- धार्मिक आस्था के चलते पांच सौ वर्ष से सुरक्षित है जंगल
- बादामी बाबा के चबूतरे की गौंड़ करते हैं पूजा व अर्चना
पन्ना नेशनल पार्क के जंगल में मड़ला प्रवेश द्वार के निकट स्थित बादामी बाबा का चबूतरा। |
अरुण सिंह,पन्ना। वनों व वन्य प्राणियों की सुरक्षा के लिए तैनात भारी भरकम अमला व बड़े नियम कानून से जो संभव नहीं हो पाता, वह कार्य धार्मिक आस्था व विश्वास के चलते एक देव स्थल के आस-पास स्वमेव हो रहा है । म.प्र. के पन्ना नेशनल पार्क में केन नदी के निकट स्थित बादामी बाबा का चबूतरा सैकड़ों वर्षों से गौड़ों की आस्था का केन्द्र बना हुआ है । इस चबूतरे के आस-पास सागौन का बेहतरीन जंगल है , लेकिन कोई भी व्यक्ति इस इलाके में वृक्षों पर न तो कुल्हाड़ी चलाता है और न ही वन्य जीवों का शिकार करता है । गौड़ों की ऐसी मान्यता है कि बादामी बाबा के चबूतरे में नारियल चढ़ाने से सभी मनोकामनायें पूरी होती हैं।
उल्लेखनीय है कि पन्ना नेशनल पार्क के मड़ला प्रवेश द्वार से लगभग 4 किमी दूर केन नदी के किनारे घने जंगल में बादामी बाबा का चबूतरा बना हुआ है । बताया जाता है कि ग्राम पीपरटोला निवासी बादामी बाबा को लगभग पांच सौ वर्ष पूर्व इसी स्थान पर एक बाघ ने मार दिया था। फलस्वरूप तत्कालीन गौड़ राजा ने बाबा की स्मृति में यहाँ पर एक चबूतरे का निर्माण कराया था, तभी से गौड़ इस स्थल पर पूजा-अर्चना करते आ रहे हैं । ऐसी मान्यता है कि जो कोई भी श्रद्धा और विश्वास के साथ चबूतरे में नारियल चढ़ाता है उसे यहाँ के जंगल में बाघ देखने को अवश्य मिलता है । पिछले पांच सौ वर्षों से चली आ रही इसी मान्यता के चलते नेशनल पार्क के भ्रमण में आने वाले देशी व विदेशी पर्यटक भी बादामी बाबा के चबूतरे में नारियल चढ़ाकर परिकृमा करते हैं ताकि जंगल में उनको वनराज के दर्शन हो सकें।
बादामी बाबा के प्राचीन चबूतरे व उससे जुड़ी किवदंतियों की चर्चा करते हुए पन्ना राजघराने के सदस्य एवं पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि लगभग पाँच सौ वर्ष पूर्व यहाँ गौड़ राजाओं का शासन था, उस समय ग्राम पीपरटोला में बादामी बाबा नाम के संत हुए थे। आप जंगल में ही वन्यजीवों के बीच विचरण करते हुए आध्यात्मिक साधना में लीन रहते थे। तत्कालीन गौड़ राजाओं को जब वनराज के दर्शन करने होते थे तो वे बादामी बाबा के पास आते थे और बाबा उन्हें सहजता से जंगल के राजा का दीदार करा देते थे। बताया जाता है कि एक बार किसी राजा को जब बाबा ने बाघ दिखाया तो राजा ने उस बाघ को गोली मार दी। परिणामस्वरूप बादामी बाबा को जख्मी बाघ के कोप का भाजन बनना पड़ा। तभी से इस पूरे इलाके में न तो कोई शिकार करता है और न ही जंगल के वृक्षों को क्षति पहुँचाता है । मड़ला गांव के बुजुर्गों ने बताया कि चबूतरे के आस-पास जिस तरह का सागौन वन है वैसा जंगल अन्यत्र कहीं देखने को नहीं मिलता। धार्मिक आस्था और विश्वास के कारण यहाँ का जंगल पूरी तरह से सुरक्षित है । सागौन के घनघोर जंगल व केन नदी की अनुपम छटा के कारण यह स्थल प्राकृतिक सौन्दर्य की दृष्टि से भी दर्शनीय है ।
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