- तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह जू देव ने मारा था
- राजमहल के दरबार हाल में बब्बर शेर की ममी आज भी मौजूद
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। टाइगर स्टेट कहे जाने वाले म.प्र. के पन्ना जिले में आजादी से पूर्व तक सैकड़ों की संख्या में बाघ मौजूद थे। शिकार करने के शौकीन तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा उस जमाने में विशिष्ट अंग्रेज मेहमानों व दूसरी रियासतों के राजाओं के साथ बाघों का शिकार भी किया जाता रहा है। वन्य जीवों में सबसे ज्यादा बलशाली और अपनी शाही चाल के कारण आकर्षण का केन्द्र रहने वाले बाघ के संरक्षण की दिशा में भी राजाशाही जमाने में ठोस प्रयास किये जाते रहे हैं, यही वजह है कि पन्ना को बेशकीमती हीरों के साथ - साथ बाघों की धरती के नाम से भी जाना जाता था।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा पन्ना के जंगलों में सैकडों बाघ मारे गये, लेकिन इस तथ्य से बहुत ही कम लोग वाकिफ होंगे कि 84 वर्ष पूर्व पन्ना के सरकोहा जंगल में एक अफ्रीकन बब्बर शेर का भी शिकार हुआ था। अफ्रीका के जंगल में पाये जाने वाले इस बब्बर शेर को तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह जू देव ने 1929 में मारा था। पन्ना राजमहल के दरबार हाल में यह बब्बर शेर आज भी सुरक्षित है। इस शेर की खाल में मशाला भरकर उसे इस अंदाज में रखवाया गया है कि देखने पर लगता है मानो वह दहाडने वाला है।
यह अफ्रीकन बब्बर शेर पन्ना के जंगल में कैसे पहुंचा, इसकी बहुत ही रोचक और दिलचस्प दास्तान है. पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि यह बब्बर शेर शिवपुरी के जंगल में विचरण करते हुए पन्ना पहुंचा था। तत्कालीन ग्वालियर महाराजा ने 1924 में अफ्रीका से बब्बर शेर के तीन जोड़े मंगवाये थे जो समुद्री रास्ते से होते हुए बम्बई के बन्दरगाह में उतरे थे। बन्दरगाह से इन मेल व फीमेल बब्बर शेरों को शिवपुरी लाया गया और उन्हें जंगल में प्राकृतिक रूप से विचरण करने के लिए छोड़ दिया गया ताकि उनकी वंश वृद्धि हो सके।
महाराजा ग्वालियर द्वारा शिवपुरी के जंगल में छुड़वाये गये इन्हीं बब्बर शेरों में से एक विचरण करते हुए पन्ना के जंगल में आ पहुंचा था। सरकोहा के जंगल में पन्ना रियासत के वनरखा ने जब इस विचित्र बलशाली वन्य जीव की दहाड़ सुनी और जमीन में उसके पंजे के निशान देखे तो उसने तत्काल इसकी सूचना महाराजा यादवेन्द्र सिंह को दी।
इस वनरखा ने महाराजा को बताया कि उसने सरकोहा के शहीदन जंगल में एक ऐसे शेर के पंजे देखे हैं, जिसके पांव के पीछे बड़े - बड़े बाल हैं, इसके पंजे तो देशी शेर के पंजों जैसे ही हैं, परन्तु पंजे के पीछे हिस्से में बालों के घिसटने के चिन्ह भी बनते हैं। वनरखा से इस अदभुत शेर के बारे में सुनकर महाराजा यादवेन्द्र सिंह को भी आश्चर्य हुआ और वे पंजों के निशान देखने तत्काल जंगल रवाना हो गये। उन्होंने जंगल में जब खुद अपनी आंखों से पंजों के निशान देखे तो वे अचंभित रह गये। क्यों कि इसके पूर्व कभी भी वे ऐसे शेर के पंजे नहीं देखे थे।
महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने उसी समय यह निश्चय किया कि इस विचित्र जानवर को मारना है। वे अपने दोनों पुत्र नरेन्द्र सिंह व पुष्पेन्द्र सिंह को लेकर सरकोहा के जंगल में शिकार खेलने गये। जंगल में हाका कराया गया फलस्वरूप अफ्रीकन शेर जैसे ही नजर आया महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने उसके ऊपर गोली चला दी और वह वहीं पर ढ़ेर हो गया। इस बब्बर शेर के निकट जब महाराजा पहुंचे तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि यदि वे इस अफ्रीकन शेर को न मारते तो पन्ना में शेर की एक ऐसी नश्ल तैयार हो सकती थी जो पूरे विश्व में नहीं है। भारतीय बब्बर शेर व अफ्रीकन बब्बर शेर की मिश्रित नश्ल तैयार हो जाती जो दुनिया में कहीं नहीं है। यह कैसे संभव हो पाता इसकी जानकारी देते हुए लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि उस समय पन्ना शहर के निकट लक्ष्मीपुर रोड पर रामबाग में महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने पन्ना रियासत का चिडिय़ा घर बनवाया था। उस चिडिय़ा घर में जामनगर गुजरात के जंगल से लाये गये एक जोड़ा भारतीय बब्बर शेर रखे गये थे।
