेतों के सुधार आदि पर लगातार चर्चायें हुई। 

गांव के लोगों को कुछ-कुछ समझ में आने लगा कि कहीं न कहीं हमारी ही कमजोरी है जिससे हमारे गांव का पानी हमारे गांव के बाहर चला जाता है और बाद में हम सब उसी पानी के लिये तड़पते हंै। लोगों को वनों के महत्व की भी समझ बढ़ी और लोग ये महसूस करने लगे कि दिन प्रतिदिन कम होते वन हम सबके पतन और विनाश का कारण बनेंगे जो कि सामने दिख भी रहा है। लोगों में अपने गांव के विकास की आशा जगी और विष्वास बढ़ा कि अगर हम लोग चाहें तो कई ऐसे विकास के कार्य कर सकते है जो हमारे गांव की बदहाली को खत्म कर खुशहाली की ओर ले जा सकते  हैं। 

लोगों ने सर्वसहमति से अपने गांव की समस्याओं को चिन्हित किया और समस्याओं को दूर करने के लिये गतिविधियों का चयन कर अपने गांव के विकास की योजना तैयार की। लोगों ने यह भी माना कि योजना निर्माण सतत् कार्य है अगर कोई कमी दिखेगी तो लगातार इसमें कार्यों को जोड़ा जायेगा। योजना निर्माण कर उसे गांव के द्वारा सर्वसहमति से स्वीकृति दी गई।

गांव की योजना में चिन्हित किये गये कार्यों मे गांव के इकलौते एवं फू टे हुये तालाब एवं टूटे हुये स्टापडेम की मरम्मत करने का कार्य प्राथमिकता में लिया गया। गांव के लोग यह भी कहते थे कि हम इस तालाब एवं स्टापडेम की मरम्मत कर इसे पुन: उपयोगी बनायेंगे ताकि पानी को रोका जा सके। गांव के लोगों का उत्साह देखकर समर्थन-सेंटर फ ार डेवलपमेंट सपोर्ट के द्वारा थोड़ी राशि गांव के लोगों को उपलब्ध कराई गई। इस थोड़ी सी राशि के सहारे गांव के लोगों ने श्रमदान देकर अपने फूटे हुये तालाब एवं वर्षों से टूटे पड़े स्टापडेम की पूरी मरम्मत कर डाली और वर्षों के बाद बारिश से तालाब एवं स्टापडेम दोबारा पानी से लबालब हुये।

लबालब भरने के बाद कई दिनों तक बारिश नहीं होने से तालाब का पानी कम गया जिसे जमीन ने सोख लिया। एकदिन गांव के लोगों के साथ पुन: संस्था के साथी तालाब देखने गये जिसमें जल स्तर कम हुआ देख लोगों ने कहा कि हमारे गांव की जमीन के अंदर का पानी बढ़ गया है। सवाल किया गया कि कैसे कह सकते है तो लोगों ने कहा कि यह तालाब कुछ दिन पूर्व तक लबालव भरा हुआ था लेकिन आज काफी खाली हो चुका है। यह खाली नहींं हुआ बल्कि तालाब का पानी अंदर ही अंदर हमारे गांव की जमीन के अंदर सुरक्षित हो गया है। 

गांव के लोग इतनें में ही नहीं रूके बल्कि बोले कि तालाब का यह कम हुआ पानी हमारे गांव के कूपों एवं जल के अन्य स्त्रोतों को भर रहा है अगर ये तालाब नहीं होता तो यह पानी कैसे जमीन और हमारे कूपों में जाता, यह तो बहकर पूरा गांव के बाहर निकल जाता। गांव के लोगों की ये भाषा, ये चर्चा यह साबित करती है कि अब उन्हें पानी के संरक्षण के महत्व की समझ विकसित हो रही है जो कि गांव को खुशहाली की ओर ले जाने में सहायक सिद्ध होगी।
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