- जरधोवा के पास स्थित गुफाओं में रहते थे आदिमानव
- चट्टानों और गुफाओं में बने हैं आखेट के दुर्लभ चित्र
पन्ना टाईगर रिजर्व से लगे जरधोवा गांव के निकट पहाड़ में स्थित वह शेल्टर जहाँ हजारों वर्ष पुराने शैल चित्र हैं। फोटो - अरुण सिंह |
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। जिला मुख्यालय पन्ना से लगभग 18 किमी. दूर ग्राम जरधोवा के निकट पन्ना नेशनल पार्क के बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व ऊँचे पहाड़ों की चट्टानों पर प्राचीन भित्त चित्र मिले हैं। हजारों वर्ष पूर्व आदिमानवों द्वारा पहाड़ों व गुफाओं में ये चित्र बनाये गये हैं, जो आज भी दृष्टिगोचर हो रहे हैं। पन्ना के जंगलों में दुर्गम पहाड़ों और गुफाओं में नजर आने वाली यह रॉक पेंटिंग कितनी प्राचीन है इसका पता लगाने के लिए जानकारों व विषय विशेषज्ञों की मदद ली जानी चाहिए ताकि यहाँ के प्राचीन भित्त चित्रों का संरक्षण हो सके।
उल्लेखनीय है कि पन्ना नेशनल पार्क के घने जंगलों में दर्जनों की संख्या में ऐसी गुफायें मौजूद हैं जहाँ हजारों वर्ष पूर्व आदिमानव निवास करते रहे हैं। उस समय चूंकि खेती शुरू नहीं हुई थी, इसलिए आदिमानव पूरी तरह से जंगल व वन्यजीवों पर ही आश्रित रहते थे। वन्यजीवों का शिकार करके वे अपनी भूख मिटाते थे। यहाँ की गुफाओं व पहाड़ों की शेल्टर वाली चट्टानों पर उस समय के आदिमानवों की जीवनचर्या का बहुत ही सजीव चित्रण किया गया है ।
भित्त चित्रों में वन्यजीवों के साथ-साथ शिकार करने के दृश्य भी दिखाये गये हैं। वन्य जीवों का शिकार करने के लिए आदिमानवों द्वारा तीर कमान का उपयोग किया गया है । चित्रों से यह पूरी तरह स्पष्ट नहीं होता कि तीर की नोक लोहा की है या फिर नुकीले पत्थर अथवा हड्डी से उसे तैयार किया गया है । यदि तीर की नोक लोहा से निर्मित नहीं है तो भित्त चित्र पाषाण काल के हो सकते हैं।
पन्ना नेशनल पार्क के अलावा भी जिले के अन्य वन क्षेत्रों में भी इस तरह के भित्त चित्र पाये जाने की खबर है । बताया जाता है कि बराछ की पहाड़ी, बृहस्पति कुण्ड की गुफाओं व सारंग की पहाड़ी में भी कई स्थानों पर आदिमानवों द्वारा बनाई गई रॉक पेंटिंग मौजूद हैं। लेकिन दुर्भाग्य से अभी तक शासन व प्रशासन का ध्यान इन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण की ओर नहीं गया। ऐसी स्थिति में उन स्थानों पर जहाँ लोगों की आवाजाही अधिक है तथा सहजता से जहाँ लोग पहुँच जाते हैं वहाँ की रॉक पेंटिंग नष्ट हो रही हैं ।
इन रॉक पेंटिंग (भित्त चित्र) की महत्ता से अनजान लोग चट्टानों की दीवालों पर बनी इन पेंटिंग्स के आस-पास कोयला या पत्थर से खुद भी चित्र बना देते हैं, जिससे अमूल्य धरोहर नष्ट हो रही है । जरधोवा गांव के निकट दुर्गम पहाड़ी पर एक विशालकाय चट्टान का शेल्टर है , जिसके नीचे दर्जनों लोग बैठकर विश्राम कर सकते हैं। पहाड़ी के ऊपर अत्यधिक ऊँचाई पर यह स्थान होने के कारण यहाँ से मीलों दूर तक जंगल का नजारा दिखाई देता है ।
इस शेल्टर की बनावट व स्थिति को देख ऐसा लगता है कि यहाँ पर आदिमानव विश्राम करते रहे होंगे और शिकार करने के लिए जंगल के किस हिस्से में जानवर अधिक संख्या में मौजूद हैं इस बात का भी जायजा लेते रहे होंगे । इस शेल्टर की खूबी यह है कि बारिश होने पर न तो यहाँ बारिश का पानी पहुंच सकता है और न ही धूप, यहाँ पर गर्मी के दिनों में भी शीतलता का अहसास होता है । इस शेल्टर की भित्त पर शिकार करने के अनेकों दृश्य बने हुये हैं।
जरधोवा निवासी ग्रामीणों ने बताया कि सैकड़ों वर्ष पूर्व इस जंगल में गोंड़ राजाओं के समय काछा नाम का गांव आबाद था जो गोंड़ शासन खत्म होने के बाद उजड़ गया। पहाड़ी पर स्थित शेल्टर जहाँ भित्त चित्र मौजूद हैं उस स्थान को घुटइयां के नाम से जाना जाता है । स्थान अत्यधिक दुर्गम होने के कारण तथा पुरानी मान्यताओं के चलते गांव के लोग यहाँ नहीं जाते। ग्रामीणों का मानना है कि वहाँ चुडैलों का वास है इसलिए वहाँ जाने से अनर्थ हो सकता है ।
पेन्टिंग को खून की पुतरिया कहते हैं ग्रामीण
आदिमानवों द्वारा बनाये गये शैल चित्रों का दृश्य। फोटो - अरुण सिंह |
बियावान जंगल में स्थित गुफाओं व पहाड़ की चट्टानों पर लाल रंग से अंकित शिकार के दृश्यों को गांव के आदिवासी खून की पुतरिया कहते हैं। ग्रामीणों का मानना है कि इन स्थानों पर वास करने वाली चुडैलें नवजात शिशुओं को मारकर उनके रक्त से ये चित्र बनाती हैं। इसी मान्यता के चलते गांव के लोग भित्त चित्र वाले स्थानों पर जाना तो दूर उस तरफ रुख भी नहीं करते। गांव के बड़े बुजुर्ग पूरे भरोसे के साथ यह बताते हैं कि आदिमानवों द्वारा नहीं बल्कि चुडैलों द्वारा ही गुफाओं में जगह-जगह खून की पुतरिया बनाई गई हैं, जो कोई भी वहाँ जायेगा वह चुडैलों के कोप का शिकार हो सकता है । अनर्थ होने की आशंका से गांव का कोई भी व्यक्ति इन खुन की पुतरियों के पास नहीं फटकता।
इंडिगो पेड़ के रस से बने हैं भित्त चित्र
यहाँ के जंगलों में यदा कदा आदिमानवों द्वारा शिकार के लिए उपयोग में लाये जाने वाले पत्थर के नुकीले हïथियार भी मिल जाते हैं। हजारों साल गुजर जाने के बाद भी भित्त चित्र नष्ट नहीं हुए , इसकी वजह का खुलासा करते हुए आपने बताया कि ये वनस्पति रंग से बने हैं। इंडिगो नामक पेड़ के रस से आदिमानवों ने ये शिकार के दृश्य अंकित किये हैं। यह अद्भुत पेड़ उस समय यहाँ के जंगलों में प्रचुरता से पाया जाता था, लेकिन अब यह यहाँ विलुप्त हो चुका है।
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