ये बब्बर शेर महाराजा यादवेन्द्र सिंह की जब भाव नगर गुजरात में शादी हुई तो वर्ष 1919 में महाराजा भाव सिंह ने दहेज में अन्य चीजों के साथ दिया था। दहेज में मिले इन भारतीय बब्बर शेरों के जोड़े को महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने रामबाग के चिडिय़ाघर में रखवाया था। वन्य जीवों विशेषकर बाघों के संरक्षण में रूचि रखने वाले राजपरिवार के सदस्य लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि बाघों में सूंघन की क्षमता गजब की होती है. इसी क्षमता के कारण शिवपुरी के जंगल में मौजूद अफ्रीकन बब्बर शेर को पन्ना के चिडिय़ा घर में मौजूद भारतीय बब्बर शेरनी के होने का आभास हुआ होगा और वह शेरनी की तलाश में शिवपुरी से पन्ना आ पहुंचा।
शिवपुरी से पन्ना के जंगल में आया यह नर बब्बर शेर रामबाग स्थित चिडिय़ाघर से लगभग 3 किमी. दूर सरकोहा के जंगल में मिला। जहां महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने अनजाने में उसे मार डाला। इस घटना से सीख लेकर पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने महाराजा मार्तण्ड सिंह रीवा को अपनी गलती का एहसास कराया, नतीजतन सफेद शावक के मिलने पर उससे सफेद शेेरों की वंश वृद्धि की गई। बताया जाता है कि सफेद शेर मोहन द्वारा अपने जीवन काल में तीन शेरनियों के साथ संसर्ग कर 34 शावकों को जन्म दिया और अपनी आयु पूर्ण कर विश्व विख्यात सफेद शेरों के जन्म दाता मोहन ने दिसम्बर 1969 में दम तोड़ दिया।
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- तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह जू देव ने मारा था
- राजमहल के दरबार हाल में बब्बर शेर की ममी आज भी मौजूद
।। अरुण सिंह ।।
पन्ना। टाइगर स्टेट कहे जाने वाले म.प्र. के पन्ना जिले में आजादी से पूर्व तक सैकड़ों की संख्या में बाघ मौजूद थे। शिकार करने के शौकीन तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा उस जमाने में विशिष्ट अंग्रेज मेहमानों व दूसरी रियासतों के राजाओं के साथ बाघों का शिकार भी किया जाता रहा है। वन्य जीवों में सबसे ज्यादा बलशाली और अपनी शाही चाल के कारण आकर्षण का केन्द्र रहने वाले बाघ के संरक्षण की दिशा में भी राजाशाही जमाने में ठोस प्रयास किये जाते रहे हैं, यही वजह है कि पन्ना को बेशकीमती हीरों के साथ - साथ बाघों की धरती के नाम से भी जाना जाता था।
उल्लेखनीय है कि तत्कालीन पन्ना नरेशों द्वारा पन्ना के जंगलों में सैकडों बाघ मारे गये, लेकिन इस तथ्य से बहुत ही कम लोग वाकिफ होंगे कि 84 वर्ष पूर्व पन्ना के सरकोहा जंगल में एक अफ्रीकन बब्बर शेर का भी शिकार हुआ था। अफ्रीका के जंगल में पाये जाने वाले इस बब्बर शेर को तत्कालीन पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह जू देव ने 1929 में मारा था। पन्ना राजमहल के दरबार हाल में यह बब्बर शेर आज भी सुरक्षित है। इस शेर की खाल में मशाला भरकर उसे इस अंदाज में रखवाया गया है कि देखने पर लगता है मानो वह दहाडने वाला है।
यह अफ्रीकन बब्बर शेर पन्ना के जंगल में कैसे पहुंचा, इसकी बहुत ही रोचक और दिलचस्प दास्तान है. पन्ना राजघराने के सदस्य पूर्व सांसद लोकेन्द्र सिंह ने जानकारी देते हुए बताया कि यह बब्बर शेर शिवपुरी के जंगल में विचरण करते हुए पन्ना पहुंचा था। तत्कालीन ग्वालियर महाराजा ने 1924 में अफ्रीका से बब्बर शेर के तीन जोड़े मंगवाये थे जो समुद्री रास्ते से होते हुए बम्बई के बन्दरगाह में उतरे थे। बन्दरगाह से इन मेल व फीमेल बब्बर शेरों को शिवपुरी लाया गया और उन्हें जंगल में प्राकृतिक रूप से विचरण करने के लिए छोड़ दिया गया ताकि उनकी वंश वृद्धि हो सके।
