Friday, December 21, 2018

अनूठी होती है दीमक के बॉबी की आन्तरिक संरचना

  •  गर्मी में शीतलता व ठंड में रहता है गर्म वातावरण
  •   हरे-भरे पेड़ पौधों को दीमक नहीं पहुँचाता कोई क्षति


 दीमक की भारी भरकम बॉबी के निकट खड़े पर्यावरण विद बाबू लाल दाहिया।

। अरुण सिंह 

पन्ना। कुदरत ने अनगिनत जीव-जन्तुओं की रचना की है, जिनकी अपनी खूबियां और अहमियत होती है। बिना आँख का एक नन्हा सा जीव दीमक भी उनमें से एक है, जिसकी सृृजनात्मकता अनूठी और आश्चर्य चकित कर देने वाली होती है। दीमक का आवास जिसे बॉबी कहते हैं उसकी आन्तरिक संरचना को देख आंख वाले भी हैरत में पड़ जाते हैं। क्योंकि दीमक के बॉबी का निर्माण कुछ इस तरह होता है कि भीषण गर्मी और तपिश वाले दिनों में बॉबी के भीतर शीतलता व ठंड के मौसम में गर्म वातावरण का अहसास होता है। 

इस अनूठी और रहस्यपूर्ण तकनीक से अभी तक मनुष्य भी परिचित नहीं हो सका है। प्रकृति व पर्यावरण संरक्षण सहित परम्परागत खेती को बढ़ावा देने के लिए विगत कई दशकों से सक्रिय विन्ध्य क्षेत्र के ख्यातिलब्ध पर्यावरण विद बाबू लाल दाहिया जी ने बिना आँख वाले अनूठे जीव दीमक के बारे में आम जनमानस में जो भ्रांतियां हैं उन्हें दूर करने का अभिनव प्रयास किया है जो निश्चित ही सराहनीय है।

उल्लेखनीय है कि आम जनमानस व किसानों में दीमक को लेकर जो धारणा है वह मित्रवत न होकर शत्रुता वाली है। किसान दीमक को अपना दुश्मन समझते हैं और इस नन्हे जीव को नष्ट करने के लिए तमाम तरह के जतन और उपाय करते हैं। दाहिया जी दीमक की एक विशालकाय बॉबी के पास खड़े होकर इस बिना आँख के जीव की जिन विशिष्टताओं से परिचित कराते हैं उससे दीमक को लेकर जो भ्रांति है वह जहां दूर होती है वहीं इस जीव की महत्ता व प्रकृति और पर्यावरण को समृद्ध बनाने में इसकी भूमिका भी प्रकट होती है। 

दाहिया जी बताते हैं कि दीमक बिना आँख का जीव है, लेकिन उसके द्वारा निर्मित बॉबी की आन्तरिक संरचना देख आँख वाला भी आश्चर्यचकित रह जाता है। इस बॉबी केअन्दर रानी दीमक व श्रमिक दीमक के अलग-अलग निवास होते हैं। बॉबी की सबसे बड़ी विशेषता यह होती है कि इसके भीतर गर्मी में ठंडक व ठंड में गर्म वातावरण रहता है। इस विशिष्टता और खूबी के कारण ही अंधेरे में रहने वाले जीव सांप को दीमक की बॉबी अत्यधिक प्रिय होती है। 

ठंड व गर्म दोनों ही मौसम में सांप दीमक की बॉबी को अपना रहवास बनाकर उसके भीतर आराम फरमाता है। इस अनूठी और रहस्यमयी संरचना के निर्माण में दीमक को हांथ पैर नहीं चलाना पड़ता। दाहिया जी के मुताबिक बस दीमक आ आकर पाखाना करती जाती हैं और बॉबी बनती जाती है। बघेली में दीमक पर एक पहेली बूझी जाती है कि च्च्जीर जइसा अपना अजमाइन जइसा पेट, बारी तरे झाड़े बइठी लगय दिहिन सर सेटज्ज्।

दीमक को लेकर है बड़ी भ्रांति

प्रकृति और पर्यावरण के बीच अपना अधिक से अधिक समय गुजारकर कुदरत के अनसुलझे रहस्यों को समझने का प्रयास करने वाले बाबू लाल दाहिया बताते हैं कि दीमक को लेकर समाज में एक बहुत बड़ी भ्रांति है कि वह हरे-भरे पेड़ पौधों व खेत में खड़ी फसल को काटकर सुखा देती है। इसी भ्रांति के चलते ही लोग खेतों में कीटनाशक जहर का छिड़काव करके अपनी फसल को विषैला बना देते हैं। जबकि सच्चाई बिलकुल अलहदा है। 

दाहिया जी के मुताबिक दरअसल दीमक को कुदरत ने एक दायित्व सौंपा है कि वह सूखे पेड़ों को खाकर उसे मिट्टी में मिला दे। कुदरत द्वारा सौंपे गये इस दायित्व का निर्वहन दीमक निरन्तर करती रहती है। वह अपने सूंघने की शक्ति से जान जाती है कि अमुक स्थान में अमुक पौधा सूख रहा है और वह वहां पर पहुँच जाती है।

प्रकृति का काम करने वाला जीव है दीमक

दीमक न तो हरे-भरे पेड़-पौधों को काटकर सुखाता है और न ही वह किसानों का दुश्मन है, अपितु वह प्रकृति द्वारा सौंपे गये कार्य को ही करता है जिससे मिट्टी की उर्वरता और बढ़ती है। दाहिया जी इसे कुछ ऐसे समझाते हैं, मान लीजिये आपके खेत में एक फुट के दायरे में 10 पौधे हैं। उनमें किसी अन्य कीड़े या बीमारी के कारण यदि एक पौधा मुरझाने लगा तो दीमक वहां पहुँच जायेगी और अपना दायित्व पूरा करने लगेगी। 

इससे लोग यह मान लेते हैं कि फसल को दीमक काट रही है। क्योंकि जब आप पौधे को उखाड़ेंगे तो दीमक वहां पर मौजूद मिलेगी। लेकिन आप वहां पर उगे यदि अन्य पौधों को उखाड़े तो वहां किसी पौधे के नीचे दीमक नहीं मिलेगी। क्योंकि वह हरे पौधे को नहीं खाती, लेकिन भ्रांति के चलते प्रकृति का काम करने वाला यह जन्तु व्यर्थ ही मारा जाता है।
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