अरुण सिंह, पन्ना। बढ़ते ध्वनि प्रदूषण व शोरगुल के माहौल से परेशानी सिर्फ मनुष्यों को ही नहीं बल्कि परिंदों को भी होती है. ध्वनि प्रदूषण के कारण चिडिय़ों में संवाद करने की क्षमता पर असर पड़ा है। शोरगुल की वजह से नर पक्षी की पुकार मादा तक नहीं पहुंच पाती, ऐसे में विभिन्न प्रजाति के रंग विरंगे पंछियों की आबादी घटने का खतरा उत्पन्न हो गया है।
उल्लेखनीय है कि पन्ना शहर के आसपास स्थित वनाच्छादित पहाडिय़ों में कुछ वर्षों पूर्व तक सैकड़ों प्रजाति के पंछियों के दर्शन सहजता से हो जाते थे। सुबह के समय पंछियों के कलरव व सुरीले गीतों को सुन मन प्रफुल्लित हो जाता था, लेकिन वाहनों के प्रेसर हार्न, जंगलों की बेतहासा कटाई व मानव दखलंदाजी बढऩे से पंछियों का प्राकृतिक रहवास तेजी से नष्ट हो रहा है जिससे उनके दर्शन दुर्लभ हो गये हैं। सुबह की सैर में जाने वाले लोगों को शहर के निकट ही राष्ट्रीय पक्षी मोर नृत्य करते हुए नजर आ जाते थे, कोयल की सुरीले गीत हर तरफ सुनाई देते थे लेकिन अब सुबह की सैर में न तो मोर नजर आते हैं और न ही पंक्षियों के गीत सुनाई देते हैं। इसकी जगह मोबाइल पर बजने वाले फिल्मी गीत कर्कश आवाज में सुनने को मिलता है, जिससे ताजगी व स्फूर्ति मिलने के बजाय मन और खिन्न हो जाता है।
पंछियों की गतिविधियों पर नजर रखने वाले शोध कर्ताओं का कहना है कि नर पंक्षी की आवाज को पूरी तरह से सुन पाने में नाकाम होने वाली मादाएं अपने नर साथियों को बीमार समझकर खारिज कर सकती हैं। उनका मानना है कि मादा पक्षी निम्न आवृत्ति वाले किसी गीत को सुन पाने में खुद को जब असमर्थ पाती है तो वे नर पक्षी की आवाज को असमान्य महसूस करने लगती हैं। इस व्यवधान के चलते अगर नर पक्षियों को मादा जोड़े न मिलें तो उनकी नस्लें कम होने लगेंगी और इसका असर उनकी आबादी पर दिखेगा। मानव आबादी के आसपास घरों में सहजता से नजर आने वाली गौरैया चिडिय़ों की तादाद भी तेजी से घट रही है, इसकी वजह तथाकथित विकास व पर्यावरण के साथ होने वाला खिलवाड़ प्रमुख है।
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