महाराजा ग्वालियर द्वारा शिवपुरी के जंगल में छुड़वाये गये इन्हीं बब्बर शेरों में से एक विचरण करते हुए पन्ना के जंगल में आ पहुंचा था। सरकोहा के जंगल में पन्ना रियासत के वनरखा ने जब इस विचित्र बलशाली वन्य जीव की दहाड़ सुनी और जमीन में उसके पंजे के निशान देखे तो उसने तत्काल इसकी सूचना महाराजा यादवेन्द्र सिंह को दी।
इस वनरखा ने महाराजा को बताया कि उसने सरकोहा के शहीदन जंगल में एक ऐसे शेर के पंजे देखे हैं, जिसके पांव के पीछे बड़े - बड़े बाल हैं, इसके पंजे तो देशी शेर के पंजों जैसे ही हैं, परन्तु पंजे के पीछे हिस्से में बालों के घिसटने के चिन्ह भी बनते हैं। वनरखा से इस अदभुत शेर के बारे में सुनकर महाराजा यादवेन्द्र सिंह को भी आश्चर्य हुआ और वे पंजों के निशान देखने तत्काल जंगल रवाना हो गये। उन्होंने जंगल में जब खुद अपनी आंखों से पंजों के निशान देखे तो वे अचंभित रह गये। क्यों कि इसके पूर्व कभी भी वे ऐसे शेर के पंजे नहीं देखे थे।
महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने उसी समय यह निश्चय किया कि इस विचित्र जानवर को मारना है। वे अपने दोनों पुत्र नरेन्द्र सिंह व पुष्पेन्द्र सिंह को लेकर सरकोहा के जंगल में शिकार खेलने गये। जंगल में हाका कराया गया फलस्वरूप अफ्रीकन शेर जैसे ही नजर आया महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने उसके ऊपर गोली चला दी और वह वहीं पर ढ़ेर हो गया। इस बब्बर शेर के निकट जब महाराजा पहुंचे तो उन्हें बहुत पछतावा हुआ।
लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि यदि वे इस अफ्रीकन शेर को न मारते तो पन्ना में शेर की एक ऐसी नश्ल तैयार हो सकती थी जो पूरे विश्व में नहीं है। भारतीय बब्बर शेर व अफ्रीकन बब्बर शेर की मिश्रित नश्ल तैयार हो जाती जो दुनिया में कहीं नहीं है। यह कैसे संभव हो पाता इसकी जानकारी देते हुए लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि उस समय पन्ना शहर के निकट लक्ष्मीपुर रोड पर रामबाग में महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने पन्ना रियासत का चिडिय़ा घर बनवाया था। उस चिडिय़ा घर में जामनगर गुजरात के जंगल से लाये गये एक जोड़ा भारतीय बब्बर शेर रखे गये थे।
ये बब्बर शेर महाराजा यादवेन्द्र सिंह की जब भाव नगर गुजरात में शादी हुई तो वर्ष 1919 में महाराजा भाव सिंह ने दहेज में अन्य चीजों के साथ दिया था। दहेज में मिले इन भारतीय बब्बर शेरों के जोड़े को महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने रामबाग के चिडिय़ाघर में रखवाया था। वन्य जीवों विशेषकर बाघों के संरक्षण में रूचि रखने वाले राजपरिवार के सदस्य लोकेन्द्र सिंह ने बताया कि बाघों में सूंघन की क्षमता गजब की होती है. इसी क्षमता के कारण शिवपुरी के जंगल में मौजूद अफ्रीकन बब्बर शेर को पन्ना के चिडिय़ा घर में मौजूद भारतीय बब्बर शेरनी के होने का आभास हुआ होगा और वह शेरनी की तलाश में शिवपुरी से पन्ना आ पहुंचा।
शिवपुरी से पन्ना के जंगल में आया यह नर बब्बर शेर रामबाग स्थित चिडिय़ाघर से लगभग 3 किमी. दूर सरकोहा के जंगल में मिला। जहां महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने अनजाने में उसे मार डाला। इस घटना से सीख लेकर पन्ना नरेश महाराजा यादवेन्द्र सिंह ने महाराजा मार्तण्ड सिंह रीवा को अपनी गलती का एहसास कराया, नतीजतन सफेद शावक के मिलने पर उससे सफेद शेेरों की वंश वृद्धि की गई। बताया जाता है कि सफेद शेर मोहन द्वारा अपने जीवन काल में तीन शेरनियों के साथ संसर्ग कर 34 शावकों को जन्म दिया और अपनी आयु पूर्ण कर विश्व विख्यात सफेद शेरों के जन्म दाता मोहन ने दिसम्बर 1969 में दम तोड़ दिया।
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